‘ऐसा लगता है जैसे मध्यम वर्ग गायब हो गया है’

punjabkesari.in Sunday, Mar 14, 2021 - 03:00 AM (IST)

138 करोड़ लोगों के देश में जहां पर प्रति व्यक्ति आय 98000 रुपए हो तथा अत्यधिक असमानता दिखाई दे वहां पर मध्यम श्रेणी के आकार का अनुमान लगाना मुश्किल है। पहली बाधा निश्चित है। मध्यम श्रेणी की गिनती करने के लिए आय स्लैब क्या है? सिर्फ एक फीसदी लोगों के पास 73 फीसदी सम्पत्ति है। यह देखते हुए किसी भी विकासशील देश के निचले 20 प्रतिशत को गरीब होना चाहिए जो इसे 7 प्रतिशत तक छोड़ देता है और इसे मध्यम श्रेणी के नाम से पुकारा जाना चाहिए। यहां तक कि यह एक विशालकाय आंकड़ा है जो करीब 10 करोड़ हैं और यह सभी 14 देशों की आबादी से भी अधिक है। 

दूसरी बाधा जीवन की गुणवत्ता है जिसे मध्यम वर्ग के जीवन के रूप में वर्णित किया जा सकता है। 98000 की प्रति व्यक्ति आय का जीवन जीने वाला क्या खरीद सकता है। 8000 रुपए प्रति माह आश्रय, भोजन, कपड़े, शिक्षा, स्वास्थ्य, अवकाश, मनोरंजन और कुछ बचत की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मुश्किल से पर्याप्त है। वही सबके पास होना चाहिए। इस कारण मध्यम वर्ग में जाने के लिए किसी एक की वाॢषक आय उस राशि की दोगुनी या तीन गुणा होनी चाहिए। मुझे संदेह है कि यह संख्या आयकर का भुगतान करने वाली संख्या से अधिक नहीं होगी। 2018-19 में वह संख्या 3.29 करोड़ रुपए थी जोकि मुश्किल से आबादी का 2.4 प्रतिशत रही होगी। 

न तो देखा और न ही सुना : मान लीजिए कि हम मध्यम वर्ग के आकार का लगभग 3 करोड़ से 10 करोड़ रुपए तक का अनुमान लगाते हैं। 6 करोड़ रुपए के रूप में संख्या चुनें। इनमें व्यवसायी, किसान, न्यायाधीश, वकील, डाक्टर, इंजीनियर, सी.ए., अभिनेता, लेखक और पेशेवर लोग शामिल हैं। 

इस निबंध का विषय है कि अनुमानित 6 करोड़ के आकार वाला मध्यम वर्ग क्या कर रहा है? 1930, 1940 तथा 1980 तक, यहां तक कि हजारों की तादाद में ऐसे लोग थे जो खुद को खुशी-खुशी मध्यम वर्ग से संबंधित मानते थे। वे राजनीति सहित सार्वजनिक जीवन में सक्रिय थे। वे संसद, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकाय के चुनावों के उम्मीदवार थे। किसी एक ने उन्हें नगर पालिकाओं, सहकारी समितियों, स्वैच्छिक संघों, खेल निकायों और इस तरह के कार्यकारी पदों में पाया। वे लोग वक्ताओं, लेखकों, कवियों, अभिनेताओं और कलाकारों के बीच में पाए गए। उन्होंने उन मुद्दों पर बहस की जो प्रासंगिक तथा सामयिक थे।  उन्होंने संपादकों तथा कुछ समय उप संपादकों तथा मध्यमों को पत्र लिखे। 

कोई और संसाधन नहीं : स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मध्यम वर्ग की भागीदारी से देश समृद्ध और सभ्य बनाया गया। उस वर्ग से संबंधित सैंकड़ों लोगों को राजनीतिक नेताओं ने मित्र तथा सलाहकार माना। उन्होंने सत्ता में बैठे लोगों के कंधे से कंधा मिलाया। उनके विचारों ने सार्वजनिक प्रवचन को नया आकार दिया। बंगाल में उन्हें ‘भद्र लोग’ के नाम से बुलाया जाता था। तमिलनाडु में उन्हें हिंदू और दीनामणि कहा जाता था जो धार्मिक उत्सवों का नेतृत्व करते थे और सिनेमाहालों तथा संगीत के प्रोग्रामों में दिखाई देते थे। इसके अलावा वह रथ यात्रा में भी शामिल होते थे। महाराष्ट्र में वे लोग मराठी साहित्य तथा रंगमंच के संरक्षक थे। केरल और कर्नाटक में वह चर्चों और मठों में सक्रिय थे। मध्यम वर्ग वास्तव में इन चीजों के बीच में था। 

मध्यम वर्ग की भागीदारी से राजनीति समृद्ध और सभ्य बन गई।  मध्यम वर्ग न केवल उम्मीदवार बल्कि राय निर्माता भी थे। इस मध्यम वर्ग में से अच्युत मैनन, सी. सुब्रमण्यम, वीरेन्द्र पाटिल तथा संजीवय्या के रूप में यह नेता दक्षिण तथा उत्तर में उभरे। ऐसे ही अपनी राय के माध्यम से मध्यम वर्ग ने सरकार के खिलाफ किसानों के संघर्ष, ट्रेड यूनियन के आंदोलन, छात्रों की प्रदर्शनी इत्यादि में मध्यस्थता की है। मध्यम वर्ग ने सहानुभूति, कारण, निष्पक्षता और समानता को अपनाया और सुनिश्चित किया कि इन मूल्यों का सम्मान किया गया था। 

काश ऐसा लगता है कि मध्यम वर्ग गायब हो गया है। यह केवल अर्थशास्त्रियों के लिए एक वर्गीकरण के रूप में मौजूद हैं लेकिन व्यावहारिक रूप से यह वर्ग जीवन के सभी क्षेत्रों से पीछे हट गया है। पूर्णकालिक राजनेताओं ने क्लबों, समाजों, खेल निकायों, सहकारी समितियों, ट्रेड यूनियनों, मंदिर ट्रस्टों और व्यावहारिक रूप से समाज की प्रत्येक अन्य संगठित इकाई पर कब्जा कर लिया है। यही कारण है कि शायद सार्वजनिक जीवन विशेष रूप से राजनीति तीखी और विमुद्रीकृत हो गई है और बहस का स्तर मोटे तौर पर अश्लील और अस्पष्ट हो चुका है। 

सिंघू और टीकरी में किसानों के 100 से अधिक दिनों के विरोध के प्रति मध्यम वर्ग को उदासीन देखना निराशाजनक है। निर्भया को लेकर जब आतंक चरम पर था, के सिवाय मध्यम वर्ग ने जे.एन.यू., ए.एम.यू., सी.ए.ए. विरोधी प्रदर्शन तथा लाखों की तादाद में प्रवासियों के संताप से खुद को दूर रखा। हरियाणा और कर्नाटक में ट्रेड यूनियन संघर्ष पर ध्यान ही नहीं दिया गया। पुलिस की गोलीबारी तथा मुठभेड़ों ने उनकी अंतर्रात्मा में हलचल नहीं मचाई। 

सामाजिक कार्यकत्र्ता, लेखकों और कवियों की मनमानी गिरफ्तारी या विपक्षी राजनीतिक नेताओं का उत्पीडऩ उन्हें अपनी शालीनता से हिला नहीं पाया। पूरे देशभर में मध्यम वर्ग ने अपने आपको छोटे गणराज्यों से दूर ही रखा। मध्यम वर्ग लगता है जैसे उन तीन बंदरों जैसा है जिनमें से एक ने अपनी आंख पर पट्टी, दूसरे ने कानों में रूई और तीसरे ने अपने मुंह पर टेप लगा रखी है। मुझे शंका है कि गायब मध्यम वर्ग लोकतंत्र के बचाव के लिए उठेगा।-पी. चिदम्बरम


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