भारतीय अर्थव्यवस्था घायल और कराह रही है

punjabkesari.in Sunday, Jun 06, 2021 - 04:55 AM (IST)

रायसीना  हिल के शिखर के एक कोने से दृश्य बड़ा मनमोहक हो सकता है। विशेष तौर पर तब यदि चित्रों और दृश्यों की छानबीन प्रमुख आर्थिक सलाहकार द्वारा की गई हो। मिसाल के लिए ई.पी.एफ. में ताजे नामांकन  के तौर पर नौकरियों का नुक्सान गायब या फिर दिखाई दे सकता है। भूखे चेहरे अदृश्य हो सकते हैं तथा उन्हें 2 महीने या एक महीने के लिए 5 किलोग्राम अनाज के तौर पर अपना इनाम एकत्रित करने वाले लोगों के द्वारा उन्हें बदला जा सकता है। 

मेहनतकश किसान का चित्र धुंधला पड़ सकता है तथा अनुपस्थित जमींदार द्वारा अपने किसान स मान चैक को जमा करवाने के चित्र स्क्रीन को भर सकते हैं। यह ऐसा जादू है जिसे सत्ता, शक्ति तथा आलोचना के तिरस्कार द्वारा गढ़ा गया है। एक औसतन भारतीय पहाड़ी पर चढऩे की इच्छा नहीं रख सकता। वह अपने गांव, कस्बे या शहर के वार्ड तक सीमित रहता है क्योंकि उसके दोनों पैर भूमि पर चिपके हुए हैं। एक औसतन भारतीय का विचार एक कीट के विचार की तरह है। यह विचार कठोर हो, गंदा और भद्दा हो सकता है मगर यह उतना ही सच्चाई के निकट होगा। 

सर्वे को चालू करना
मैंने अपने एक दोस्त जवाहर (जिन्होंने एक जांचकत्र्ताओं की टीम को एकत्रित किया) से निवेदन किया कि वे निम्र, मध्यम वर्ग से संबंध रखने वाले 1000 लोगों पर टैलीफोन द्वारा सर्वे आयोजित करें। निम्र मध्यम वर्ग की व्याख्या हम उन व्यक्तियों के तौर पर करते हैं जिनकी मासिक आय 5000 से लेकर 30000 तक की होती है।

1004 व्यक्तियों ने 900 सवालों के जवाब दिए और अपनी ई-मेल आई.डी. तथा मोबाइल टैलीफोन नंबरों को दिया। कुछ लोग अपनी आय को समझते हैं। यदि आय 30,000 से थोड़ी-सी नीचे हो तो यह आंकड़े को खराब नहीं कर सकती। यह सवाल 12 माह की अवधि से संबंधित थे जो 25 मार्च 2020 से पहले लॉकडाऊन के बाद किए गए।  सर्वे का खुलासा किया जा रहा है- 

1. यहां पर 1004 प्रतिवादी थे।
2. 880 ने रिपोर्ट की कि उनकी आय कम हुई है, 117 ने कोई बदलाव न होने की रिपोर्ट की तथा 7 ने रिपोर्ट में कहा कि उनकी आय में वृद्धि हुई है।
3. 758 प्रतिवादियों ने रिपोर्ट की  कि उनके खर्च में बढ़ौतरी हुई है, 115 ने कोई बदलाव न होने की रिपोर्ट की जबकि 91 ने रिपोर्ट की कि उनका खर्च कम हो गया है।
4. 725 ने रिपोर्ट की कि उनके निवेश में कटौती हुई है मगर मात्र 329 ने अपनी परिस पत्ति में कटौती होने की रिपोर्ट की। बाकी के रहते प्रतिवादियों ने अपनी परिस पत्ति या फिर अपने निवेश में कोई भी बदलाव न होने की रिपोर्ट की। 
5. जैसी कि आशा की गई थी, 702 लोगों ने रिपोर्ट में कहा कि उन्होंने पैसा उधार लिया। इस उधार का स्रोत बैंक, माइक्रो वित्तीय संस्थान, स्वयं मदद करने वाले ग्रुप, चिटफंड, परिवार, रिश्तेदार तथा दोस्त थे। कुछ ने रिपोर्ट की कि उन्होंने एक स्रोत से ज्यादा से धन उधार लिया। ज्यादातर लोगों (653) ने ब्याज पर पैसा उधार लिया। ब्याज के साथ समयावधि के भीतर दोबारा भुगतान करने की योग्यता के प्रति 176 लोग आश्वस्त थे, वहीं 164 आश्वस्त नहीं थे और 256 को शंका थी। 

यह परिणाम सहमति के साथ हैं जो हम देखते, सुनते तथा प्रतिदिन इन्हें महसूस करते हैं। महामारी तथा अर्थव्यवस्था की दशा ने घरेलू बैलेंसशीट को बुरी तरह से प्रभावित किया है। लोगों ने अपनी आय खो दी, ऊंचे खर्चों को झेल रहे हैं, उधार के लिए मजबूर हैं, निवेश कम हुआ है और भुगतान करने की योग्यता में सक्षम नहीं हैं। एक घरेलू व्यक्ति पिस कर रह गया है। यह निष्कर्ष निकालना सुरक्षित होगा कि एक औसतन घरेलू व्यक्ति हिल गया है और यह महसूस करता है कि उसका परिवार गरीब हो चुका है।

आएं अब हम आमदन, खर्च, निवेश तथा उधार जैसे 4 मु य सवालों के जवाब देते हैं। इनकी गिनती 702 है जो 70 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन पर सर्वे किया गया। अभी तक यही यकीन दिया जा रहा था कि  भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था है। निश्चित तौर पर यह स्थापित ऊंचाई से तेजी से गिरी है। 2004 से लेकर 2014 के दौरान भारत ने 7.6 प्रतिशत की औसतन वृद्धि दर देखी। उस अवधि के दौरान 27 करोड़ लोग गरीबी से बाहर खींचे गए। यह सब एक इतिहास  है। यह परिणाम वार्षिक राष्ट्रीय आय (2020-21) के एन.एस.ओ. अनुमान के साथ सहमत हैं। 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.)(माइन्स) 7.3 प्रतिशत की दर से सिकुड़ गई। 

दोगुना मगर क्या ऐसा होगा?
बुरा तथ्य यह है कि स्थिर कीमतों पर जी.डी.पी. तथा प्रति व्यक्ति आय 2017-18 से लडख़ड़ाई है। एक राष्ट्र के तौर पर और एक औसतन भारतीय उस स्थिति पर फिर से पहुंच चुका है जहां पर वह 2017-18 में था। अर्थव्यवस्था घायल और कराह रही है। पहले तो अर्थव्यवस्था तबाहकुन नीतियों (नोटबंदी और जी.एस.टी. लागू होने से) से प्रभावित हुई है और दूसरी बार कोविड-19 तथा तीसरी बार आर्थिक कुप्रबंधन के द्वारा अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। यदि सरकार आई.एम.एफ., आर.बी.आई., प्र यात अर्थशास्त्रियों तथा विपक्षी नेताओं के अच्छे अर्थ वाले परामर्श तथा अच्छे तर्कों की तरफ अपना ध्यान दे तो अर्थव्यवस्था बेहतर हो सकती है।-पी चिदंबरम
 


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