इतिहास फिर से लिखना या छिपाना उचित नहीं

punjabkesari.in Thursday, Jul 07, 2022 - 04:12 AM (IST)

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एन.सी.ई.आर.टी.), जिसे स्कूलों के लिए पाठ्य पुस्तकें स्वीकृत करने का जिम्मा सौंपा गया है,  द्वारा वर्तमान में जारी बड़ी कार्रवाई पाठ्य पुस्तकों की विषय-वस्तु में व्यापक बदलाव ला रही है जिसे इतिहास को बिगाड़ने तथा पुन: लिखने के तौर पर देखा जा रहा है। 

यह चिंताजनक है कि विपक्षी नेता, विद्वान, शिक्षाविद्, इतिहासकार, सामाजिक नेता तथा मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इतिहास, राजनीति विज्ञान तथा 6वीं से 12वीं कक्षा के लिए सामाजिक विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों में किए जा रहे महत्वपूर्ण बदलावों को लेकर चुप है। किए जा रहे बदलावों के भयानक परिणाम होंगे जिनका समाज पर एक दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा। 2014 के बाद से पाठ्य पुस्तकों में यह तीसरा और सबसे बड़ा संशोधन है। 

उदाहरण के लिए, 12वीं कक्षा के लिए राजनीति की 2 पाठ्य पुस्तकों में से 2002 के गुजरात दंगों का पूरे का पूरा उद्धरण हटा दिया गया है। इनमें गोदरा में कार सेवकों से भरी ट्रेन की एक बोगी को चलाने सहित घटनाक्रमों का क्रमवार विवरण तथा उसके बाद मुसलमानों के खिलाफ भड़की हिंसा का ब्यौरा था। इसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा तत्कालीन गुजरात सरकार द्वारा स्थिति से निपटने में असफल रहने के लिए की गई आलोचना का भी विवरण था।

हटाए गए पैराग्राफ में कहा गया था कि ‘गुजरात जैसी घटनाएं हमें राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धार्मिक भावनाओं के इस्तेमाल के खतरों बारे सतर्क करती हैं। यह लोकतांत्रिक नीतियों के लिए खतरा पैदा करती हैं।’इनमें से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ‘राजधर्म’बारे प्रसिद्ध टिप्पणी को भी हटा दिया गया। 

अंग्रेजी के एक समाचार पत्र द्वारा खोजी समाचार कहानियों की एक शृंखला, जिनमें इतिहास, राजनीतिक ज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान की 21 पाठ्य पुस्तकों की विषय-वस्तु में बदलावों बारे बताया गया है, में कहा गया है कि साम्प्रदायिक हमलों के बारे में कई उद्धरणों को हटा दिया गया है। उदाहरण के लिए एक ऐसे पैरे को हटाया गया जिसमें उल्लेख किया गया था कि कैसे साम्प्रदायिकता लोगों को ‘हत्या करने, बलात्कार तथा अन्य समुदायों के लोगों को लूटने के लिए प्रेरित करती है ताकि अपना गौरव बहाल किया जा सके।’

हटाए गए पैरे में यह भी कहा गया था कि ‘2 सर्वाधिक दुखद साम्प्रदायिक हिंसा की समकालीन घटनाएं दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के अंतर्गत हुईं। 1984 में दिल्ली के सिख विरोधी दंगे कांग्रेस शासन के अंतर्गत हुए। कई प्रदर्शनों तथा चिपको आंदोलन, भारतीय किसान यूनियन द्वारा किए गए आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन तथा सूचना का अधिकार के लिए आंदोलन जैसे कई सामाजिक आंदोलनों बारे उद्धरण पाठ्य पुस्तकों से निकाल दिए गए।’

उल्लेखनीय है कि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के बारे में भी उद्धरणों को बिगाड़ा गया। इसमें मानवाधिकारों के उल्लंघन, राजनीतिक नेताओं की गिरफ्तारी, मीडिया पर सैंसरशिप, जबरन नसबंदी, यातनाएं देना तथा हिरासत में मौतों और बड़े पैमाने पर गरीबों के विस्थापन जैसी ज्यादतियों को सूचीबद्ध किया गया था। आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों के बारे में उद्धरणों को चुनिंदा तौर पर हटाना भी ऐसी कार्रवाइयों को न्यायोचित ठहराने का संदेश देने के एक प्रयास के तौर पर देखा जाता है। इसके अतिरिक्त कई ऐतिहासिक उद्धरणों तथा उत्तर-पूर्व में नक्सलवाद तथा विद्रोही गतिविधियों जैसे प्रदर्शन आंदोलनों बारे उल्लेखों को भी हटा दिया गया। 

समाचार पत्र की खोजी टीम द्वारा  एक अन्य महत्वपूर्ण खोज यह थी कि पाठ्यक्रम को रिवाइज करने के लिए बड़ी संख्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के कार्यकत्र्ता तथा समर्थक कार्य कर रहे थे। इनमें स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक तथा विद्या भारती के प्रमुख शामिल थे। जांच में पाया गया कि पाठ्यक्रम बदलावों पर काम करने वाले 25 राष्ट्रीय केंद्रीय समूहों में से कम से कम 17 में आर.एस.एस. से जुड़े 24 सदस्यों के संबंध पाए गए। 

ये बदलाव स्कूली पुस्तकों तथा राजनीति के लिए एक विशेष तरह के दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। इतिहास के तथ्यों को छुपाकर सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि विद्यार्थी समाज तथा राजनीति पर नजर डालने के लिए एक आलोचनात्मक दिमाग विकसित न कर सकें। इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास दीर्घकाल में प्रतिकूल साबित हो सकता है। जैसे कि पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल का प्रसिद्ध कथन है कि-जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते वे इसे दोहराने का अपराध करते हैं। इसी तरह से इतिहास को नजरअंदाज करना अथवा छुपाना दीर्घकाल में बहुत अधिक नुक्सान पहुंचा सकता है।-विपिन पब्बी 
 


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