भूख-गरीबी से परेशान अफगानिस्तानी अपने बच्चे, अंग और घरों का सामान तक बेचने को मजबूर
punjabkesari.in Saturday, Jan 15, 2022 - 10:57 AM (IST)

15 अगस्त, 2021 को अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार के पतन के बाद सत्ता में आई अंतरिम तालिबानी सरकार ने देश के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को भारी ठेस पहुंचाई है तथा तालिबानी शासकों के विरुद्ध देश के सभी वर्गों के लोगों में रोष बढ़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप अफगानिस्तान के लोगों का जीना कठिन होता जा रहा है। देश में लगभग 50 प्रतिशत उद्योग-धंधे बंद हो गए हैं और फैक्टरियों में होने वाला उत्पादन पूरी तरह ठप्प हो जाने के कारण बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं। इससे अनिवार्य जीवनोपयोगी वस्तुओं का संकट पैदा हो गया है और भुखमरी तथा बीमारी की नौबत आ गई है। आम लोगों को अस्पतालों में इलाज तक नहीं मिल पा रहा। इतना ही नहीं, दुकानों में आम बीमारियों की दवाइयां तक नहीं हैं। बाहरी देशों से आयात ठप्प होने के कारण खाने-पीने की चीजों की भी कमी हो गई है।
गरीबी और बेरोजगारी के कारण काबुल में अपने घरों का सामान बेचने वालों की संख्या भी काफी बढ़ गई है। राजधानी काबुल में ही बड़ी संख्या में लोग इतने मजबूर हैं कि रोटी खरीदने के लिए कुछ भी बेचने को तैयार हैं। बड़ी संख्या में लोगों ने खुद को जिंदा रखने के लिए अपने अंगों को ही नहीं बल्कि अपने बच्चों तक को भी बेचा है। सत्ता पलट से पहले तक अफगानिस्तान में किडनी दान करना आम नहीं था परंतु अब अधिकांश किडनी डोनर आर्थिक समस्याओं की वजह से ऐसा कर रहे हैं। देश का 75 प्रतिशत मीडिया वित्तीय संकट के कारण बंद हो गया है। पत्रकार और मीडिया कर्मी बेरोजगार हो गए हैं। नंगरहार, लगमन, नूरीस्तान के पूर्वी प्रांतों में 6 रेडियो स्टेशन बंद कर दिए गए हैं। यहां तक कि बिजली की आपूर्ति के लिए पूरी तरह मध्य एशियाई देशों पर निर्भर होने तथा उज्बेकिस्तान द्वारा इसे बिजली की आपूर्ति में 50 प्रतिशत कटौती कर देने से अफगानिस्तान में बिजली की भारी कमी पैदा हो गई है। सर्वाधिक कुठाराघात देश की 1 करोड़ 18 लाख महिलाओं पर हुआ है जो उनसे छीने गए शिक्षा के अधिकार, पुरुषों के बराबर दर्जा, काम करने के अधिकार और मनपसंद परिधान पहनने तथा सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में अपने ऊपर लगाई गई पाबंदियां वापस लेने की मांग पर बल देने के लिए लगातार प्रदर्शन कर रही हैं।
इस सप्ताह काबुल में दर्जनों अफगान महिलाओं ने तालिबान शासकों के विरुद्ध प्रदर्शन किया। इनमें से अनेक महिलाएं वे थीं जिन्हें तालिबानी शासकों ने सत्ता में आने के फौरन बाद नौकरी से निकाल दिया। तालिबानी शासकों द्वारा महिलाओं पर अत्याचारों पर विश्व समुदाय की चुप्पी को लेकर भी अफगानिस्तान की महिलाओं में भारी रोष व्याप्त है जिसे व्यक्त करने के लिए प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने अपने हाथों में अपनी विभिन्न मांगों के अलावा जो तख्तियां उठा रखी थीं उन पर लिखा हुआ था, ‘‘दुनिया हमें चुपचाप मरते हुए क्यों देख रही है।’’ महिलाओं ने दिन के समय प्रदर्शनों के दौरान सड़कों पर होने वाली हिंसा से बचने के लिए अपने विरोध प्रदर्शन के तरीके में थोड़ा बदलाव करके रात के समय भी शहरों की दीवारों पर अपनी मांगें लिखना शुरू कर दिया है। महिलाओं का कहना है कि हम अपना अधिकार लेकर रहेंगी।
हाल ही में नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसूफजई तथा कई अन्य अफगानी महिला अधिकार कार्यकत्र्ताओं ने तालिबान शासकों को एक खुले पत्र में लड़कियों की शिक्षा पर लगाए गए प्रतिबंध तुरंत हटाने और लड़कियों के माध्यमिक विद्यालयों को दोबारा खोलने की मांग की थी। उन्होंने इस्लामिक देशों के नेताओं से भी तालिबान शासकों को यह समझाने का आह्वïान किया है कि ‘‘लड़कियों को स्कूल जाने से रोकना धार्मिक रूप से उचित नहीं है।’’ संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने भी अफगान महिलाओं और लड़कियों की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए दावा किया है कि ‘‘अफगान महिलाएं बुनियादी अधिकारों से वंचित हैं। इनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। अत: इन्हें पहले से कहीं अधिक संयुक्त रा की सहायता और एकजुटता की आवश्यकता है।’’ कुल मिलाकर आज अफगानिस्तान में जिस तरह के हालात बने हुए हैं और वहां के लोग जिस दयनीय स्थिति में जी रहे हैं, उसमें तब तक कोई सुधार आने की उम्मीद नहीं है जब तक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एकजुट होकर इसके विरुद्ध वहां के शासकों पर दबाव न डाले। -विजय कुमार
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