डॉक्टरों के साथ तिरस्कार का व्यवहार ठीक नहीं

punjabkesari.in Tuesday, Jun 08, 2021 - 05:13 AM (IST)

मीडिया में आई इन रिपोर्टों को देखकर यह तनाव होता है कि कई राज्यों में ओवरचाॄजग को लेकर पुलिस द्वारा मैडीकल पेशेवरों के खिलाफ एफ.आर.आई. दर्ज हो रही है। कोविड-19 महामारी को लेकर कई राज्यों ने मैडीकल पेशेवरों तथा निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध करवाने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं जोकि उनके साथ निपटने का एक अच्छा रास्ता नहीं है। 

वे लोग अपराधी नहीं हैं। हमारे पास राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एन.एम.सी.) है जिसके पास मैडीकल पेशेवरों तथा उनके संगठनों से निपटने तथा उन्हें जांचने के लिए एक आसान तंत्र है। देश में उपभोक्ता तथा न्यायिक अदालतें भी हैं जो मरीजों के हितों की रक्षा करती हैं। हम अपने डॉक्टरों को भगवान से कम नहीं मानते। मगर ऐसे कड़े कदम उन सभी मैडीकल पेशेवरों का हौसला तोड़ेंगे जो अपना जीवन खतरे में डालकर संकट की इस घड़ी में बड़ी स त मेहनत कर रहे हैं। 

राज्य सरकारों ने उपचार लागत, अस्पतालों के चाॢजज तथा विभिन्न लैब टैस्टों की कीमतों को तय किया है जो इस नाजुक सेवा क्षेत्र पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। मूलभूत ढांचे की गुणवत्ता, दवाइयों, योग्य विशेष मैडीकल पेशेवर तथा सहूलतों पर उपचार खर्च अलग है जिन्हें वे उपलब्ध करा रहे हैं। सरकार द्वारा तय खर्चे तर्कहीन दिखाई नहीं पड़ते क्योंकि ये व्यावहारिक, वैज्ञानिक रूप से लागू और यहां तक कि स भव नहीं है।  एक छोटे कस्बे में सीमित साधनों के साथ 10 से 15 बैडों वाले अस्पतालों से लेकर बड़े शहरों में आधुनिक सुविधाओं से लैस 500 बैडों वाले कार्पोरेट अस्पताल में उपचार खर्चे अलग-अलग हैं। दुर्घटना मामलों को छोड़कर ज्यादातर लोग उपचार के लिए सबसे अच्छे उपलब्ध चिकित्सीय सुविधाओं को चुनने की योजना बनाते हैं। 

इंस्पैक्टरी राज को मत लेकर आएं : निगरानी के नाम पर इंस्पैक्टरी राज को प्रोत्साहित करने की भूल हम न करें। निजी मैडीकल क्षेत्र संस्थान के कार्य में निरंकुश दखलअंदाजी भ्रष्टाचार तथा अनैतिक व्यवहार को जन्म देगी। उपायों को सुधारने की शुरूआत करने तथा कमियों को दूर करने के लिए अस्पतालों की मदद करने की बजाय इंस्पैक्टरी राज घूसखोरी तथा उगाही संस्कृति को प्रोत्साहित करेगा जिसका बोझ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मरीजों पर पड़ेगा। सिस्टम को साफ करने में इंस्पैक्टरी दृष्टिकोण को अपनाने का हमारे पास अच्छा अनुभव नहीं है। नकली दवाइयों की बिक्री को जांचने का जि मा ड्रग इंस्पैक्टरों का है। मैडीकल स्टोरों पर नकली दवाइयां क्यों बेची जा रही हैं? 

मिलावटी खाने की चीजें बेची जा रही हैं जो स्वास्थ्य इंस्पैक्टरों की निष्ठा तथा उनके कार्यों पर सवालिया निशान लगा रही हैं। यदि कोई निजी क्षेत्र का डॉक्टर कोविड-19 उपचार के बिल क्लीयरैंस के लिए  डिप्टी कमिश्नर या फिर सी.एम.ओ. कार्यालयों पर इंस्पैक्टरों के माध्यम से भेजता है तो कोई एक प्रणालीगत दुर्गंध के बारे में सोच सकता है जो पूरी प्रक्रिया में व्याप्त है। इसका नतीजा खुले या गुप्त तरीके से घूसखोरी होगा। 

बी.एम.सी. ने दिखाया रास्ता : बॉम्बे युनिसिपल कार्पोरेशन (बी.एम.सी.) ने एक अनोखा दृष्टिकोण अपनाया है ताकि निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य प्रोवाइडर कोविड-19 मरीजों से ओवरचाॄजग न करें। न ही ऐसे मरीज किसी भी असुविधा को झेलें। बी.एम.सी. ने 90 प्रोफैशनल एडिटर लगाए हैं जो प्रत्येक बिल को जांचेंगे। सरकारी विभाग से किसी भी इंस्पैक्टर की कोई भूमिका नहीं है। एक बार यदि रेट लिस्ट को अंतिम रूप दे दिया जाए तथा ट्रीटमैंट प्रोटोकॉल स्थापित हो जाए तो रोगियों के भागने की निश्चितता कम से कम हो जाएगी। हालांकि मरीजों के पास हमेशा से ही अपनी शिकायतों को दर्ज कराने की आजादी है यदि वे समझें कि सॢवस प्रोवाइडरों द्वारा वे छले गए हैं। 

महत्वपूर्ण भूमिका पर विचार किया जाए: अब हम एक नए साधारण युग में जी रहे हैं जोकि कोविड-19 द्वारा प्रभावित है। कोरोना वायरस महामारी तथा ब्लैक फंगस से निपटने की हमारी सामुदायिक जि मेदारी है। निजी क्षेत्र के अस्पतालों की भूमिका और ज्यादा महत्वपूर्ण हो रही है। उपलब्ध आंकड़े सुझाते हैं कि निजी क्षेत्र स्वास्थ्य देखभाल भारत में न केवल सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है बल्कि देश में कुल बैडों का 60 प्रतिशत तथा कुल अस्पतालों का करीब 70 प्रतिशत भी है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारतीय स्वास्थ्य देखभाल उद्योग 150 बिलियन अमरीकी डॉलर का है जो 2022 तक 280 बिलियन अमरीकी डॉलर को छू जाएगा। ऐसा प्राइवेट अस्पतालों द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही विशेष तथा अच्छी गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल सहूलतों की मांग बढऩे के कारण हुआ है।

प्रोत्साहन दिया जाना : अन्य सॢवस सैक्टर के घटकों की तरह निजी स्वास्थ्य देखभाल सेवा क्षेत्र को और अधिक मैडीकल टूरिज्म को आकॢषत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जो आज भारतीय स्वास्थ्य देखभाल बाजार में 2 बिलियन अमरीकी डॉलर जोड़ता है। एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैन्युफैक्चरर्स ऑफ मैडीकल डिवाइसिज (ए.आई.एम.ई.डी.) द्वारा एकत्रित आंकड़ों के अनुसार भारत मैडीकल डिवाइसों का करीब 80 से 90 प्रतिशत आयात करता है जो यह दर्शाता है कि वित्तीय वर्ष 2020 में मैडीकल डिवाइसों का आयात 24 प्रतिशत तक बढ़कर एक वर्ष में 38,837 करोड़ रुपए हो गया। मैडीकल उपकरणों पर आयात शुल्क 20.4 प्रतिशत रहा जोकि ड्यूटी फ्री होना चाहिए। 

निष्कर्ष : स्वतंत्रता के लगभग 75 वर्षों के बाद भी हम अपने स्वास्थ्य देखभाल सहूलतों के प्रबंधन में लचीलापन पैदा नहीं कर सके। यदि बाजार की गतिशीलता निजी क्षेत्र स्वास्थ्य देखभाल के कार्य लोकाचार पर केन्द्रित हो तो इसमें प्राथमिकता निवेश बढ़ाने की हो। सभी हितधारकों के लिए जीत को यकीनी बनाया जाए। डॉक्टरों को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि मैडीकल पेशेवर रोगियों के लिए भगवान से कम नहीं। क्योंकि डॉक्टर एक भद्र पेशे का हिस्सा है इसलिए उन्हें भी अपनी निष्ठा को कायम करना चाहिए। प्रचार और आलोचना के अलावा महामारी ने एक बार फिर भारतीय डॉक्टरों के लचीलेपन को साबित किया है। कई चुनौतियों तथा बाधाओं के बावजूद निजी और सरकारी क्षेत्र में हमारे डॉक्टर ज्यादातर मरीजों की जरूरत के समय देखभाल कर रहे हैं।(वाइस चेयरमैन सोनालीका ग्रुप, वाइस चेयरमैन (कैबिनेट मंत्री रैंक)पंजाब योजना बोर्ड)-अमृत सागर मित्तल


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