महामारी के कारण धराशायी होता भारतीय सिनेमा

punjabkesari.in Saturday, May 22, 2021 - 05:32 AM (IST)

पिछले सप्ताह ईद अच्छी न रही क्योंकि महामारी ने भारतीयों को संकट में डाला हुआ है। इसी तरह बालीवुड हस्तियों को भी दुख और संताप ने घेर रखा है। सलमान खान अभिनीत फिल्म ‘राधे’ की रिलीज लंबे समय से अटकी रही और अंतत: उसे पिछले सप्ताह ‘जी5’ पर रिलीज किया गया।

आश्चर्य है कि आलोचकों और दर्शकों का ध्यान इसकी ओर गया। फिल्म शायद बुरी होगी मगर एक ओ.टी.टी. रिलीज ने इसे और बदतर बना दिया। जब आपका स्वाद नैट िलक्स तथा एमेजान प्राइम वीडियो के लिए ज्यादा है तो 249 रुपए की टिकट भी पब्लिक के लिए मायने नहीं रखती।  यह वास्तविकता है कि सलमान खान की फिल्म को देखने की तादाद बहुत ज्यादा है। खान की फिल्में ओवरसीज रिलीज से बहुत ज्यादा पैसा कमाती हैं। इसके अलावा टी.वी. अधिकार तथा ‘काी’ के साथ इसकी डील ने भी काफी धन बटोरा।

पिछले वर्ष भारतीय सिनेमा का दो तिहाई राजस्व बह गया। विश्व का सबसे बड़ा फिल्म निर्माण उद्योग का बिजनैस 2019 में 19,100 करोड़ से घटकर 7,200 करोड़ पर टिक गया है। फिल्म उद्योग के धराशायी होने की जि मेदारी महामारी पर है। 2019 की तुलना में टिकट बिक्री में भी तीन गुणा कमी आई है। यह 400 मिलियन तक हुई है। यह लॉकडाऊन लगने से पहले का आंकड़ा है। इस उद्योग से रोजाना कमाने वाले हजारों लोगों का कार्यबल 0.7 मिलियन का है। जिन्होंने अपना रोजगार खो दिया है।

एफ.आई.सी.सी.आई.-ई.वाई. की रिपोर्ट के अनुसार 1000 से लेकर 1500 सिंगल स्क्रीन वाले सिनेमा हाल बंद हो चुके हैं। मल्टीप्लैक्स का भी बुरा हाल है। दूसरी लहर से इन्हें बेहद नुक्सान पहुंचा है। इसमें कोई शंका वाली बात नहीं कि अमरीका में भी कुछ भारतीय मल्टीप्लैक्स चेन बंद हुई है। सभी आंकड़ों को देखते हुए भारत में सभी को वैक्सीनेशन करने के लिए 1 साल का समय लगेगा। उसके बाद ही थिएटरों को फिर से खोले जाने की स भावना बनेगी। थिएटरों को चलाए बिना भारतीय सिनेमा पुनर्जीवित नहीं हो सकता। 2019 में 19,100 करोड़ के राजस्व का 60 प्रतिशत घरेलू थिएटरों से प्राप्त हुआ था। थिएटरों में फिल्मों के देखे जाने का प्रभाव टी.वी., ओ.टी.टी. तथा ओवरसीज राजस्व पर भी पड़ता है। 

यदि 2019 को देखें तो भारतीय सिनेमा के लिए अच्छा वर्ष रहा। ब्राडकास्टर ने फिल्मों के अधिकारों के लिए 2200 करोड़ अदा किए और इस बिजनैस में 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी पाई। ब्राडकास्ट नैटवर्क के लिए विज्ञापन का अनुमानित राजस्व 7700 करोड़ रहा। बिना थिएटरों को पुनर्जीवित किए पूरा ईको-सिस्टम कार्य नहीं कर सकता और इस तरह डिजिटल या ओ.टी.टी. फिल्म उद्योग के व्यवसाय का 60 प्रतिशत नहीं बन सकता। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष का डिजिटल राजस्व दोगुना था। 

ऐसा प्रतीत होता है कि लोग फिर से थिएटरों का रुख करना चाहते हैं। 2020 तथा 2021 में तमिल, बंगाली, तेलुगू और मलयालम फिल्मों ने बॉक्स आफिस पर अच्छा पैसा कमाया। सवाल उठता है कि यदि तेलुगू, तमिल और मलयालम ने अच्छा पैसा कमाया तो ‘राधे’ को पहले रिलीज क्यों नहीं किया गया? क्योंकि हिन्दी रिलीज के लिए आपको कई राज्यों की जरूरत होती है। मु बई और दिल्ली ही आपको 40 से 50 प्रतिशत का राजस्व अकेले ही जुटा देते है। ओवरसीज तो एक बड़ा हिस्सा हो सकता है। तमिल फिल्म तो तमिलनाडु में चलती है और तेलुगू फिल्म तो तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में। 

प्रोड्यूसर्ज गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष सिद्धार्थ राय कपूर का कहना है कि फिल्म उद्योग में हिन्दी सिनेमा राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है। जब तक महामारी खत्म नहीं हो जाती तब तक पूरी तरह से हिन्दी रिलीज नामुमकिन है। अब एक दूसरे कारक पर नजर दौड़ाते है। ‘एवैंजर्स, मिशन इ पासिबल’ या फिर बांड की फिल्मों के पास लोगों को थिएटर की तरफ आकर्षित करने की क्षमता है। भारतीय सिनेमा के लिए भी यही सत्य है। बाहुबली (तेलुगू, तमिल) के.जी.एफ. (कन्नड़), वार (हिन्दी) या सूराराय पौत्रू (तमिल) को देखने के लिए दर्शक थिएटर की ओर भागते है। कुछ ऐसी क्षेत्रीय फिल्में हैं जो केवल ओ.टी.टी. स्क्रीन के लिए हैं। 

भारत के टीकाकरण होने के साथ-साथ थिएटरों को भी बड़ी फिल्में दरकार हैं। मगर ऐसा होता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा। फिल्म एक अनुबंध आधारित व्यवसाय है इसमें लंबी अवधि के लिए लोग एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं इसलिए आपको सचेत रहना होता है। आज के माहौल में हम 200 से 300 करोड़ रुपए के बजट वाली फिल्म की योजना नहीं बना सकते। इसलिए हम और अधिक इंडोर फिल्में बना रहे हैं जो बजट में भी होती हैं। 2022 या फिर 2023 के अंत तक आऊटडोर शैड्यूल और शूटिंग की संभावना हो सकती है। 

हालांकि कुछ भी भविष्यवाणी करना मुश्किल है। यह केवल बड़े स्टारों के भविष्य का सवाल नहीं बल्कि इससे जुड़े हजारों लेखकों, टैक्नीशियनों, सहायक कलाकारों तथा अन्य लोगों की जीविका का भी सवाल है। जीवन बचाने के लिए बहुत से हिन्दी, मलयालम, तमिल, बंगाली और अन्य भाषाई लोगों ने दूसरा पेशा चुन लिया है। बिजनैस मरता नहीं मगर इस पर महामारी की छाया जरूर रहेगी।-विनीता कोहली-खांडेकर


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