थर्ड जैंडर समाज को मंजूर है या नहीं

punjabkesari.in Saturday, Apr 29, 2023 - 04:09 AM (IST)

विषय बहुत संवेदनशील और गंभीर है लेकिन समझ में आना और उस पर चर्चा करना आवश्यक है। जन्म के समय डॉक्टर, नर्स, दाई या जिसने भी प्रसव कराया हो, उसके द्वारा नवजात शिशु का लिंग निर्धारण जीवन भर मान्य होता है अर्थात लड़का, लड़की या थर्ड जैंडर। 

जन्मजात अधिकार और  स्वभाव : स्त्री पुरुष को जन्म से ही सभी संवैधानिक, कानूनी, सामाजिक और पारिवारिक अधिकार मिल जाया करते हैं और अब एक लंबी लड़ाई के बाद थर्ड जैंडर को भी इनका पात्र मान लिया गया है लेकिन सीमित ही सही, अच्छी खासी-तादाद ऐसे प्राणियों की भी है जो इन तीनों की परिभाषा में नहीं आते। प्रश्न यह है कि क्या इन्हें भी सामान्य जीवन जीने का अधिकार है? हालांकि बहुत से देशों जिनमें आधुनिक और समृद्ध  कहे  जाने वाले देश हैं, इन्हें मान्यता दे दी है परंतु भारत में अभी इस पर सोच-विचार ही हो रहा है और मामला अदालत से लेकर संसद तक में उछल रहा है मतलब कि लटक रहा है। 

जैसे-जैसे शिशु की उम्र बढ़ती है, उसका मानसिक और शारीरिक विकास होने लगता है और वह अपने आस-पास अर्थात्  परिवार और संबंधियों की जो पहचान उसे बताई जाती है, उसके अनुरूप उन्हें समझने लगता है और रिश्तों की गरिमा के अनुसार आचरण करता है। यदि कहीं भूल-चूक होती है तो घर परिवार के सदस्य सुधार कर देते हैं और वह अपने परिवेश और जिम्मेदारियों को जानने-समझने  लगता है। एक ओर चाहे लड़का हो या लड़की, उस का पारिवारिक व्यक्तित्व विकसित होता जाता है और दूसरी ओर इसी के साथ उसकी अपनी पर्सनैलिटी भी बनने लगती है। शरीर के साथ भावनाओं का भी मेल होने लगता है। 

वह कैसा दिखे, क्या पहने, कैसे व्यवहार करे, यहां तक कि बोलने-चालने, चलने-फिरने का उसका एक अपना ही स्टाइल बनने लगता है अर्थात् उसकी अपनी पहचान बनती जाती है। हालांकि इसमें माता-पिता और जान पहचान वालों का भी असर पड़ता है लेकिन वह मामूली होता है, उसके व्यक्तित्व  का  बड़ा हिस्सा प्राकृतिक रूप से पनपता है जो हो सकता है कि पारिवारिक मान्यताओं और पीढिय़ों से चली आ रही परंपराओं के खिलाफ हो जिसके कारण उसे अवहेलना, तिरस्कार और यहां तक कि मर्यादा तोडऩे, मनमानी या अनोखी बात करने का आरोप भी सहना पड़ता है। हो सकता है उसे परिवार से निकाला या संपत्ति से बेदखल किए जाने का भी सामना करना पड़े, एकाकी जीवन व्यतीत करना पड़े और एक सामान्य व्यक्ति की तरह उसे न रहने दिया जाए। 

थर्ड जैंडर और उसके रूप : अब हम  इस  बात पर आते हैं कि यह जो सामान्य  मर्द और औरत से अलग उसका तीसरा जैंडर अपने  अनेक रूपों में सामने आता है, वह समाज को मंजूर है या नहीं। थोड़ा और खुलासा करते हैं। मान लीजिए, बड़ा होने पर उसके विवाह के प्रस्ताव आते हैं। यदि वह सामान्य स्त्री या पुरुष है, तब आमतौर से कोई समस्या नहीं होती चाहे वह परिवार की सहमति से हो या प्रेम विवाह हो। इसके विपरीत यदि उसकी भावनाएं सामान्य स्त्री-पुरुष जैसी नहीं हैं, तब वह और उसका जीवन एक समस्या बन जाता है जो कभी-कभी बहुत बड़ी मुसीबत  का कारण हो जाता है। 

अब एक दूसरी स्थिति है जिसमें जन्म से किसी स्त्री या पुरुष का जवान होने पर अपने ही लिंग के व्यक्ति से आकर्षण हो जाता है। दोनों एक-दूसरे को इतना पसंद करने लगते हैं कि सामान्य रूप से विवाहित जीवन बिताना चाहते हैं। यह जो एक-दूजे के प्रति लगाव है, समर्पण की भावना है तो यह भी प्राकृतिक है लेकिन बहुत से लोग स्वीकार नहीं कर पाते कि यह मानव जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया है। 

प्रकृति ने जिसे जैसा जीवन दिया, अपना अलग स्वभाव दिया और जो जैसे हैं, वैसे ही जीना चाहते हैं तो इसमें समाज या कानून की दखलंदाजी क्यों होनी चाहिए? यदि कोई समान ङ्क्षलग के व्यक्ति दंपति बनकर रहना चाहते हैं, संतान की इच्छा गोद लेकर पूरी करना चाहते हैं, पारिवारिक विरासत या सम्पत्ति पर अधिकार चाहते हैं या अपनी दत्तक या प्राकृतिक रूप से जन्मी संतान को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं तो इसमें किसी को क्यों कोई एतराज होना चाहिए ? 

इतिहास क्या कहता है : भारत के पौराणिक इतिहास में ऐसी घटनाओं की भरमार है जिनमें थर्ड जैंडर को सामान्य रूप से प्राकृतिक वरदान समझा गया न कि जैसा वर्तमान समय में कलंक या दोष समझा जाता है। भगवान विष्णु की गर्भनाल से ब्रह्मा की उत्पत्ति, उनके मोहिनी रूप में असुरों का वध और यही नहीं त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, महेश की उत्पत्ति की कथा क्या यह नहीं बताती कि किसी व्यक्ति के शरीर में स्त्री और पुरुष दोनों के प्रजनन यानी री-प्रोडक्टिव  अंग हो सकते हैं। 

आज भी ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें कुदरत ने दोनों अंग दिए हैं, वे पुरुष की भांति संभोग भी कर सकते हैं और स्त्री की तरह शिशु को जन्म भी दे सकते हैं। ऋषि अगस्त्य और वशिष्ठ की उत्पत्ति, भगवान अय्यपा का प्रादुर्भाव और मित्र और वरुण के समलैंगिक संबंध और भगवान कार्तिकेय का जन्म क्या है?-पूरन चंद सरीन
 


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