पुलिस का अमानवीय चेहरा

punjabkesari.in Saturday, May 07, 2022 - 04:46 AM (IST)

हाल ही में उत्तर प्रदेश के ललितपुर में पाली थाने में गैंगरेप की शिकायत करने पहुंची तेरह साल की किशोरी से एस.एच.ओ. द्वारा बलात्कार किए जाने का आरोप लगा है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के चंदौली में एक जिलाबदर अपराधी के घर दबिश देने गई पुलिस टीम पर भी घर में मौजूद दो युवतियों के साथ मारपीट का आरोप लगा है। मारपीट के बाद एक युवती की  मौत हो गई। इस मामले में एसएचओ को सस्पैंड करने के साथ ही आधा दर्जन पुलिसकर्मियों के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का केस दर्ज किया गया है। 

यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि पिछले दिनों मध्य प्रदेश के सीधी जिले में पुलिस थाने के भीतर एक पत्रकार और कुछ रंगकर्मियों के कपड़े उतरवा दिए गए थे। इसके बाद पत्रकार और रंगकर्मियों का निर्वस्त्र फोटो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया था। 

दरअसल पुलिस की कार्यप्रणाली पर लगातार सवाल उठते रहते हैं। कभी पुलिस सत्ता के हित में काम करती है तो कभी पीड़ितों की एफ.आई.आर. तक नहीं लिखी जाती है। दरअसल लॉकडाऊन के दौरान एक तरफ पुलिस की सराहना हुई थी तो दूसरी तरफ कई जगहों पर पुलिस अत्याचार की खबरें भी प्रकाश में आई थीं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुलिस बल को और अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार बनाने की जरूरत पर बल दिया था। 

गौरतलब है काफी समय से पुलिस बल में सुधार की जरूरत महसूस की जा रही है। इस दिशा में कई स्तरों पर काम भी हो रहा है लेकिन अभी तक नतीजा ढाक के तीन पात ही हैं। यही कारण है कि एक तरफ आन्तरिक सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं तो दूसरी तरफ जनता के बीच पुलिस की छवि भी लगातार खराब होती जा रही है। यह शर्मनाक है कि कई मामलों में पुलिस अमानवीयता की हद पार कर देती है। इस दौर में सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुलिस कब तक अमानवीय बनी रहेगी? यह कटु सत्य है कि एक तरफ हमारे देश की पुलिस पर काम का अत्यधिक बोझ है तो दूसरी तरफ पुलिस की कार्यप्रणाली आम आदमी को कोई राहत नहीं दे पाती है। इसका सीधा प्रभाव कानून व्यवस्था पर पड़ता है। 

गौरतलब है कि समय-समय पर पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते रहे हैं। बार-बार ऐसी अनेक घटनाएं प्रकाश में आती रहती हैं, जो यह सिद्ध करती हैं कि हमारे देश की पुलिस में धैर्य और विवेक जैसे मानवीय मूल्यों की भारी कमी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि पुलिस अनेक तौर-तरीकों से समाज में अनावश्यक डर पैदा करने की कोशिश करती है। सवाल यह है कि हमारे देश में पुलिस की भूमिका एक रक्षक की है या फिर भक्षक की? इस माहौल में यह जरूरी हो गया है कि सरकार पुलिस बल को सुधारने की तीव्रता से पहल करें।

पुलिस बल के सुधार की प्रक्रिया में जहां एक ओर हमें पुलिस पर काम का बोझ कम करने पर ध्यान देना होगा वहीं दूसरी ओर पुलिस के व्यवहार को सुधारने पर भी काम करना होगा। तभी पुलिस बल में सुधार का असली उद्देश्य पूर्ण हो पाएगा। पुलिस का काम कानून और व्यवस्था के तंत्र को सुधारना है न कि उसे बिगाडऩा। पुलिस के संदिग्ध क्रियाकलापों से न केवल कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती है बल्कि जनता के बीच उसकी छवि भी धूमिल होती है। यह सुनिश्चित करना पुलिस का कत्र्तव्य है कि समाज में अनावश्यक डर भी पैदा न हो और कानून-व्यवस्था की स्थिति भी स्थिर बनी रहे। 

अगर पुलिस भी गुंडों की तरह व्यवहार करने लगेगी तो उसमें और गुंडों में क्या फर्क रह जाएगा? यह विडम्बना ही है कि कुछ राज्यों में पुलिस मानवाधिकारों की रक्षा तो कर ही नहीं पा रही है बल्कि एक कदम आगे बढ़कर जनता से जानवरों जैसा बर्ताव कर रही है। ऐसा नहीं है कि पुलिस सराहनीय कार्य नहीं करती है। वह बीच-बीच में कुछ अच्छे काम भी करती रहती है लेकिन पुलिस का पारम्परिक व्यवहार उसके अच्छे कामों पर भारी पड़ता है। अपने इसी व्यवहार के कारण ही पुलिस जनता के बीच विश्वसनीय छवि नहीं बना पाई है। 

कुछ समय पहले ह्यूमन राइट वाच नामक एक विदेशी एजैंसी ने भारतीय पुलिस से संबंधित विभिन्न विसंगतियों पर एक अध्ययन किया था। यह अध्ययन उत्तर प्रदेश ,हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में पुलिस-तंत्र पर किए गए शोध पर आधारित था। इस शोध में बताया गया है कि भारत में पुलिस बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है। पुलिस प्राथमिक रूप से किसी भी समस्या का हल दुव्र्यवहार और समाज में डर बैठाकर करना चाहती है। रिपोर्ट में बताया गया था कि दुव्र्यवहार पुलिस की संस्थागत समस्या है और सभी सरकारें इस समस्या को दूर करने में नाकाम रही हैं। 

इस रिपोर्ट में मुख्य रूप से चार बिंदुओं पर ध्यान देने की बात कही गई थी। ये चार बिन्दू हैं-1. अपराधों के विश्लेषण में पुलिस की असफलता, 2. झूठे एवं अवैध आरोप लगाकर गिरफ्तारी, 3. दुव्र्यवहार और यातना देने की आदत, 4. फर्जी मुठभेड़। दरअसल पुलिस की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए अनेक सुधारों की आवश्यकता है। इन सुधारों पर विचार करने के लिए समय-समय पर अनेक समितियों और आयोगों का गठन भी हुआ है लेकिन अभी भी नतीजा ढाक के तीन पात ही है। दरअसल अनेक बार सत्ता अपने हित के लिए पुलिस का इस्तेमाल करती है। ऐसी स्थिति में भी पुलिस का रवैया एकपक्षीय हो जाता है और वह न्याय नहीं कर पाती है। 

बहरहाल पुलिस को अपनी छवि सुधारने के लिए अपने अंदर मानवीय मूल्यों का विकास करना होगा। इस कार्य के लिए एक निश्चित अंतराल पर कार्यशालाएं आयोजित की जा सकती हैं। अगर अत्याचार रोकने वाली पुलिस खुद ही अत्याचार करने लगे तो उसे रक्षक नहीं भक्षक ही कहा जाएगा। पुलिस का काम एक आम आदमी को डराना-धमकाना नहीं है बल्कि उसके पक्ष में खड़ा होना है। पुलिस बल के सुधार की प्रक्रिया में अनेक स्तरों पर कार्य किए जाने की आवश्यकता है।-रोहित कौशिक 
 


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