जम्मू-कश्मीर : न तो विजय, न ही न्याय

punjabkesari.in Sunday, Oct 31, 2021 - 04:10 AM (IST)

गत सप्ताह गृहमंत्री ने ‘केंद्र शासित क्षेत्र’ जम्मू-कश्मीर का दौरा किया। 5 तथा 6 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार के धारा 370 को हटा कर जम्मू-कश्मीर राज्य (जिसमें लद्दाख शामिल है) का विभाजन करके इसे 2 केंद्र शासित क्षेत्रों जम्मू तथा कश्मीर व लद्दाख तक सीमित करने के विवादास्पद फैसले (संसद ने सरकार के निर्णयों की पुष्टि करते हुए कानून को पारित कर दिया) के बाद उनका यह पहला दौरा था। 

हैरानी की बात यह है कि अगस्त 2019 के बाद 2 वर्षों तक गृहमंत्री ने पूर्ववर्ती राज्य का दौरा नहीं किया था। इस दौरान काफी संख्या में मंत्रियों ने केंद्र शासित क्षेत्रों का दौरा किया मगर लोगों ने उनका पूर्णत: बहिष्कार किया। रक्षा मंत्री ने अपने दौरों को सुरक्षाबलों के केंद्रों तथा उनके अधिकार वाली पोस्टों तक सीमित रखा। 

मैंने काफी हद तक दोनों केंद्र शासित क्षेत्रों को उप-राज्यपाल (एल.जी.) तथा अधिकारियों द्वारा प्रशासित करने पर छोड़ दिया। तत्कालीन राज्यपाल (सत्यपाल मलिक) 31 अक्तूबर 2019 तक प्रभारी बने रहे जब जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन कानून 2019 प्रभाव में आया। पहले उप राज्यपाल जी.सी. मुर्मू लगभग 9 महीनों 7 अगस्त 2020 तक अपने पद पर रहे। वर्तमान उपराज्यपाल (मनोज सिन्हा) एक वर्ष से कुछ अधिक समय से अपने पद पर हैं। मुझे विश्वास है कि गृहमंत्री ने पाया होगा कि जम्मू-कश्मीर के प्रशासन में शायद ही कोई नेतृत्व है। 

नई सामान्य स्थिति 
गृहमंत्री के दौरे के बाद खुद उनके सहित ‘सामान्य हालातों’ के कई दावे किए गए। जम्मू-कश्मीर कितना ‘सामान्य’ है? 
-गृह मंत्री के दौरे की पूर्व संध्या पर 700 लोगों को हिरासत में लिया गया जिनमें से कुछ कड़े जन सुरक्षा कानून (पी.एस.ए.) के अंतर्गत थे। 
-कुछ हिरासतियों को जम्मू-कश्मीर की बाहरी जेलों में भेज दिया गया।
-आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के षड्यंत्र के संदेह में राष्ट्रीय जांच एजैंसी (एन.आई.ए.) ने  8 और लोगों को गिरफ्तार किया (जिससे गिरफ्तारियों की संख्या 13 तक पहुंच गई)।
-जिन सड़कों से गृहमंत्री गुजरे उनके साथ-साथ स्नाइपर तैनात किए गए थे। 

-श्रीनगर में ट्रैफिक प्रतिबंध लागू किए गए थे जिनमें दोपहिया वाहन सवारों की गहन सुरक्षा जांच की गई (एक रिपोर्ट के मुताबिक दोपहिया वाहनों पर ‘प्रतिबंध’ लगाया गया था)।
-गृहमंत्री ने जम्मू-कश्मीर में लगाए कफ्र्यू तथा इंटरनैट प्रतिबंधों को यह कहते हुए न्यायोचित ठहराया कि यह ‘बहुत-सी जिंदगियां बचाने के लिए एक कड़वी गोली है।’
-जम्मू-कश्मीर में अर्थव्यवस्था की स्थिति बारे गृहमंत्री ने कहा कि यद्यपि जम्मू-कश्मीर ने प्रति व्यक्ति सर्वाधिक ग्रांट हासिल की है, ‘यह गरीबी कभी भी कम नहीं हुई’ (यह सरकारी आंकड़े के विपरीत है कि 2019 में जम्मू-कश्मीर की गरीबी दर 10.35 प्रतिशत थी, बेहतरीन राज्यों में से 8वां, जबकि राष्ट्रीय औसत 21.92 प्रतिशत था)।
-गृहमंत्री ने पूछा, ‘‘5 अगस्त 2019 से पहले क्या जम्मू-कश्मीर का युवा इस देश का गृह अथवा वित्त मंत्री बनने का सपना देख सकता था?’’ (अवश्य उनके दिमाग से यह निकल गया होगा कि 1989-90 में मुफ्ती मोहम्मद सईद भारत के गृहमंत्री थे)।
-उन्होंने यह कहते हुए समापन किया कि ‘आतंकवाद खत्म हो गया है तथा पत्थरबाजी गायब हो गई है’। (सर्वाधिक विश्वसनीय डाटा बेस साऊथ एशिया टैरेरिज्म पोर्टल में 2014 तथा 2021 के बीच मौतों की निम्र संख्या बताई है : नागरिक-306, सुरक्षाबल-523 तथा आतकंवादी-1428। दरअसल गत 2 वर्षों में अक्तूबर 2021 सबसे खराब महीना था)। 

उनके दौरे की अंतिम तिथि को गृहमंत्री ने अपनी सरकार की नीति घोषित की : ‘डा. फारूक साहिब ने सुझाव दिया है कि मैं पाकिस्तान से बात करूंगा। यदि मैं बात करूंगा तो मैं सिर्फ जम्मू-कश्मीर के लोगों तथा इसके युवाओं से बात करूंगा, किसी अन्य से नहीं।’ 

विजेता का न्याय
गृहमंत्री किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं से नहीं मिले, इससे भी अधिक, उन्होंने ‘तीन परिवारों’ को कमतर करके आंका जिन्होंने जम्मू-कश्मीर के लिए ‘तबाही’ लाई। यहां कोई चुनी हुई विधायिका नहीं है इसलिए वह किसी भी विधायक से नहीं मिले। किसी भी सिविल सोसाइटी संगठन ने उनसे मिलने की इच्छा नहीं जताई। यदि गृहमंत्री किसी से भी बात करने के इच्छुक नहीं थे तो यह हैरानीजनक नहीं है कि उनसे भी मिलने के लिए कोई भी इच्छुक नहीं था। जो एकमात्र बातचीत हुई वह गृहमंत्री तथा दरबार के चापलूस नौकरशाहों के बीच थी। 

यह दुखद रूप से स्पष्ट है कि मोदी सरकार की जम्मू-कश्मीर नीति विजेता के न्याय पर आधारित है : (1) सुरक्षा का जाल, जल्दबाजी में बनाए गए असंवैधानिक कानून, (2) एक नौकरशाही, जिसके बारे में यह कहा जा सकता है कि ‘(उनके) दिमाग जड़ हो गए हैं’, (3) पी.एस.ए. जैसे तानाशाहीपूर्ण कानून, (4) प्रतिबंध जो  बोलने, अभिव्यक्ति, आवागमन, निजता, स्वतंत्रता, जीवन तथा कानून के शासन के आधारभूत अधिकारों को दबाते हैं, (5) राज्य विधानसभा के लिए चुनावों से पहले जालसाजीपूर्ण परिसीमन का कार्य तथा (6) किसी भी स्थिति में पाकिस्तान से बात नहीं। 

प्रतिरोध को और मजबूत बनाना
क्या यही सामान्य स्थिति तथा प्रशासन है जो मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के लोगों को उपलब्ध करवा रही है? ऐसा लगता है लेकिन एक बात स्पष्ट है : ऐसी ‘सामान्य स्थिति’ तथा ‘प्रशासन’ जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक समाधान की ओर नहीं ले जाएंगे। स्वाभाविक है कि मोदी सरकार का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में कोई ‘राजनीतिक’ मुद्दा नहीं है तथा यहां तक कि यदि कोई है भी तो उसे धारा 370 को रद्द करके ‘सुलझा’ लिया गया है। 

यदि मोदी सरकार इतिहास, ऐतिहासिक तथ्यों, भारत तथा पाकिस्तान के बीच लड़े गए युद्धों, वायदों, अतीत में की गई वार्तालापों के परिणाम (जिनमें गोल मेज चर्चाएं तथा रिपोर्ट्स शामिल हैं), राजनीतिक आकांक्षाओं, अतीत में की गई ज्यादतियों, सरकार की दमनकारी कार्रवाइयों, सुरक्षाबलों की भारी उपस्थिति तथा कानून-व्यवस्था के निरंतर पतन को नजरअंदाज करती है तो वार्ता का कोई अर्थपूर्ण परिणाम नहीं निकल सकता। गृहमंत्री किसी भी दिल को चुराने में सफल नहीं हुए, न चाहते हुए भी उन्होंने संभवत: लोगों के दिलों तथा मनों में इस्पात भर दिया है कि वे संविधान को कलंकित करने तथा लोकतांत्रिक अधिकारों के इंकार का शांतिपूर्वक विरोध करें।-पी. चिदम्बरम


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