कलाम का दृष्टिकोण : एक बेहतर ‘भविष्य’ की प्रेरणा

punjabkesari.in Monday, Jul 27, 2020 - 02:03 AM (IST)

आज दुनिया एक मुश्किल दौर से गुजर रही है। इससे उबरने के लिए देश-विदेश की सारी संस्थाएं कई मोर्चों पर परस्पर सहयोग कर रही हैं। संघर्ष के इस समय में डा. ए.पी.जे$ अब्दुल कलाम की यह बात मानव जाति के लिए एक मार्गदर्शक की तरह है कि यह धरती ही एक मात्र उपग्रह है, जहां जीवन संभव है। मानव जाति को इसकी रक्षा और संरक्षण का दायित्व निभाना ही होगा। हमारा समाज और हमारी शासन प्रणाली अब पहले से कहीं अधिक संजीदा है क्योंकि मामूली सी देरी से भी अपूरणीय क्षति हो सकती है। 

इन परिस्थितियों ने मनुष्य की चेतना को झकझोर दिया है क्योंकि ये परिस्थितियां प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की व्यथा-कथा बयां कर रही हैं। भविष्य को ध्यान में रखते हुए इन संसाधनों के संतुलित उपयोग की बात पर कभी अमल किया ही नहीं गया, हालांकि, दुनिया भर की संस्थाओं ने स्वीकार किया है कि एेसा किया जाना चाहिए। भारतीय मूल्य और लोक व्यवहार धरती को सुरक्षित बनाए रखने और इसके संरक्षण की भावना से अनुप्राणित रहे हैं। आज इस धरती को जितना खतरा दुनिया भर में बढ़ते तापमान और प्रदूषण से है, उतना ही खतरा मानव-निर्मित कारकों से भी पैदा हुआ है। 

भारत में बेहतर शासन प्रणाली के साथ-साथ जनांकिकी लाभ भी है क्योंकि यहां 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है जो भारत को एक एेसा विकसित देश बनाने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं जिनसे विश्व समुदाय भी धरती को रहने योग्य बनाए रखने की कला सीख सकता है। भावी पीढ़ी के लिए इस धरती पर बेहतर जीवन छोडऩे की आकांक्षा से कई प्रज्ञापुरुषों ने अपने ज्ञान और बुद्धिमत्ता से समाज को प्रेरित किया है। पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जीवन भी प्रकृति के संरक्षण की दिशा में हमें काफी कुछ सीख देने वाला है। आज उनकी 5वीं पुण्यतिथि का यह अवसर रोजमर्रा के जीवन में बुद्धिमत्ता का स्मरण और अंगीकरण ही उस महान आत्मा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

उन्होंने अपनी काव्यात्मक शैली में, हमें व्यक्तिगत और सामूहिक- दोनों स्तरों पर भारत को 2020 तक विकसित बनाने के लिए प्रेरित किया था। 27 जुलाई, 2015 को शिलांग में, भारतीय प्रबंधन संस्थान में ‘क्रिएटिंग ए लिवेबल प्लैनेट अर्थ’ विषय पर अपने व्याख्यान में उन्होंने विकास की जद्दोजहद में पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को हो रहे नुक्सान के प्रति आगाह किया था। उन्होंने प्रकृति को बचाने के लिए भावी कार्ययोजना की रूपरेखा भी सामने रखी थी। डा. कलाम ने सबसे पहले 2 नवम्बर, 2012 को चीन में पेइचिंग फोरम में इस आेर ध्यानाकर्षण किया था कि धरती को रहने योग्य बनाए रखना कितना जरूरी है। पेइचिंग फोरम से उन्होंने कहा: मानव जाति को अपने सभी संघर्षों को दर-किनार कर पूरी दुनिया के नागरिकों के लिए शांति और खुशहाली का सांझा लक्ष्य रखना होगा। हमें एक रमणीक धरा के लिए वैश्विक दृष्टि विकसित करनी होगी। मानव जाति के लिए इससे अधिक कल्याणकारी कुछ नहीं हो सकता। 

उनके इस स्वप्र को साकार करने के लिए हमारी सबसे पहली प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि हम प्रकृति से सीखें। आज प्रौद्योगिकी ने दुनिया को विश्वग्राम बना दिया है जहां सीमाएं टूट रही हैं और लोग अपनी उन्नति के लिए इस लक्ष्य की दिशा में अनूठे तरीकों से योगदान कर रहे हैं। हमें अपने दैनिक जीवन में प्रदूषण रहित चीजोंं को अपनाना होगा। आधुनिक समय की जटिलताआें के समाधान और भारत को 21वीं सदी का अग्रणी देश बनाने के प्रयास तेज करने के लिए हमें समस्या का समाधान करने की कला सीखनी होगी ताकि वह विकराल रूप न धारण कर ले। 

अंतरिक्ष विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में डा. कलाम का योगदान सदैव अविस्मरणीय एवं अतुलनीय रहेगा। हमें भौतिकवाद के स्थान पर न्यूनतम आवश्यक संसाधनों के साथ जीना सीखना होगा, जीवन में करुणा तथा दया को अधिक जगह देनी होगी और अपने छिटपुट तथा बिखरे प्रयासों को सामूहिक प्रयासों में तबदील करना होगा ताकि यह पर्यावरण सभी प्राणियों के लिए अनुकूल रहे। अपने सभी सैमीनारों में डा. कलाम का यह सामान्य व्यवहार था कि वे सभी को अपने कार्य के प्रति मूल्य, सत्यनिष्ठा, सिद्धांत व गौरव के साथ कार्य करने की प्रतिज्ञा दिलाते थे, जो बेहतर समाज के निर्माण के लिए व्यक्तियों को स्वमूल्यांकन के लिए पे्ररित करती थी। जैन मुनि आचार्य महाप्रज्ञ जी के साथ लिखी गई उनकी पुस्तक ‘परिवार एवं राष्ट्र’ मूल्य आधारित समाज निर्माण के लिए प्रेरित करती है, जो भारत को एक महान राष्ट्र बनाने का मार्ग प्रशस्त करती है। 

कलाम की प्रेरणा से ही संसद रत्न और महारत्न पुरस्कार शुरू किए गए जो विभिन्न संसदीय कार्यों जैसे- बहस, प्रश्न पूछने, समिति में कार्य निष्पादन आदि जैसी विभिन्न श्रेणियों के लिए सर्वोत्तम सांसद पुरस्कार की शुरूआत की गई। मुझे 15वीं लोकसभा के दौरान संसदीय निष्पादन के लिए यह पुरस्कार प्राप्त हुआ था। मुझे डा. कलाम की चर्चित पुस्तक मैनिफैस्टो फार चेंज के प्रकाशन से पूर्व, उनके साथ सांसदों की भूमिका और संसदीय प्रक्रिया पर कई बार चर्चा का सुअवसर मिला था। 

विकसित भारत का जो स्वप्र अब्दुल कलाम ने देखा था, मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उसे साकार करने की दिशा में बढ़ रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत के लिए प्रधानमंत्री जी के आह्वान ने हमारे अब तक के प्रयासों को और गति प्रदान की है। राष्ट्रपति भवन से अपने विदाई संबोधन में डा. कलाम ने कहा था मैं भारत के इस बहु-सांस्कृतिकसमाज के करोड़ों लोगों के हृदय और मन के तार जोडऩा चाहता हूं और उनमें यह विश्वास भरना चाहता हूं कि हम यह कर सकते हैं। डा. कलाम का व्यक्तित्व इतना महान था कि उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में जनता के हृदय तक अपनी पहुंच बना ली थी। उनकी मृत्यु पर लोगों ने उनको श्रद्धांजलि देते हुए उन को ‘रिटर्न इफ पॉसीबल’ कहते हुए सम्बोधित किया था। कर्मयोगी कलाम एक असाधारण वैज्ञानिक प्रतिभा संपन्न व्यक्ति के अलावा एक कवि, लेखक और कठिन परिश्रम करने वाले व्यक्ति भी थे। उनका कार्य और उनकी बुद्धिमत्ता भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में एवं हमारी पृथ्वी को जीवन के लिए और सुगम व उपयोगी बनाने की दिशा में सदैव हमारा मार्गदर्शन करती रहेगी।-अर्जुन राम मेघवाल(भारी उद्योग एवं संसदीय कार्य मंत्री)  


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