बुजुर्गों के तिरस्कार की बजाय उनका मनोबल बढ़ाएं

punjabkesari.in Wednesday, Aug 11, 2021 - 06:52 AM (IST)

हमारा देश गुरुओं, पीरों तथा ग्रंथों की धरती है। हम उन्हें मानते हैं, पूजते हैं पर शायद हमने उन ग्रंथों का कभी अनुसरण नहीं किया क्योंकि उन्होंने हमें बड़ों का आदर करने की शिक्षा दी है। बुजुर्गों को परिवार की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है क्योंकि इनके खून-पसीने से ही परिवार बनता है, पर इन्हीं बुजुर्गों के साथ बुरा व्यवहार किया जा रहा है। इसीलिए प्रतिवर्ष 15 जून को विश्व बुजुर्ग दुव्र्यवहार दिवस मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के बुजुर्गों की भलाई और पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल पर अधिक ध्यान देने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना है। 

पुराने समय में बच्चे अपनी पूर्ववर्ती पीढ़ी द्वारा किया जाने वाला काम ही करते थे इसलिए उनको काम सीखने के लिए बुजुर्गों की जरूरत पड़ती थी, पर आज समय बदल गया है। आजकल के बच्चे कोई भी जानकारी इंटरनैट के माध्यम से प्राप्त कर लेते हैं। परिणामस्वरूप बुजुर्गों की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती। हमारे घरों में इस समय अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग गाने वाला समय बन गया है। सबसे बड़ी बात, आपस में झगड़ कर बच्चे मां-बाप के जीवन को नर्क बना देते हैं। वह समय उनके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है, जब उनके बच्चे जमीन-जायदाद के लिए लड़ते-झगड़ते हैं। 

आज बुजुर्गों की समस्या की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वृद्धावस्था अभिशाप बनती जा रही है। कोई बुजुर्ग चलने में असमर्थ है तो कोई अपाहिज बिस्तर को ही अपनी किस्मत मानकर जीवन गुजार रहा है। मध्यवर्गीय तथा नि नवर्गीय लोगों ने वृद्ध आश्रमों को ही इनका घर बना दिया है लेकिन उनको अकेले समय व्यतीत करना बहुत कठिन होता है। उनकी आंखों की रोशनी कमजोर हो चुकी है, जिस कारण उनको अखबार पढऩे या फिर कोई कार्यक्रम देखने में भी परेशानी होती है। बुजुर्ग लोग अपनों की तलाश करते रहते हैं कि कोई तो आए जो दो बातें उनसे करे लेकिन समस्या यह है कि लोग इन बुजुर्गों के पास बैठना पसंद नहीं करते, वे इसे समय की बर्बादी समझते हैं। जिन संस्कारों की आज उनको आवश्यकता है, वे इन्हीं बुजुर्गों से मिलते थे। 

वर्ष 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के अध्ययन के अनुसार वैश्विक स्तर पर 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के अनुमानित 16 प्रतिशत बुजुर्गों के साथ बुरा व्यवहार हुआ था। समुदाय में बुरा व्यवहार, जैसे कि मनोवैज्ञानिक दुव्र्यवहार 11.6 प्रतिशत, वित्तीय दुव्र्यवहार 6.8 प्रतिशत, उपेक्षा 14.2 प्रतिशत, शारीरिक शोषण 2.6 प्रतिशत तथा यौन शोषण 0.9 प्रतिशत था। 

कोरोना महामारी ने इस समस्या को और भी बढ़ा दिया है। इस दौरान लोगों के मन में बुजुर्गों के प्रति गलत भावनाएं जगी हैं। सकारात्मक मानसिकता से बड़ों को प्रेम दिया जा सकता है। भारत में ऐसे बुजुर्गों की सं या तेजी से बढ़ रही है, जिन्हें अपने ही लोग सता रहे हैं। उन बुजुर्गों की सं या काफी अधिक है जो शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक तरीके से शोषण का शिकार हुए हैं। भारत में दुव्र्यवहार की समस्या बिहार, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बहुत अधिक देखी गई है। 

सरकार द्वारा भी इस विषय पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। 11 दिसंबर 2019 को माता-पिता तथा बुजुर्गों का भरण-पोषण और कल्याण विधेयक 2019 में पेश किया गया था। इसे आगे के विचार-विमर्श के लिए सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था। समिति रिपोर्ट 29 जनवरी, 2021 को लोकसभा में पेश की गई। 

मैं समाज के सभी लोगों से अपील करना चाहता हूं कि हर व्यक्ति की प्राथमिकता सबसे पहले अपने माता-पिता की देखभाल तथा स मान होनी चाहिए। अगर वे खुश रहेंगे तो हमारा आने वाला भविष्य अपने आप ही सुखी हो जाएगा। अत: हमें आज से ही यह प्रण लेना चाहिए कि हम माता-पिता या बुजुर्गों का दिल नहीं दुखाएंगे क्योंकि प्रत्येक मानव का जन्म ही एक न एक दिन बुजुर्ग बनने के लिए हुआ है। एक न एक दिन किसी न किसी पर आश्रित तो होना ही है। इसलिए हमें अपने बुजुर्गों को यह एहसास नहीं होने देना चाहिए कि वे बूढ़े हो गए हैं, बल्कि उनके मनोबल को ऊंचा उठाना होगा।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा


 


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