क्या संघ की सोच में बदलाव आ रहा है!

punjabkesari.in Sunday, Jul 11, 2021 - 05:28 AM (IST)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि जो हिन्दू यह मानता है कि मुसलमानों को भारत में नहीं रहना चाहिए वह हिन्दू नहीं है और सभी भारतीयों का डी.एन.ए. एक ही है लिहाजा ‘लिचिंग’ करने वाले हिंदुत्व के विरोधी हैं। संघ प्रमुख का कट्टर सोच को आम मंच से नकारना भारतीय समाज पर दूरगामी प्रभाव डालेगा। 

संघ के मुखिया के इस कथन के तीन दिन पहले पिउ रिसर्च फाऊंडेशन के ताजा शोध-परिणाम चौंकाने वाले थे। चूंकि पूरी दुनिया में यह शोध परिणाम जाना जाएगा लिहाजा संभव है संघ प्रमुख संगठन की स्थिति साफ करना चाहते हों। सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए यह वेक-अप काल भी है बशर्ते वह इस शोध को गहराई तक समझ पाए। इस शोध और पहले के अन्य शोध-परिणामों के आधार पर अपनी पुस्तक ‘धर्म का गिरता प्रभाव’ में रोनाल्ड इन्ग्लेहार्ट ने पाया कि 2007 और 2019 के दरमियान धार्मिकता की भावना दुनिया में कम हुई लेकिन भारत में यह बढ़ी है। यह साबित करता है कि शिक्षा और धार्मिकता का कोई सीधा संबंध नहीं है। 

जरा शोध के निष्कर्षों पर नजर डालें। गाय हिन्दुओं के लिए पवित्र है और 72 फीसदी हिन्दू मानते हैं कि जो गौमांस खाता है वह हिन्दू नहीं है लेकिन 49 प्रतिशत हिन्दू मानते हैं कि भगवान को न मानने वाला भी हिन्दू हो सकता है और 48 प्रतिशत मानते हैं कि हिन्दू बने रहने के लिए मंदिर जाना जरूरी नहीं।

64 फीसदी हिन्दू कहते हैं कि भारतीय होने के लिए हिन्दू होना जरूरी है जबकि 59 प्रतिशत मानते हैं कि भारतीय होने के लिए हिंदी भाषा जानना जरूरी है। और ये दोनों बातें जो हिन्दू मानते हैं और जिन्होंने भाजपा को सन 2019 के आम चुनाव में वोट दिया है वे देश की कुल हिन्दू आबादी का लगभग एक-तिहाई हैं। सच्चा भारतीय होने के लिए हिन्दू होना जरूरी मानने वाले हिन्दू दक्षिण भारत में मात्र 42 प्रतिशत हैं जबकि मध्य भारत और उत्तर भारत में क्रमश: 83 और 69 प्रतिशत। अब इन परिणामों को मिलाकर देखें तो समझ में आएगा कैसे कोई भाजपा सत्ता में आती है और कैसे कोई कांग्रेस अपना जनाधार खोने लगती है। और यह कब तक चलेगा। 

भाजपा का संकट कहां है : देश में लगभग 80 प्रतिशत हिंदू हैं लेकिन मोदी की इन्तेहाई मकबूलियत के बावजूद सन 2019 में वोट 37.3 फीसदी मिले यानी कम से कम हर दूसरे हिन्दू ने वोट नहीं दिया। इसका कारण हीं मोदी का वाटरलू बन सकता है। शोध में एक बड़ी तादाद में ब्राह्मणों का कहना है कि वे अपने पड़ोस में दलित परिवार को पसंद नहीं करेंगे जबकि भारतीयों का बड़ा वर्ग मानता है कि उसकी दोस्ती अपनी जाति के लोगों से ज्यादा है। मध्य भारत के लगभग 82 फीसदी लोग कहते हैं कि अन्तरजातीय विवाह रोकना जरूरी है। 

दक्षिण भारत में ऐसा सोचने वालों की सं या केवल 35 प्रतिशत है। कुल मिलाकर जितने लोग दूसरे मजहब में शादी करने के खिलाफ हैं उतने ही अंतरजातीय विवाह के भी। यहीं से भाजपा की मुसीबत शुरू होती है। लगभग 96 वर्ष के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अस्तित्व के बावजूद हिन्दू समाज के विभेद बल्कि पारस्परिक घृणा ख़त्म नहीं हो सकी जबकि संघ/भाजपा का राजनीतिक प्रभाव इसी क्षेत्र में रहा। 

कांग्रेस का तुष्टीकरण बना हिन्दुत्व का खाद: यह आम धारणा है कि मोदी को मोदी ही हरा सकता है। इस धारणा के पीछे तीन बातें हैं। जबरदस्त वैचारिक प्रतिबद्धता और सांगठनिक क्षमता वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वरदहस्त, मोदी की अपनी लोक-स्वीकार्यता और विपक्ष, खासकर कांग्रेस, में एक जुझारू चरित्र और उद्देश्य की स्पष्टता का अभाव और तज्जनित लोगों का अविश्वास। 

अगर कांग्रेस ने दशकों तक देश पर निर्बाध रूप से शासन किया तो सिर्फ इसलिए कि मुस्लिम तुष्टीकरण उसके जींस में समा गया था क्योंकि उसे हिन्दुओं से काऊंटर-अटैक का डर नहीं था। गुजरात में सन 2002 के पहले तक अगर किसी ‘भाई’ का फोन आ जाता था तो हिन्दू हीरा व्यापारी सर झुका कर पुलिस तो छोडि़ए, बगैर किसी अन्य इष्ट-मित्र बताए मांगी गई पेटी या खोखा भेज देता था।

अपराधी अर्थात कोई दाऊद, हाजी मस्तान (मुंबई), शहाबुद्दीन (सीवान), अतीक अहमद (प्रयागराज), मुख्तार अंसारी (गाजीपुर) होता था। सत्ता की स ती इनके खिलाफ इन्हें बर्बाद करने के हौसले के साथ नहीं होती थी क्योंकि इनकी इमेज इलाके के समुदाय-विशेष में रोबिनहुड की होती थी और वोटों पर असर डालती थी। अगर कोई गवाह इनके अपराध के खिलाफ खड़ा भी हुआ तो वह किसी दिन सड़क पर मरा पाया जाता था। एक दुकानदार खड़ा हुआ तो उसे उसके भाई के सामने ही तेजाब के ड्रम में डाल कर गला दिया गया। वकील दहशत से शहाबुद्दीन के खिलाफ कोई केस नहीं लड़ते थे। 

यह अपराधी भी प्रजातंत्र के मंदिर संसद को अपने पवित्र ‘कर्मों’ से निर्मल करता रहा। मुख्तार अंसारी दबंग अवधेश राय को उसके घर पर आ कर गोली मार देता था और फिर बाद में एक पार्टी उसे टिकट देकर विधानसभा में कानून बनाने भेज देती थी और अतीक अहमद की ‘प्रतिभा’ देख कोई पार्टी उसे लोकसभा का टिकट दे देती थी और ‘कृतज्ञ’ वोटर अपने रोबिनहुड को सांसद बना देता था। जनसंघ और बाद में भाजपा हाशिये पर पड़े रहे। क्योंकि भारतीय समाज शुरू के कुछ दशक तक कांग्रेस को आजादी दिलाने वाला मान कर अहसान चुकाती रही और फिर राज्यों में 1967 से जातिवाद ने जन्म लेना शुरू किया। 

बहरहाल इसका असर केंद्र में शासक कांग्रेस पर नहीं पड़ सका। एमरजैंसी भी जनता के कांग्रेस-मोह को केवल 1978 के चुनाव में ही छोड़ पाई लेकिन विपक्ष आपस में लडऩे वाला एक मजाक साबित हुआ। कांग्रेस फिर काबिज हुई।-एन.के. सिंह
 


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