न्याय में देरी : अदालती प्रक्रिया में सुधार की जरूरत

Wednesday, Feb 16, 2022 - 06:57 AM (IST)

प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था वहां की न्याय प्रणाली से जुड़ी होती है। अगर आपको जल्द व निष्पक्ष न्याय मिल जाता है तो देश उन्नति के पथ पर अग्रसर रहता है, अन्यथा समय पर इंसाफ नहीं मिलना न मिलने के समान ही होता है। आज बदलाव के दौर में न्यायपालिका में समय की पाबंदी तय करके लोगों को इंसाफ देना वक्त की सबसे बड़ी जरूरत बन गया है जिससे लोगों का अदालतों पर विश्वास बढ़ेगा तथा कानूनी शिकंजा कसने, सजा का डर बढ़ने से अपराधों पर भी अपने आप नकेल कसी जाएगी। 

विदेशों में खुशहाली का कारण समय व नियमानुसार केसों का निपटारा माना जाता है, जिसके लिए अब भारत को भी उचित कदम उठाने चाहिएं। हमारे देश में हजारों केस सुनवाई के इंतजार में न्यायालयों में लंबित पड़े हैं तथा लाखों लोग न्याय हेतु अदालतों की तरफ ताक रहे हैं। वहीं लंबित केसों का सबसे बड़ा कारण न्यायालयों में माननीय जजों की कमी माना जाता है। न्याय प्रणाली में सुधार शायद कार्य के नियमानुसार व्यवस्थित तरीके से होने से हो सकता है। देश की न्याय प्रणाली को सिर्फ भर्ती की ही नहीं, बल्कि सुधार की भी आवश्यकता है। 

आज की कानून व्यवस्था मेें अक्सर प्रतिवादी को नोटिस के बाद सुनवाई में महीनों लग जाते हैं, जबकि समय निर्धारित प्रक्रिया में अधिकारी की जवाबदेही, नियमों की विधिवत पालना, पेपर लैस प्रक्रिया को मान्यता मिलने से कार्य जल्द निपट सकते हैं। इसी तरह लोयर कोर्ट से सुप्रीमकोर्ट तक केस के निपटारे की समय सीमा तथा जजों की अपने फैसलों प्रति जवाबदेही तय होनी चाहिए। 

इतना ही नहीं, निचली अदालत के किसी फैसले को उच्च न्यायालय द्वारा नकारने पर खारिज जजमैंट, केस में लगे समय को जजों की ए.सी.आर. में प्रमोशन के दौरान ध्यान में रखा जाए। देश की संसद की तरह अदालत परिसर कैमरों की निगरानी में हो तथा जजों, सरकारी वकीलों, नए बने वकील की बैठकों, सैमीनार, नए बिल पास करने की प्रक्रिया को बढ़ाया जाए। जजों की नियुक्ति के समय हाईकोर्ट के वकीलों की तर्ज पर जिला-डिवीजन कोर्ट के वकीलों को भी अधिकार मिले तथा उनकी केस में तारीख लेने की सीमा निश्चित की जाए जबकि कोर्ट वैबसाइट में रजिस्टर्ड वकीलों की परफॉर्मैंस अनुसार चार्ट बने ताकि माहिर वकीलों की मदद से जल्द इंसाफ मिल सके। 

वहीं पुलिस द्वारा जांच, एफ.आई.आर., चालान पेश करने की समय सीमा निर्धारित हो तथा कोर्ट में एफ.आई.आर. खारिज होने पर संबंधित अधिकारी की पूर्ण जि मेदारी तय की जाए, जिसे रिटायरमैंट, प्रमोशन का प्रमुख आधार बनाया जाए तथा पी.आई.एल. के नाम पर झूठी मुकद्दमेबाजी करने वालों को स त सजा का प्रावधान हो। इतना ही नहीं, 22वीं सदी में 19वीं सदी के कानूनों, न्यायपालिका में बदलाव की प्रक्रिया अपनाई जाए।-एडवोकेट पीयूष जैन
 

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