‘क्या यह सत्ता का दुरुपयोग है’

punjabkesari.in Friday, Mar 12, 2021 - 02:52 AM (IST)

 अनुराग कश्यप तथा तापसी पन्नू पर आयकर के छापे क्या सत्ता का दुरुपयोग है? एक शब्द में कहें तो ‘हां’ क्योंकि केवल सरकार के आलोचकों को निशाना बनाया गया है मगर यदि मनोरंजन उद्योग के इन दो प्रतिनिधियों ने बनता कर नहीं चुकाया है तो उत्तर ‘नहीं’ होगा। आलोचकों तथा विरोधियों के खिलाफ बदले की कार्रवाई करना सत्ताधारियों के लिए एक सामान्य काम बन गया है। संभावित शिकारों के लिए अपनाने के लिए बेहतरीन रास्ता यह है कि अपना खाता साफ रखें। यह एक ऐसे उद्योग के लिए कठिन हो सकता है जिसके व्यवसाय में भारी मात्रा में बेहिसाब नकदी का खुलकर इस्तेमाल होता है। यदि यह ऐसा नहीं कर सकते तो अपना मुंह बंद रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। 

सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने स्पष्ट तौर पर इस बात से इंकार किया है कि भाजपा का इन छापों में कोई हाथ है। आयकर अधिकारियों ने इस आधार पर मंत्री के वक्तव्य का समर्थन किया है कि उन्हें खातों में ऐसी एंट्रियां मिली हैं जो संदेह पैदा करती हैं। इस मुद्दे पर लेखक तथा वक्ता बंटे हुए हैं क्योंकि उनके सामने कई अन्य सार्वजनिक मुद्दे हैं मगर अपनी नीतियों के विरोधियों पर शिकंजा कसने के लिए ताकत का इस्तेमाल करना एक पुराना खेल है। 

आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी चुनावों में हार गईं। उन्हें कुछ समय के लिए जेल जाना पड़ा। लेकिन इसके शीघ्र बाद उन्होंने एक संयुक्त मोर्चा पेश करने में विपक्ष की अक्षमता का फायदा उठाया और 7 रेस कोर्स रोड में वापसी की। किसानों के प्रदर्शन तथा दिशा रवि, सफोरा जरगर तथा रोना विल्सन  पर अन्याय के बावजूद मोदी जी अपनी मचान में सुरक्षित हैं। भाजपा साम्प्रदायिक आधार पर देश को बांटने में सफल रही है। वर्तमान में यह अभेद्य है। विरोधियों तथा असंतुष्टों को यही सलाह है कि वे ‘संकटों के खिलाफ खड़े होने की बजाय सहन करना सीखें’ क्योंकि जब तक मोदी हैं इसके खत्म होने के कोई अवसर नहीं। यह एक कड़वा सत्य है जिसे मतभेद रखने वाले सभी लोगों को अवश्य स्वीकार करना होगा। 

मगर अभी तक सब कुछ नहीं गंवाया गया है। हमारे जीवन की गुणवत्ता को जीवंत बनाए रखने के लिए कुछ दयालु लोग हैं। दिल्ली सत्र न्यायालय के न्यायाधीश धर्मेन्द्र राणा, दिल्ली हाईकोर्ट के जस्ट्सि मुरलीधर, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के जज मित्तल तथा राय जैसे कुछ सचेत न्यायाधीशों ने निर्णय किया है कि ‘बस, बहुत हो चुका।’ उन्होंने सच तथा कानून के अनुसार न्याय देने के अपने संवैधानिक कत्र्तव्य को पूरा करने का फैसला किया। हम उन्हें सलाम करते हैं। 

दिन को और भी खुशगवार बनाने के लिए हमने समाचार पत्र (4 मार्च) में पढ़ा कि सुप्रीमकोर्ट ने भी अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। न्यायाधीशों संजय किशन कौल तथा हेमंत गुप्ता ने एक याचिका खारिज कर दी जिसमें संविधान की धारा 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को समाप्त करने के केंद्र के निर्णय को अस्वीकार करने के लिए जम्मू-कश्मीर के एक पूर्व मुख्यमंत्री पर मुकद्दमा चलाने की मांग की गई थी। अदालत ने बिल्कुल सही कहा कि असहमति देशद्रोह नहीं है तथा नागरिकों पर सरकार विरोधी विचारों के लिए मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता। अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, जो घाटी से एक चुने गए सांसद हैं, को अयोग्य घोषित करने की मांग वाली ओछी याचिका के लिए याचिकाकत्र्ता पर जुर्माना लगाया। 

मोदी सरकार का संसद में बिना उचित चर्चा करवाए या संसदीय प्रक्रियाओं का पालन किए बगैर कानूनों को पारित करवाने, सरकारी नीतियों के साथ असहमत होने वाले कार्यकत्र्ताओं तथा पत्रकारों को निशाना बनाने तथा देशद्रोह व यू.ए.पी.ए. जैसे तानाशाहीपूर्ण कानूनों का आलोचकों को चुप करवाने के लिए इस्तेमाल की ओर झुकाव देश तथा विदेशों से विपरीत आकर्षण प्राप्त कर रहा है। लंदन के सम्मानित साप्ताहिक ‘द इकॉनोमिस्ट’ तथा काफी पढ़े जाने वाले डेली अमरीका के ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने नागरिकों की सामाजिक स्वतंत्रताओं के इसके खराब रिकार्ड के लिए मोदी सरकार की आलोचना की थी। लोकतंत्र के एक अन्य रखवाले  ‘इंटरनैट फ्रीडम फाऊंडेशन’ ने दर्ज किया कि विश्व भर में इंटरनैट 109 बार बंद किया गया जिसमें से सबसे अधिक बार ऐसा हमारे अपने ही देश भारत में हुआ। 

2014 में पहली बार सत्ता संभालने के बाद मोदी जी वैश्विक परिदृश्य पर छा गए थे। विदेशों में भारतीयों का अत्यंत सम्मान किया जाता था। आह, अब यह बदल जाएगा! जब अंतर्राष्ट्रीय यात्राएं बहाल होंगी, भारतीय पासपोर्ट धारकों को फिर से विदेशों में शॄमदगी का सामना करना पड़ेगा। मोदी काल के शुरूआती वर्षों में कहानी अलग थी। उत्पाती तत्वों के सामने घुटने टेक कर, बिना लागू हुए ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे के साथ सत्ता पर कब्जा जमाए रखने को चुन कर मोदी शासन हमारे प्यारे देश को एक ऐसे लक्ष्य की ओर ले जा रहा है जो इसके नागरिकों को सीधे विभाजित कर देगा और मुझे इसे लेकर डर है। 

यदि मोदी वास्तव में ‘सबका साथ सबका विकास’ में विश्वास रखते हैं तथा हाल ही में उन्होंने इसमें ‘सबका विश्वास’ शामिल है तो उन्हें भारतीय पीनल कोड से देशद्रोह की धारा एस. 124 (ए) को हटा देना चाहिए। यह कानून की सर्वाधिक दुरुपयोग की जाने वाली धारा है जिसे मूल रूप से ब्रितानियों ने अपने हित के लिए लागू किया था। अब इसका दुरुपयोग भाजपा शासित राज्यों में मुसलमानों, वामपंथियों, छात्रों, किसानों, पर्यावरण कार्यकत्र्ताओं तथा अपने स्थान की मांग करने वाले दलितों सहित आलोचकों तथा ‘सरकार के दुश्मनों’ को चुप कराने के लिए पुलिस बलों द्वारा किया जा रहा है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 


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