‘भारत का एकमात्र लक्ष्य ‘गरीबी और बेरोजगारी’ खत्म करने का हो’

punjabkesari.in Sunday, Dec 20, 2020 - 04:46 AM (IST)

यहां पर भारत दिल्ली, हरियाणा-दिल्ली सीमा पर सिंघू, स्टाक मार्कीट, आर.बी.आई. तथा टी.वी. चैनलों से परे भी बसता है। यह वास्तविक भारत है जो वास्तविक लोगों से आबाद है। वास्तविक लोग प्रतिदिन फैक्टरियों, खेतों, घरों तथा सड़कों पर अपनी आत्मा और शरीर को एक साथ रख कर शारीरिक कार्य श्रम करते हैं। हर दूसरे इंसान की तरह वे खाते हैं, सोते हैं, प्यार करते हैं, शादियां रचाते हैं, हंसते हैं, रोते हैं और अंतत: मर जाते हैं। उनमें से ज्यादातर लोग अपने जीवन भर गरीबी तथा बेरोजगारी के होते हुए भी जीवन से संघर्ष करते हैं। 

दो शब्द ‘गरीबी और बेरोजगारी’, गरीब, मध्यम आय वर्ग तथा उन्नत देशों को अलग करते हैं। भारत जैसे विकासशील देश का एकमात्र लक्ष्य गरीबी और बेरोजगारी का सफाया करना होना चाहिए। अंतिम गणना तक भारत के लोगों का गरीबी या बी.पी.एल. (गरीबी रेखा से नीचे) के रूप में अनुपात 28 प्रतिशत (यू.एन.डी.पी.) का था। अंतिम गणना तक बेरोजगारी दर 9.9. प्रतिशत (सी.एम.आई.ई., 13 दिसम्बर 2020 तक) थी। क्या सरकारें फिर चाहें केंद्र की हो या राज्यों की देखभाल करती हैं? मेरे विचार से यू.पी.ए. सरकारों (2004 से लेकर 2014 तक) का स्थायी योगदान 270 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का रहा था। 

अन्य सभी उपाय और कार्यक्रम तभी प्रभावशाली होते हैं जब उन्हें आगे बढ़ाया जाता है या फिर रोल आऊट किया जाता है लेकिन यह सब कुछ समय बाद सामान्य का हिस्सा बन जाते हैं। मिसाल के तौर पर जुलाई 1991 में 2 चरणों के अवमूल्यन को किया गया। बाजार निर्धारित विनिमय दर का रास्ता काट दिया गया लेकिन आज एक बाजार में निर्धारित विनिमय दर को इतना सामान्य लिया गया है कि इसे सुधारों के रूप में वॢणत किया गया है। यह शायद ही किसी की भौंहें उठाएंगे। लगातार गरीबी और बेरोजगारी के भयानक परिणाम हैं। उनमें से एक है बच्चों में कुपोषण। प्रत्येक सरकार कार्यक्रमों को एकीकृत करती है जैसे समेकित बाल विकास योजना, मिड-डे-मील, पोषण अभियान इत्यादि। 

बजट में भारी-भरकम राशि आबंटित की जाती है और यह दावा किया जाता है कि उन्हें खर्च किया है। यहां पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग जैसी निगरानी करने वाली एजैंसी है। समय-समय पर स्वास्थ्य और पोषण के स्तर को मापा जाता है। अंतिम सर्वेक्षण एक व्यापक राष्ट्रीय पोषण पर (सी.एन.एन.एस., 2016-2018) किया गया जिसे स्वास्थ्य एवं  परिवार कल्याण मंत्रालय तथा यूनिसेफ द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। कुपोषण के नैदानिक प्रभाव कई गुणा हैं इसमें बिगड़ा हुआ अग्नाशय थायरॉयड, जिगर की हानि, श्वसन और आंतों का संक्रमण और हृदय उत्पादन में कमी, भूख में कमी, सुस्ती और दीर्घकालीन विकास संबंधी प्रभाव शामिल हैं। कुपोषित बच्चे तथा किशोर बिगड़े हुए विकास के लिए अधिक जोखिम में हैं। 

कुपोषण क्यों? 
स्टंटिंग और क्रोनिक तीव्र कुपोषण के संकेत हैं जो लम्बी अवधि में पर्याप्त पोषण प्राप्त करने में विफलता को दर्शाते हैं। व्यर्थ भोजन के सेवन से बर्बादी हो सकती है। कुपोषण से होने वाली आजीवन क्षति को रोकने के लिए हस्तक्षेप करने हेतु पहले 1000 दिनों को सबसे महत्वपूर्ण अवधि माना जाता है। स्टंटिंग का सबसे अधिक प्रचलन बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश (37-42 प्रतिशत) में है और सबसे कम गोवा और जम्मू-कश्मीर में पाया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक गरीब बच्चों में पाया गया, विशेषकर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के बीच में। 

सी.एन.एन.एस. को राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एन.एफ.एस.एच.) के साथ पढ़ा जाना चाहिए। एन.एफ.एस.एच.-4 को 2015-16 तथा एन.एफ.एच.एस.-5 को 2019-20 में आयोजित किया गया था। कुछ दिन पहले एक तथ्यों की शीट जारी की गई थी। एन.एफ.एस.एच.-4 तथा एन.एफ.एच.एस.-5 के बीच में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों का अनुपात बिगड़ गया। अम्बेदकर यूनिवॢसटी में लिबरल स्टडीज स्कूल की दीपा सिन्हा ने अपने एक समाचार पत्र के आलेख में लिखा कि, ‘‘हमें 2015-16 की अवधि के दौरान देश में बचपन के स्टंटिंग के प्रसार में वृद्धि की संभावना है।’’ उन्होंने आगे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) का उल्लेख करते हुए कहा कि स्टंटिंग मानव विकास में असमानताओं का एक मार्कर है।’’ 2019 में भारत का एच.डी.आई. रैंक   एक पर गिर गया। 

खाना तो है मगर खाने के लिए नहीं
यह तो स्पष्ट है कि आई.सी.डी.एस., मिड-डे-मील स्कीम तथा पोषण अभियान जैसे चलाए जा रहे तथा डिजाइन किए गए कार्यक्रमों में त्रुटियां है। एक के बाद एक वर्ष में बम्पर फसल होने के बावजूद भी यह सब स्कीमें फेल हो चुकी हैं। गेहूं तथा चावल का सितम्बर 2020 में भंडारण 478 एल.एम.टी. तथा 222 एल.एम.टी. क्रमश: था। इसके अलावा देश में 109 एल.एम.टी. अनमिल्ड धान का स्टॉक भी था। विडम्बना तो देखिए कि किसान खाद्यान्न के अम्बार लगा देते हैं। एफ.सी.आई. तथा अन्य एजैंसियां विस्तृत तौर पर वसूली करती हैं। करदाता खुशी-खुशी वसूली तथा  भंडारण की लागत को बर्दाश्त करते हैं मगर इन सबके बावजूद हमारे बच्चों के पास खाने को ज्यादा नहीं है। 

ऊपर दिए गए तथ्यों में से कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है। यह तो सब एक साधारण बुद्धि में आते हैं। आश्चर्य करने वाली बात तो यह है कि न तो वर्तमान सरकार न ही कोई भी राज्य सरकार ऐसी समस्याओं के बारे में बातचीत करती है। नोटबंदी, 8 तिमाहियों (2018-19 और 2019-2020) तिमाहियों में अर्थव्यवस्था गिरावट की ओर है, रोजगार छिन गए हैं, लोगों को अपना जीवन गुजारना कठिन हो रहा है, लाखों लोग प्रवास कर गए तथा मंदी ने हमारे बच्चों का पोषण चक्र प्रभावित किया है। कुपोषण सबसे ज्यादा बुरा हो चुका है। फिर आखिर जिम्मेदारी किसकी है।-पी. चिदम्बरम


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