केजरीवाल तीसरी बार बने दिल्ली के मुख्यमंत्री भाजपा और कांग्रेस करें आत्ममंथन
punjabkesari.in Wednesday, Feb 12, 2020 - 01:30 AM (IST)
दिल्ली विधानसभा के चुनावों में अरविंद केजरीवाल की प्रचंड बहुमत के साथ अभूतपूर्व विजय कई मायनों में महत्वपूर्ण है। खासतौर से तब जबकि ‘आप’ ने चुनाव में अपने आप को काम करने वाली सरकार बता कर वोट मांगे। दूसरी ओर आर.एस.एस. और भाजपा ने इन चुनावों में पूरी ताकत झोंक दी। संघ परिवार ने 20,000 और भाजपा ने 15,000 छोटी-बड़ी सभाएं कीं। भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह तथा पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा सहित 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों, 200 से अधिक पार्टी सांसदों तथा सहयोगी दलों के नेताओं से प्रचार करवाया परंतु वे मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर पाए।
भाजपा नेताओं ने अरविन्द केजरीवाल के हनुमान चालीसा पढऩे और मंदिर दर्शन का भी मजाक उड़ाया जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप 11 फरवरी को जब ‘आप’ की प्रचंड विजय के संकेत मिलने लगे तो लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि ‘‘मंगलवार के दिन हनुमान जी ने भाजपा की लंका में आग लगा दी।’’ हम अक्सर लिखते रहते हैं कि लोगों को सस्ती और स्तरीय शिक्षा एवं चिकित्सा, स्वच्छ पेयजल और लगातार बिजली उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है और अरविन्द केजरीवाल की सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में विकास पर ध्यान देते हुए उक्त समस्याएं दूर करने का प्रयास किया और चुनाव प्रचार के दौरान वह विवादास्पद मुद्दों से दूर रहे।
दूसरी ओर भाजपा नेताओं द्वारा सीमा से अधिक आक्रामक चुनाव प्रचार, अरविन्द केजरीवाल को आतंकवादी और अराजक बताने, ‘देश के गद्दारों को... गोली मारो सालों को’, ‘ई.वी.एम. का बटन इतनी जोर से दबाओ कि उसका करंट शाहीन बाग में जाकर लगे’ जैसे नारों से लिबरल मतदाता नाराज हो गए। यह विजय ‘आप’ के लिए आश्चर्यजनक तथा भाजपा और कांग्रेस के लिए चिंताजनक है। अरविन्द केजरीवाल को काम और विकास के नाम पर वोट मिला जबकि लोगों ने घृणा की राजनीति को नकारा। लिहाजा भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही आत्ममंथन करके अपनी कमियों को सुधारना होगा। विशेषकर कांग्रेस नेतृत्व को सोचना होगा कि लगातार 15 वर्ष दिल्ली पर राज करने वाली पार्टी आज शून्य पर क्यों पहुंच गई है और भाजपा नेतृत्व को भी सोचना होगा कि वह पिछले 22 वर्षों से दिल्ली की सत्ता से क्यों दूर है।
यह गठबंधन सरकारों का युग है, ऐसे में ‘आप’ द्वारा अकेले अपने दम पर सफलता प्राप्त करना कुछ तो मायने रखता है तथा अन्य राज्यों की सरकारों को भी अपने एजैंडे में विकास को प्रमुखता देनी होगी और बड़ी-बड़ी घोषणाएं करने के साथ-साथ लोगों की तात्कालिक समस्याएं बेरोजगारी, महंगाई दूर करने, सस्ती और स्तरीय चिकित्सा तथा शिक्षा, स्वच्छ पानी और सस्ती बिजली की आपूर्ति आदि यकीनी बनाने की जरूरत है जिस प्रकार ममता बनर्जी ने ‘आप’ की देखादेखी बंगाल में तीन महीने में 75 यूनिट बिजली खपत के बिल न लेने की घोषणा कर दी है। इन चुनावों ने स्पष्ट कर दिया है कि लोग दोनों ही मुख्य राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस से खुश नहीं हैं। दिल्ली के मतदाताओंं ने भाजपा और कांग्रेस की नीतियों को खारिज कर दिया है और तीसरे विकल्प के रूप में ‘आप’ को चुना है।
अरविंद केजरीवाल ने पार्टी की भारी विजय के उपलक्ष्य में दिए अपने भाषण में कहा है कि ‘‘इन चुनावों ने देश में नई किस्म की राजनीति को जन्म दिया है कि वोट उसी को जो स्कूल बनाएगा, मोहल्ला क्लीनिक बनाएगा। 24 घंटे सस्ती बिजली देगा।’’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘यह चुनाव देश के लिए शुभ संदेश है जो देश को 21वीं शताब्दी में ले जा सकता है। यह भारत माता की जीत है।’’ उल्लेखनीय है कि कांटे के मुकाबले वाले इन चुनावों में पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में विभिन्न दलों द्वारा मतदाताओं को बांटी जाने वाली शराब, नशों और नकद राशि की बरामदगी में 25 गुणा वृद्धि हुई और कुल 52.87 करोड़ रुपए की वस्तुएं तथा नकद राशि जब्त की गई।
आमतौर पर इस प्रकार की प्रचंड विजय से यदि पार्टी के नेता में नहीं तो उनके मातहतों में अहंकार आ जाया करता है। लिहाजा अरविंद केजरीवाल को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस प्रकार की नौबत न आए। जहां केजरीवाल की यह विजय सरकार द्वारा काम और विकास की राजनीति में मतदाताओं द्वारा व्यक्त विश्वास का प्रमाण है वहीं यह पराजय भाजपा और कांग्रेस के लिए आत्ममंथन करने का एक अवसर है। भाजपा अपनी गलतियां सुधारे और कांग्रेस दूसरे दलों के साथ गठबंधन करके अपनी स्थिति मजबूत करे।—विजय कुमार
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