म्यांमार को लेकर भारत का कड़ा रुख बेहद जोखिम वाला

punjabkesari.in Monday, Aug 01, 2022 - 04:48 AM (IST)

म्यांमार में तख्ता पलट के बाद इस देश में लोकतंत्र समर्थकों के उत्पीडऩ एवं मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं लगातार सामने आई हैं। यहां के सैन्य शासन जुंटा ने कहा है कि उसने लोकतंत्र समर्थक 4 कार्यकत्र्ताओं को मौत के घाट उतार दिया है। म्यांमार में कार्यकत्र्ताओं के खिलाफ इस तरह की कठोर कार्रवाई दशकों बाद हुई है। जुंटा की दुनिया भर में आलोचना एवं निदा हो रही है। 

वहीं भारत ने सचेत होकर अपनी प्रतिक्रिया दी है और इस ताजा घटनाक्रमों पर अपनी गहरी ङ्क्षचता व्यक्त की है। इस कार्रवाई ने पूरे विश्व को हिलाकर रख दिया है और ऐसी स्थिति भविष्य में और गहरा सकती है क्योंकि दशकों बाद इस तरह की घटना दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र में पहली बार हुई है। अमरीका, पश्चिम देश तथा यूरोपियन संघ म्यांमार को लेकर कड़ा रुख अपना सकते हैं। इस तरह से जुंटा अलग-थलग पड़ जाएगा मगर चीन इसका विरोध नहीं कर रहा। 

पिछले वर्ष फरवरी में लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार का तख्तापलट सैन्य प्रशासन द्वारा किया गया था। 2100 से ज्यादा लोग मारे गए हैं तथा तख्तापलट के बाद हजारों की तादाद में सैन्य प्रशासन द्वारा गिरफ्तारियां की गई हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बेचलैट म्यांमार सैन्य प्रशासन द्वारा 4 लोकतंत्र कार्यकत्र्ताओं के वध को लेकर निराश हैं। हालांकि संयुक्त राष्ट्र तथा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने सैन्य प्रशासन को मौत की सजा को देने से रोकने का बार-बार आग्रह किया था। 

भारत का कड़ा रुख बेहद जोखिम वाला हो सकता है : राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कूटनीतिक मजबूरियों के चलते भारत ने इस कार्रवाई की कड़े शब्दों में अभी तक भत्र्सना नहीं की क्योंकि भारत सैन्य कमांडरों को चीन की ओर धकेलना नहीं चाहता क्योंकि ड्रैगन म्यांमार-भारतीय सीमा पर समस्याएं खड़ी कर सकता है। भारत चतुर्भुज समूह का एक प्रभावशाली सदस्य है जिसका मुख्य लक्ष्य वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने का है। हालांकि चुप्पी साधे रहने से काम नहीं चलेगा। 

तथ्यों के अनुसार भारत और म्यांमार की सीमा 1600 किलोमीटर से ज्यादा की है जोकि बंगाल की खाड़ी तक लगती है। दोनों देशों के बीच निकटता के कारण उत्तर पूर्वी के दूर-दराज इलाकों में दर्जनों भर जातीय विद्रोही ग्रुपों के खिलाफ भारत की लड़ाई में म्यांमार एक मुख्य भागीदार है। यह जातीय विद्रोही ग्रुप अधिक से अधिक स्वायतत: से लेकर स्वतंत्र मातृभूमि की मांग कर रहे हैं। हाल के वर्षों में भारत और म्यांमार ने रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और वायदा किया है कि उनकी भूमि का इस्तेमाल एक-दूसरे के खिलाफ किसी भी शत्रुतापूर्ण गतिविधि के लिए नहीं किया जाएगा। 

आर्थिक और व्यापारिक समझौते : विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि भारत राष्ट्र की सुरक्षा को जोखिम में डाल सकता है क्योंकि यूनाइटेड नैशनल लिबरेशन फ्रंट (यू.एन.एल.एफ.) जैसे आतंकी समूह म्यांमार के उत्तर-पूर्वी आश्रय स्थलों से संचालित होते हैं। इसके चलते सैन्य प्रशासन उन्हें प्रोत्साहित कर सकता है। भारत ने तेल और गैस परियोजनाओं में 120 मिलियन डालर की स्वीकृति के अलावा म्यांमार में 1.2 बिलियन अमरीकी डालर का निवेश किया है। 

शत्रुतापूर्ण स्थिति में ऐसी परियोजनाएं असुरक्षित हो जाएंगी। भारत इंडिया-म्यांमार-थाइलैंड त्रिपक्षीय हाईवे तथा काला दान मल्टी माडल ट्रांजिट उपक्रमों जैसे मूलभूत ढांचों में सहयोग कर रहा है जो कोलकाता को ‘सित्वे’  से जोड़ेगा। वहां का सैन्य प्रशासन 2018 का लैंड बार्डर क्रॉसिंग एग्रीमैंट को भी खराब कर सकता है जो भविष्य में दोनों देशों के बीच रिश्तों में खटास ला सकता है। 

तर्क की अवहेलना के चलते दिल्ली की दोहरी पॉलिसी काम नहीं कर सकती। अपने राष्ट्र हितों की सुरक्षा की देखभाल करना और म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली के लिए कार्य करना दो अलग-अलग बातें हैं, ये साथ-साथ नहीं चल सकतीं। भारत हमेशा से ही गैर-लोकतांत्रिक बलों के खिलाफ खड़ा है और ऐसी प्रक्रिया म्यांमार में लोकतांत्रिक बदलाव के दौरान भी देखी गई है। 

लोकतंत्र की बहाली के पक्ष में है भारत : विशेषज्ञों का कहना है कि भारत हमेशा से ही मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान की जरूरत पर बल देता है। भारत कानून तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पक्षधर है। म्यांमार में शांति बहाली के लिए भारत ने एसोसिएशन ऑफ साऊथ ईस्ट एशियन नेशन्ज का समर्थन किया है। इसी कारण भारत म्यांमार का लोकतंत्र तथा स्थिरता की वापसी के लिए समर्थन करता रहेगा। चीन की ओर म्यांमार के सैन्य प्रशासन के झुकाव को रोकने के लिए भारत ने 4 दिनों बाद अपनी प्रतिक्रिया दी। 

लोकतंत्र समर्थकों के वध की आलोचना किए बिना चीन ने सचेत होकर प्रतिक्रिया दी : इस क्षेत्र में भारत के प्रभुत्व पर अंकुश लगाने के लिए म्यांमार के सैन्य प्रशासन की इस कार्रवाई को चीन ने चुप्पी साधते हुए स्वीकृति दी। चीन अपने कूटनीतिक हितों की रक्षा करना चाहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने जानबूझ कर म्यांमार की इस कार्रवाई के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया देने को नकारा। वहीं अमरीका और अन्य पश्चिमी राष्ट्र इस मुद्दे को लेकर अपना कड़ा रुख दिखाएंगे। इस जटिल और निराशाजनक परिदृश्य को देखते हुए सैन्य शासकों ने दर्शाया है कि उन्हें विश्व की राय से कोई लेना-देना नहीं।-के.एस. तोमर


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