करों के बोझ के चलते विदेशों का रुख करते भारतीय

punjabkesari.in Saturday, Jul 23, 2022 - 06:45 AM (IST)

इस सप्ताह संसद में सरकार द्वारा रखे गए नवीनतम आंकड़े भारतीय नागरिकता छोडऩे वाले लोगों की बढ़ती संख्या को दर्शाते हैं। वर्ष 2021 में 1,63,000 से अधिक भारतीयों ने दूसरे देशों के नागरिक बनने का विकल्प चुना। 7 सालों में यह सबसे बड़ी गिनती है। पिछले 3 वर्षों में यह संख्या लगभग 4 लाख और पिछले सात साल के लिए लगभग 9 लाख थी। 

हम दोहरी राष्ट्रीय निष्ठा की अनुमति नहीं देते हैं। जिन्होंने पिछले साल अपने पुराने पासपोर्ट बदल दिए उनमें से लगभग आधे लोगों ने अमरीकी नागरिकता ले ली क्योंकि इसके लिए आमतौर पर कई वर्षों के पूर्व प्रवास की जरूरत होती है, ये लोग पहले से ही अमरीकी निवासी थे। इसी तरह कई अन्य लोगों को हाल के प्रस्थान के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। 

पिछले वर्ष आस्ट्रेलिया का नागरिक बनने का विकल्प चुनने वाले भारतीयों की संख्या 23,533, कनाडा में 21,517, ब्रिटेन में 14,637,इटली में 5,986, न्यूजीलैंड में 2,643 और सिंगापुर में 2,516 थी। ‘छोटे टैक्स हैवन’ देशों के अलावा इस सूची में जर्मनी, नीदरलैंड, स्वीडन, स्पेन और पुर्तगाल शामिल हैं। इनमें से कुछ देश नागरिकता विकल्प के साथ आसान प्रवेश प्रदान करते हैं यदि कोई वहां निवेश करने के लिए मामूली राशि लाता है। यदि हमारे देश में कर के बोझ को कम किया जाता है तो यह प्रवृत्ति निश्चित तौर पर कमजोर हो सकती है। 

नवीनतम आंकड़े खतरे का कारण नहीं, लेकिन हमारे नीति-निर्माताओं को वैश्वीकृत दुनिया में व्यक्तिगत प्रोत्साहन की शक्ति की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। सम्पन्न निवासी इस बात से परेशान हैं कि उन्हें करों में कितना खर्च करना चाहिए। हमारी वाॢषक आय के लगभग 43 प्रतिशत की शीर्ष दर के साथ अमीरों पर अधिभाग की गणना होने के बाद यह उगाही ऐसे क्षेत्र में प्रवेश कर गई है जो ‘एक तिहाई’ की तुलना ‘मेरी कमाई का आधा’ के करीब है। एक बिंदू को पार करने के बाद करदाता अपने आपको अधिक निचोड़ा हुआ महसूस करना शुरू कर देते हैं। 
पिछले कुछ वर्षों से करों को सख्त करने की केंद्र सरकार की प्रवृत्ति ने लोगों को रात के खाने को जुटाने के बारे में सोचने पर विवश कर दिया है। 

विदेशों में पूंजी हस्तांतरण पर हमारे प्रतिबंध लम्बे समय से बड़े अवरोधक हैं, फिर भी कानूनी रूप से प्रति वर्ष 250,000 डालर को प्रेषित किया गया है। ग्रीस जैसे यूरोपीय संघ के देश में एक घर का अधिग्रहण करने के लिए भारत में 2 करोड़ की सम्पत्ति बेची जाती है, जहां पर निवासी होने का परमिट प्रदान करने का प्रस्ताव मिलता है। 

यदि कोई वहां पर प्रापर्टी में 250,000 यूरो का निवेश करता है तो उसे 7 सालों तक रहने के बाद नागरिकता देने का वायदा किया जाता है। इसलिए हमारे अमीर लोग अपनी मर्जी से सरचार्ज स्थानांतरित कर सकते हैं। हालांकि भारत से बड़ी रकम निकालना एक धीमी प्रक्रिया है लेकिन अच्छी तरह से सैटल लोगों के अपने तरीके हैं। आज थोक में क्रिप्टो खरीद को लगभग कहीं भी तत्काल उपयोग के लिए प्राप्त किया जा सकता है। हालांकि इस विंडो ने भी जांच को अपनी ओर आकर्षित करना शुरू कर दिया है। 

आप्रवास को पलायन में बदलने की संभावना को रोकने का सबसे अच्छा तरीका विदेश जाने की प्रेरणा को कम करना है। प्रतिधारण उपायों की सूची में हल्का कराधान सबसे ऊपर होना चाहिए। कुछ कारक हमारे नियंत्रण से बाहर लगते हैं। जैसे कि हमें अमीर देशों में ले जाने में भारतीय पासपोर्टों की कमजोरी होना है। जो राष्ट्र हमें वीजा-मुक्त या त्वरित प्रवेश प्रदान करते हैं वे अमरीका की तुलना में बहुत कम हैं। 

अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षणों में पासपोर्ट की रैंकिंग में भारत अभी भी बहुत नीचे है। इस मोर्चे पर कूटनीतिक प्रयासों को बढ़ावा देने की जरूरत है। इच्छा व साधन सम्पन्न नागरिक अब तक चिंताजनक रूप से असंख्य नहीं हैं लेकिन जैसे-जैसे भारतीय अमीर होते जाते हैं हमें कार्रवाई करनी चाहिए। 


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