संविधान कागज पर लिखी इबारत मात्र नहीं

punjabkesari.in Sunday, May 16, 2021 - 06:23 AM (IST)

सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से एक सीधी बात कही है-हम पर भरोसा रखिए और हमारे काम में दखलंदाजी मत कीजिए! हमारी सबसे बड़ी अदालत को उसने यह बताने व समझाने की कोशिश की कि कोविड की आंधी से लडऩे, उसे थामने और उसे परास्त करने की उसकी सारी योजनाएं गहरे विमर्श के बाद बनाई गई हैं; वैक्सीन लगाने-बांटने और उसकी कीमत निर्धारित करने के पीछे भी ऐसा ही गहन चिंतन किया गया है। इसलिए हमसे कुछ न बोलिए! 

यह सब तब शुरू हुआ जब सर्वोच्च न्यायालय ने ऑक्सीजन के लिए तड़पते-मरते देश का हाथ थामा और केंद्र सरकार के हाथ से ऑक्सीजन का वितरण अपने हाथ में ले लिया। न्यायालय ने यह तब किया जब बार-बार कहने के बाद भी केंद्र सरकार दिल्ली व देश के दूसरे राज्यों को आवश्यक ऑक्सीजन पहुंचाने में विफल होती रही। यह सब तब से शुरू हुआ है जबसे सर्वोच्च न्यायालय की सर्वोच्च कुर्सी पर रमन्ना साहब विराजे हैं और सर्वोच्च न्यायालय ने देखना-सुनना-बोलना शुरू कर दिया है। लेकिन इस दारुण दशा में विधायिका- न्यायपालिका-कार्यपालिका का संवैधानिक संतुलन बिगड़े, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा। न्यायपालिका देश चलाने लगे और अक्षम-असंवेदशील सरकारें-पार्टियां चुनाव लड़ने भर को रहें, तो यह किसी के हित में नहीं है। 

संविधान कागज पर लिखी इबारत मात्र नहीं है बल्कि देश की स यता-संस्कृति का भी वाहक है। संविधान बदला जा सकता है, सुधारा जा सकता है, संशोधित किया जा सकता है लेकिन छला नहीं जा सकता। संकट के इस दौर में भी हमें संविधान के इस स्वरूप का ध्यान रखना ही चाहिए और उसकी रोशनी में इस अंधेरे दौर को पार करने का दायित्व लेना चाहिए। यह जीवन बचाने और विश्वास न टूटने देने का दौर है। एक अच्छा रास्ता सर्वोच्च न्यायालय ने दिखाया है। जिस तरह उसने ऑक्सीजन के लिए एक कार्यदल गठित कर, सरकार को उस जि मेवारी से अलग कर दिया है, उसी तरह एक कोरोना नियंत्रण केंद्रीय संचालन समिति का अविलंब गठन प्रधान न्यायाधीश व उनके दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों की अध्यक्षता में होना चाहिए। 

इस राष्ट्रीय कार्यदल में सामाजिक कार्यकत्र्ता, ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव रखने वाले डॉक्टर, अस्पतालों के चुने प्रतिनिधि, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, कोविड तथा संक्रमण-विशेषज्ञ लिए जाने चाहिएं। यही तत्पर कार्यदल कोरोना के हर मामले में अंतिम फैसला करेगा और सरकार व सरकारी मशीनरी उसका अनुपालन करेगी। यह वह भारत है जहां न मीडिया है, न डाक्टर, न अस्पताल, न दवा! यहां जिंदगी और मौत के बीच खड़ा होने वाला कोई तंत्र नहीं है। मौत के आंकड़ों में अभी तो 10 प्रतिशत का उछाल आया है-प्रतिदिन 4000-जब हम ग्रामीण भारत के आंकड़े ला सकेंगे तब पूरे मामले की भयानकता सामने आएगी। 

पंचायतों के सारे पदाधिकारियों, ग्रामीण नर्सों, आंगनवाड़ी सेविकाओं, आशा स्वयं सेविकाओं की ताकत इसमें जोडऩी होगी। अंतिम वर्ष की पढ़ाई पूरी कर रहे डाक्टर, नर्सें, प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे चिकित्सक, वे सभी अवकाशप्राप्त डाक्टर जो काम करने की स्थिति में हैं, इन सबको जोड़ कर एक आपातकालीन ढांचा बनाया जा सकता है।

स्कूल-कॉलेज के युवा लंबे समय से घरों में कैद हैं। नौकरीपेशा लोग घरों से अपनी नौकरी कर रहे हैं। इन सबको 4-6 घंटे समाज में काम करना होगा। ये कोरोना बचाव की जरूरी बातों का प्रचार करेंगे, मास्क व सफाई के बारे में जागरूकता फैलाएंगे,  मरीजों को चिकित्सा सुविधा तक पहुंचाएंगे, वैक्सीनेशन केंद्रों पर शांति-व्यवस्था बनाने का काम करेंगे। इनमें से अधिकांश क प्यूटर व स्मार्टफोन चलाना जानते हैं। यह रुपए-दवाइयां-वैंटीलेटर-ऑक्सीजन आदि गिनने का नहीं, नागरिकों को गिनने का वक्त है।

आजादी के बाद  जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि भ्रष्टाचारियों को उनके सबसे निकट के बिजली के खंभे से लटका दिया जाएगा। वे वैसा कर नहीं सके लेकिन आज उससे कम करने से बात बनेगी नही। कोरोना मारे या भुखमरी, मौत तो मौत होती है। इसलिए शहरी बेरोजगारों और ग्रामीण आबादी को ध्यान में रख कर तुरंत व्यवस्थाएं बनानी हैं। एक आदेश से मनरेगा को मजबूत आर्थिक आधार दे कर व्यापक करने की जरूरत है जिसमें सड़कें, खेती आदि के काम से आगे जा कर सारे ग्रामीण जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने, बांधों की मुर मत करने, गांवों तक बिजली पहुंचाने की व्यवस्था खड़ी करने, कोरोना केंद्रों तक लोगों को लाने-ले जाने का काम शामिल करना चाहिए। 

शवों के अंतिम संस्कार को हमने कोरोना काल में कितना अमानवीय बना दिया है! स्कूल-कॉलेज के प्राध्यापकों को यह जि मेवारी दी जानी चाहिए ताकि हरेक के विश्वास के अनुरूप उसे संसार से विदाई दी जा सके। इन सारे कामों में संक्रमण का खतरा है। इसलिए सावधानी से काम करना है लेकिन यह समझना भी है कि निष्क्रियता से इसका मुकाबला संभव नहीं है। यह तो घरों में घुस कर हमें मार ही रहा है।  कोरोना हमारे भीतर कायरता नहीं, सक्रियता का बोध जगाए, तो जो असमय चले गए उन सबसे हम माफी मांगने लायक बनेंगे।-कुमार प्रशांत


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