‘किसानों को ढाल बनाकर देश की प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ करना गलत’

punjabkesari.in Tuesday, Feb 02, 2021 - 05:02 AM (IST)

आजादी के दीवानों के बलिदान व त्याग की लालिमा तिरंगे की रगों में बसी है। इन्हीं दीवानों के कारण इसका जन्म संभव हुआ। 14 अगस्त, 1947 की रात 10.45 बजे काऊंसिल हाऊस के सैंट्रल हॉल में श्रीमती सुचेता कृपलानी के नेतृत्व में ‘वंदे मातरम्’ के गायन से शुरू हुए कार्यक्रम में संविधान सभा के अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद व पं. जवाहर लाल नेहरू के भाषण के पश्चात श्रीमती हंसाबेन मेहता ने अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद को तिरंगे का रेशम का स्वरूप सौंपा और कहा कि आजाद भारत में पहला राष्ट्रध्वज जो इस सदन में फहराया जाएगा, वह भारतीय महिलाओं की ओर से इस राष्ट्र को एक उपहार है। सभी लोगों के समक्ष तिरंगे का यह पहला प्रदर्शन था। 

करीब दो महीने पहले जब मोदी सरकार के कृषि कानूनों के विरुद्ध किसानों ने आंदोलन शुरू किया तो एक बड़ा वर्ग किसानों के समर्थन में खड़ा हो गया। सरकार लगातार कहती रही कि तीनों कृषि कानून किसानों के हित में लाए गए हैं लेकिन किसानों ने साफ तौर पर कहा कि वे सरकारी दावों को नहीं मानते। देश का बड़ा वर्ग कृषि कानूनों से जुड़ी शब्दावली तक को नहीं समझने के बावजूद सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक किसानों के समर्थन में बात करता दिखा। वजह सिर्फ  एक थी, जो लोग कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे, वे किसान थे। 

आम लोगों ने यह नहीं सोचा कि किसानों के नाम पर कहीं कोई राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेंकने की कोशिश में तो नहीं जुटा है, उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि कहीं सच में सरकार सच तो नहीं बोल रही? देश अन्नदाता के नाम पर किसान आंदोलन का समर्थन करने लगा, लेकिन 26 जनवरी, 2021 को किसानों के चोले में मौजूद कुछ ‘तथाकथित किसानों’ ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया। दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च के नाम पर जो कु छ भी हुआ, उससे एक बात तो साफ हो गई कि भीड़ का कोई नेता नहीं होता। किसान संगठनों के नेता भी बेहद लाचार दिखे। वे वापस जाने के निर्देश देते रहे, मीडिया के सामने सब कुछ कंट्रोल में होने का दावा करते रहे लेकिन किसी ने नहीं सुनी। 

कुछ तथाकथित किसानों ने खूब उत्पात मचाया। किसानों के लिए जो रूट निर्धारित था, उसे छोड़कर वे लाल किले तक पहुंच गए। वहां, तिरंगे के समानांतर खालसा पंथ का झंडा यानी ‘निशान साहिब’ लहरा दिया। साथ ही तिरंगे के समानांतर कई और संगठनों के झंडे भी लहराते दिखे। जो कहते थे कि जवान तो किसानों के परिवारों से निकलते हैं, उन्हीं तथाकथित किसानों ने पुलिस कर्मियों पर पत्थरबाजी की। करीब 300 पुलिसकर्मी घायल हुए। बसें तोड़ी गईं, सरकारी संपत्ति को हानि पहुंचाई गई, पुलिस कर्मियों को पीटा गया। खैर, देश अपने अन्नदाता का सम्मान करता है। देश किसानों के साथ सहानुभूति भी रखता है लेकिन वह यह कतई बर्दाश्त नहीं करेगा कि कोई अन्नदाता को ढाल बनाकर देश की प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ करे। 26 जनवरी को जब भारत पूरी दुनिया के सामने अपनी ताकत दिखा रहा था, तब किसानों को सरकार ने जवानों के समानांतर मौका दिया। 

सरकार ने किसान नेताओं के वादों पर भरोसा किया। किसान नेताओं ने वादे किए लेकिन निभा नहीं पाए। एक तरफ जहां देश की राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मौके पर किसान आंदोलन ने इतना रौद्र रूप ले लिया जिसमें न सिर्फ इस दिन का अपमान हुआ बल्कि राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का भी अपमान हुआ तो दूसरी तरफ विश्व में दुश्मन देशों में जश्न मना। टुकड़ों की मोहताजगी में जीने वाला मुल्क पाकिस्तान दिल्ली में तथाकथित किसानों द्वारा हुई इस हिंसा का जश्न मना रहा है। पाकिस्तान फस्र्ट नाम के ट्विटर हैंडल से लिखा गया ‘मोदी की हिंदुत्व पॉलिसी की वजह से भारत के पंजाब का हर व्यक्ति अपना अधिकार मांगने लगा है, जो कि आजादी है। यह सही दिशा में अच्छा कदम है।’ 

सरकार ने दर्जन भर बैठकें किसान नेताओं के साथ उनकी शंका दूर करने के लिए की हैं, जो कि सरकार की किसानों के लिए चिंता और सहानुभूति ही दिखाती हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह भैया जी जोशी के शब्दों में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभी देशवासियों से आह्वान करता है कि राजनीतिक एवं वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकर प्राथमिकता से शांति के लिए प्रयास करें। देश अन्नदाताओं के समर्थन में था, आज भी है। लेकिन आंदोलन का ऐसा रूप जो विश्व मंच पर भारत के यश को कम करने का काम करे, उनके साथ खड़ा होना मर्यादित नहीं हो सकता। इस कानून के बारे में किसान भाइयों के भ्रम दूर करना आवश्यक है। यह केवल सरकार नहीं अपितु सभी प्रबुद्ध जनों का कार्य है। इन प्रयत्नों से ही फैलाए भ्रम को दूर किया जा सकता है और देश की सर्वांगीण उन्नति के लिए यही श्रेयस्कर है। (लेखक विद्या भारती पंजाब के प्रांत प्रचारक प्रमुख हैं।)-सुखदेव वशिष्ठ
 


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