पुलिस कर्मियों को तनावमुक्त रख कर उनका मनोबल बनाए रखना आवश्यक

punjabkesari.in Tuesday, Jul 20, 2021 - 06:15 AM (IST)

आज भारत की पुलिस जिन परिस्थितियों एवं वातावरण में काम कर रही है वह तनावपूर्ण एवं  असंतोषजनक है। पुलिस कार्यों में असीमित विस्तार, अपराधों व सामाजिक बुराइयों में वृद्धि, राजनीतिक हस्तक्षेप इत्यादि पुलिस के मनोबल को गिराने के लिए काफी सीमा तक उत्तरदायी हैं। विभागीय सुविधाओं का पर्याप्त मात्रा में न होना, लगातार ड्यूटी पर रहना, छुट्टी न मिलना, आवास इत्यादि की उचित व्यवस्था न होना इत्यादि कुछ ऐसी आधारभूत समस्याएं हैं जिनके कारण पुलिसजन तनावपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। इसके अतिरिक्त अधीनस्थ पुलिस कर्मचारियों  को अपने उच्च अधिकारियों की तरफ  से भी कई प्रकार का तनाव मिलता रहता है, जैसे : 

1. जब कोई संगीन अपराध जैसे कि बलात्कार या फिर हत्या जैसी घटना घट जातीहै तब अधिकारियों पर चारों तरफ  से दबाव होता है कि मुलजिमों को तुरंत पकड़ा जाए तथा अधिकारी इस दबाव व तनाव को अपने अधीनस्थ कर्मियों पर स्थानांतरित कर देते हैं तथा इसी भागमभाग में कई बार तो दोषरहित व्यक्तियों को भी पुलिस की बर्बरता झेलनी पड़ जाती है। हिमाचल प्रदेश में तीन-चार वर्ष पहले हुआ गुडिय़ा हत्याकांड इसका जीता-जागता उदाहरण है। मुलजिमों को तुरंत पकडऩे की होड़ में निर्दोष व्यक्तियों को पुलिस द्वारा गिर तार किया गया, परिणामस्वरूप कई कर्मचारियों व अधिकारियों को जेल में रहना पड़ा।

2. पुलिस अधिकारियों के विरोधाभास आदेश भी पुलिसकर्मियों को दुविधा की स्थिति में डाल देते हैं। उदाहरणत: अधिकारियों के आदेश होते हैं कि खनन, आबकारी व वन माफिया पर शिकंजा कसा जाए और जब पुलिसकर्मी आदेशों का पालन करते हुए अपराधियों की धर-पकड़ शुरू करते हैं तब उन्हें अपने आकाओं के  लोगों को छोड़ देने के आदेश दे दिए जाते हैं और यदि कोई कर्मी अपने कत्र्तव्यों का पालन करता हुआ निष्ठा से कार्य करता है तब उसे स्थानांतरित करके अनचाही जगह पर भेज दिया जाता है। इसी तरह ट्रैफिक व्यवस्था में भी होता है।

3. पुलिस कर्मियों को दिन में 12 से 14 घंटे अपनी ड्यूटी देनी होती है तथा उनका विभिन्न प्रकार के लोगों से वास्ता पड़ता रहता है। उन्हें अपने मोबाइल व वायरलैस सैट पर संदेश भी सुनने होते हैं तथा साथ ही बिगडै़ल व बदमाश अपराधियों से भी जूझना पड़ता है। ऐसी परिस्थितियों में उनका स्वभाव चिड़चिड़ा होना स्वाभाविक ही है। अधिकारी उनकी बात सुने बिना उन्हें या तो सस्पैंड या फिर वहां से कहीं और जगह स्थानांतरित कर देते हैं। 

4. एक पुलिस वाला जब किसी गंभीर अपराधी को एक जगह से दूसरी जगह ले जा रहा होता है तो वह अपराधी पुलिस वाले की मजबूरी का फायदा उठा कर किसी भीड़ वाली जगह से या फिर टॉयलैट/बाथरूम जाने के बहाने से फरार होने में कामयाब हो जाता है तथा अधिकारी लोग उस आरक्षी को बिना किसी प्रारंभिक जांच के ही निलंबित कर देते हैं तथा लापरवाही के लिए मुकद्दमा भी दर्ज कर लिया जाता है।

5. अधीनस्थ कर्मचारियों को उनकी छोटी-छोटी अवहेलनाओं के लिए निलंबित कर दिया जाता है। निलंबन होने पर उसका अपने परिवार, विभाग व समाज में बहुत बड़ा तिरस्कार होता है। बात यहीं समाप्त नहीं होती, उसका निलंबन कई बार तो महीनों तक चलता है तथा विभागीय जांच भी कई महीनों तक लंबित पड़ी रहती है। कत्र्तव्यहीनता के लिए सजा देना आवश्यक है, मगर सजा उसके कदाचार के अनुपात में ही होनी चाहिए न कि साधारण और गंभीर अपराध के लिए एक ही पैमाने का प्रयोग होना चाहिए। अधिकारियों का ऐसा तानाशाहीपूर्ण नजरिया संबंधित कर्मचारियों को न्यायालयों का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर कर देता हैै। कई अधिकारी तो अपने जवानों से पक्षपात वाला रवैया भी अपनाते हैं तथा अपने मुंहलग व चाटुकारिता में माहिर कर्मचारियों को उनकी मनचाही सौगातें लुटाते रहते हैं। परिणामस्वरूप मेहनती व कुशल कर्मचारियों में तनाव की भावना पनपने लगती है।

6. कई बार अधिकारी अपने ही अनुचित आदेशों के कारण आम जनता की आलोचना का कारण बन जाते हैं तथा ऐसे में वे इस कमी का ठीकरा अधीनस्थों के सिर पर फोड़ देते हैं तथा जब कर्मचारी कोई अच्छा काम देते हैं तो उसका श्रेय अधिकारी खुद उठा लेते हैं। 

7. कई अधिकारियों का माफिया के लोगों के साथ सीधा व्यक्तिगत संबंध होता है तथा वे अपनी आंखों के सामने कई प्रकार के आर्थिक अपराध होने देते हैं तथा पकड़े जाने पर सारा दोष अधीनस्थ अधिकारियों के माथे पर मढ़ देते हैं। उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि अधीनस्थ पुलिस कर्मचारियों को तनाव मुक्त रखने व उनका मनोबल बनाए रखने के लिए पुलिस नेतृत्व को ईमानदारी, निष्ठा व निष्पक्षता से कार्य करना होगा तथा राजनीतिज्ञों के अवांछित आदेशों को नकारते हुए अपनी कुशलता का प्रमाण देकर कर्मचारियों को निर्भीक व सत्यनिष्ठ बनाकर आम जनता की सेवा करने के लिए प्रेरित करना होगा।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड)


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