कुरीतियों और परंपराओं का बोझ ढोते रहना कतई जरूरी नहीं

punjabkesari.in Saturday, May 07, 2022 - 04:10 AM (IST)

अखबार में एक खबर पढ़कर मन तो विचलित हुआ ही, साथ में एक तरह की निराशा, अवसाद और झुंझलाहट भी हुई कि क्या वास्तव में हम आधुनिक युग में जी रहे हैं जिसमें विज्ञान और टैक्नोलॉजी का बोलबाला है, ढोंग, अंधविश्वास को मान्यता न दी जाती हो और मनुष्यता को अहमियत दी जाती हो। 

कथनी और करनी : खबर यह थी कि अल्मोड़ा जिले में एक अच्छी-खासी नौकरी कर रहे 27 साल के युवक को अपनी बारात निकालने से रोक दिया गया जिसमें लगभग 50 बाराती थे। लड़का दूल्हा बनकर घोड़ी पर सवार था। तभी स्वयं को तथाकथित ऊंची जाति का बताने वाला एक समूह जिसमें महिलाएं अधिक थीं, दूल्हे को नीचे उतरने का हुक्म इस धमकी के साथ देता है कि यदि वह घोड़ी पर चढ़कर गया तो उसका और सभी बारातियों का वही हश्र होगा जो कुछ वर्ष पहले पास के ही एक गांव में हुआ था। उस समय घटी यह घटना बहुत ही हृदय विदारक थी और काफी चर्चित भी हुई थी। इसमें चौदह लोगों की लिंचिंग हुई थी, जिनमें से पांच को जिंदा जला दिया गया था। 

इन दोनों घटनाओं में एक बात समान थी कि दूल्हे और बाराती दलित समाज के थे। वर्तमान घटना में दूल्हे के कुछ दोस्त जो दलित समुदाय के नहीं थे, इस तरह विवाह में अड़चन डाले जाने के खिलाफ थे। वर के पिता ने तय किया कि अब यह सहन नहीं होगा और अल्मोड़ा के डी.एम. और एस.सी.एस.टी. कमीशन में शिकायत की। पुलिस आई और 5 स्त्रियों और एक पुरुष के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज की। जिला प्रशासन की एक टीम ने आकर इस घटना के बारे में अधिक विवरण जुटाए और आश्वासन दिया कि यदि सरकार से आदेश मिला तो पीड़ित पक्ष को पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाएगी। 

उल्लेखनीय यह है कि पहली घटना बीस साल से ज्यादा पहले हुई थी और दूसरी अब हुई है, मतलब यह कि इतने वर्ष बीत जाने पर भी उच्च जाति और निम्न जाति के बीच खाई पैदा करने वाली सोच में कोई बदलाव नहीं हुआ है। इसका क्या कारण है? केवल कानून से इसका हल न निकला है, न निकलेगा, दंड देना बेकार साबित हुआ, शिक्षित होना भी काम न आया बल्कि समाज में एक प्रकार का डर बढ़ गया कि जिन लोगों को कानूनी संरक्षण मिला है, अगर वह न रहा तो क्या सामाजिक व्यवस्था में यह दोनों वर्ग एक-दूसरे के साथ सामान्य रूप से एक ही छत के नीचे रह पाएंगे? 

दोष कहां है? : चलिए इस बात पर गौर करते हैं कि समाज में कुरीतियां कैसे पनपती हैं, गलत परंपराएं किस प्रकार पड़ती हैं और किसी का सामान्य व्यवहार क्यों कर दूसरों के लिए आपत्तिजनक ही नहीं, असहनीय भी हो जाता है। आज भी हिंदुओं की कुछ जातियों, महिलाओं और अन्य धर्म के लोगों के प्रवेश पर अनेक मंदिरों में रोक लगी हुई है। इसका पालन न करने पर आपसी मनमुटाव, तिरस्कार, हीन भाव का व्यवहार करने से लेकर हिंसक घटनाएं तक घटती रहती हैं और विडंबना यह कि यह वर्तमान भारत में हो रहा है। 

कोई परंपरा कब पड़ी होगी या किसी कुरीति का जन्म कैसे हुआ होगा, इस पर सोचने से ज्यादा जरूरी यह है कि आज तक यह चल क्यों रही है? लोग इस व्यवस्था से चिपके हुए क्यों हैं? इसमें परिवर्तन करने या इसे समाप्त करने के बारे में सामाजिक पहल क्यों नहीं होती? सबसे बड़ी बात यह कि सरकार क्यों नहीं भेदभाव करने की परंपरा से जुड़े धार्मिक स्थलों की व्यवस्था को अपने हाथ में लेकर समस्या की जड़ को ही नष्ट करने के लिए कदम उठाती? 

छुआछूत कानूनन तो जुर्म है लेकिन यह आज भी समाज के लगभग प्रत्येक वर्ग में व्याप्त है चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, गरीब हो या अमीर, साधन संपन्न हो या कमजोर और यही नहीं अपने विभिन्न रूपों में हरेक व्यक्ति इसका पालन करता दिखाई देता है। उदाहरण के लिए घर में काम करने वाले घरेलू नौकरों के खाने पीने के बर्तन अलग रखना, कितनी मामूली बात है लेकिन कितनी गंभीर है क्योंकि इसी एक व्यवहार ने एक कभी न भरी जा सकने वाली खाई को जन्म दे दिया है। 

शादी ब्याह, त्यौहार, उत्सव या सामूहिक भोज के दौरान अक्सर इस परंपरा का पालन किया जाता है कि जो अपनी जाति से कम है, उसके खाने पीने से लेकर रहने तक का इंतजाम अलग हो और गलती से अगर कहीं बड़ी जाति जिसके यहां यह आयोजन हो रहा है, किसी वस्तु या खाद्य पदार्थ की अदला बदली हो जाए तो समझिए कि कयामत ही आ जाएगी। एेसा बवंडर मचेगा कि समारोह का मजा ही जाता रहेगा। परंपरा अपने आप में गलत नहीं होती लेकिन वह कुरीति तब बन जाती है जब उसका इस्तेमाल व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए किया जाता है या फिर अपना दबदबा कायम रखने और कमजोर व्यक्ति को सताने के लिए किया जाता हैं। 

इसी के साथ सच यह भी है कि जब सरकार ऐसे लोगों को प्रश्रय देती है, उन्हें बढ़ावा देती है और यही नहीं, इस तरह के काम करने पर ईनाम भी देती है तो समझना चाहिए कि समाज को धर्म और जाति के नाम पर बांटा जा रहा है। इसका परिणाम आज न दिखाई दे लेकिन भविष्य में कितना घातक सिद्ध होगा, यह समझना कोई राकेट साइंस नहीं है बल्कि बहुत साधारण सी बात है।-पूरन चंद सरीन
 


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