भारत की आर्थिक व सामाजिक स्थिति ‘सबसे खराब दौर में’

punjabkesari.in Monday, Mar 02, 2020 - 03:58 AM (IST)

वर्तमान वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि और धीमी होकर 4.7 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह 6 वर्षों में सबसे धीमी है। वित्त मंत्री का कहना है कि यह आंकड़ा कोई ज्यादा खराब नहीं है और यह स्थिरता का संकेत है यानी वह इस बात को लेकर चिंतामुक्त हैं कि यह बदतर स्थिति में नहीं पहुंची है। उनके नौकरशाहों ने देश को आश्वस्त किया है।

यह उतनी बुरी है जितनी कि हो सकती है तथा उन्होंने इसे ‘निम्रतम बिन्दू’ की संज्ञा दी है जिसका अर्थ यह है कि यहां से आर्थिक वृद्धि की दर अपने आप बढऩे लगेगी। दुर्भाग्य से यह सही नहीं है। इन आंकड़ों को जारी करते हुए मोदी सरकार ने पिछली तिमाही (तिमाही 2, 2019-20) के आंकड़ों को भी रिवाइज करते हुए 4.55 प्रतिशत से 5.1 प्रतिशत तथा पहली तिमाही के लिए 5 प्रतिशत से 6 प्रतिशत किया है। 

इसका अर्थ यह है कि पिछली 8 तिमाहियों के लिए आंकड़े 8.1 प्रतिशत हैं जनवरी-मार्च 2018 के लिए, 7.9 प्रतिशत, 7 प्रतिशत, 6.5 प्रतिशत, 5.8 प्रतिशत, 5.6 प्रतिशत, 5.1 प्रतिशत तथा अब 4.7 प्रतिशत। यह निम्रतम बिन्दू का मामला नहीं है। यह लगातार 8 तिमाहियों का मामला है जिसका अर्थ यह है कि लगातार दो वर्ष तक विकास दर में गिरावट आई है और यदि हम सरकार के आंकड़ों को मान लें तो भी यही स्थिति है हालांकि दुनिया में बहुत से लोग सरकार के आंकड़ों को शक की निगाह से देखते हैं। स्वयं सरकार का यह कहना है कि 2019-2020 के पूरे साल के लिए विकास दर 5 प्रतिशत है और इसका अर्थ यह है कि सीतारमण यह उम्मीद कर रही हैं कि वर्तमान तिमाही में विकास दर 4.6 प्रतिशत तक पहुंचेगी। 

भारत में औपचारिक सैक्टर से बाहर का डाटा प्राप्त करना मुश्किल होता है। इसके अलावा पिछले वर्ष औपचारिक सैक्टर पर काफी मार पड़ी है। बिक्री और लाभ के मामले में इसके लिए 2 तिमाहियां नकारात्मक विकास वाली रही हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले सैंटर का कहना है कि अक्तूबर-दिसम्बर 2019-20 में कार्पोरेट बिक्री में 1.2 प्रतिशत की गिरावट आई है (इससे पहले इसमें 2.8 प्रतिशत की गिरावट आई थी) तथा कर से पहले लाभ 10 प्रतिशत तक सिकुड़ा है (पिछली तिमाही में यह 60 प्रतिशत तक सिकुड़ा था) उक्त कोई भी तथ्य इस बात का संकेत नहीं है कि यह अर्थव्यवस्था के निम्रतम बिन्दू पर पहुंचने की स्थिति है और यह वित्त मंत्री की नादानी होगी यदि वह उस बात पर भरोसा कर लें जो बात वह हम सब को खुश करने के लिए कह रही हैं कि इस बिन्दू से अपने आप वृद्धि शुरू हो जाएगी। 

इसके अलावा प्राप्त अन्य विवरण बताते हैं कि ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन अर्थात निवेश पिछले वर्ष माइनस 5.2 प्रतिशत रहा है। इससे पिछले वर्ष यह माइनस 4.2 प्रतिशत था जिसमें और ज्यादा कमी आई। सरकार यह मान रही है कि पूरे वर्ष में यह नकारात्मक रहेगा अर्थात इस वर्ष पिछले वर्ष के मुकाबले कम पैसा निवेश किया गया। बिजली का उत्पादन भी घटा है और यह इस बात का एक बड़ा संकेत है कि अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है। चीन के मंत्रियों की भी आर्थिक विकास को मापने की कमजोर आंकड़ों की इसी तरह की समस्या है। इसके सरलीकरण के लिए उनके एक नेता ली केकियांग ने विकास दर को मापने का एक तरीका निकाला तथा वह यह था कि विकास को मापने के लिए तीन चीजों को देखा जाए : रेलवे कार्गो की मात्रा, बैंक लोन तथा बिजली का उपभोग। इन तीनों मामलों में भारत नकारात्मक स्थिति में है। निर्माण क्षेत्र भी पिछले समय के दौरान सिकुड़ा है जोकि काफी हैरानीजनक है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं आर्थिक विकास पर जोर देते हुए मेक इन इंडिया योजना का नारा दिया था। निर्माण क्षेत्र हमारी जी.डी.पी. में योगदान देने की बजाय और ज्यादा सिकुड़ रहा है।

रोजगार की खराब स्थिति
बेरोजगारी अब 8  प्रतिशत पर पहुंच गई है जोकि काफी समय से इसी आंकड़े के आसपास मंडरा रही है। सरकार ने इस संबंध में अपने आंकड़े जारी करने से मना कर दिया है क्योंकि इन आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 5 दशकों में इस मामले में सरकार की परफार्मेंस सबसे खराब है। सरकार के लिए यह भी एक और ङ्क्षचता की बात है। सरकार ने पहले एकत्रित किए गए आंकड़ों को जारी करने से मना कर दिया है और अब इसे घरेलू आंकड़े इकट्ठे करने में समस्या आ रही है। 

इस महीने के शुरू में हैदराबाद में नैशनल सैम्पल सर्वे कार्यालय के गणनाकारों, जो इस बात के आंकड़े इकट्ठे करते हैं कि परिवार घरेलू यात्रा पर कितना पैसा खर्च करते हैं, काम करने से रोक दिया गया। लोग यदि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के मामले में डरे हुए हैं तो उनका डर काफी हद तक सही है क्योंकि यह मोदी और शाह की गलती है कि वे लोगों को आश्वस्त नहीं कर पाए हैं। हैदराबाद में एन.एस.एस.ओ. की ज्वाइंट डायरैक्टर ने कहा है कि वह निर्धारित समय पर सरकार को सर्वे नहीं सौंप पाएंगी और यह भी संभव है कि यह सौंपा ही न जाए। देश में इस वक्त इस तरह के हालात हैं। आंकड़े न होने की स्थिति में सरकार  ठीक से सुधारात्मक कदम नहीं उठा पाएगी। आप सही चीज तभी कर सकते हैं जब आपको पता हो कि गलत चीज क्या है। मोदी सरकार ने खुद को ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा कर लिया है जहां नागरिकता पर इसका वैचारिक एजैंडा अर्थव्यवस्था के लिए सुधारात्मक कदम उठाने की उसकी योग्यता को प्रभावित कर रहा है। 

दूसरी सच्चाई यह है कि सरकार ने आॢथक विकास से अपना ध्यान हटा लिया है क्योंकि मोदी इसे पूरी तरह से समझने में सफल नहीं रहे हैं। यह भाजपा के विभाजन की राजनीति पर ध्यान केन्द्रित करने के तथ्य को दर्शाता है जोकि ऐसे समय में किया गया जबकि दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति भारत के दौरे पर था। दिल्ली के दंगों पर दुनिया भर में हुई कवरेज पिछले कई दशकों में सबसे खराब रही है। इससे हमारी छवि खराब हुई है और इसे दोबारा बनाने की जरूरत होगी। यह हमें ऐसे समय में करना होगा जोकि अशांत समय होगा। कोरोना वायरस के कारण इस तिमाही में वैश्विक व्यापार को नुक्सान पहुंचा है। दुनिया भर के बाजारों में गिरावट दर्ज की गई है। 

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के लिए शीघ्र ही आंकड़े एकत्रित होने शुरू हो जाएंगे लेकिन भाजपा नियंत्रित बिहार सहित कई राज्यों ने कहा है कि वे अमित शाह और मोदी की एन.पी.आर. योजना को खारिज करेंगे। इसके अलावा सरकार को हैदराबाद जैसे पड़ोसी प्रदर्शनों का भी सामना करना पड़ेगा जब गणनाकार सामने आएंगे तथा इससे अशांति और बढ़ेगी। भारत इस समय आर्थिक और सामाजिक तौर पर सबसे खराब स्थिति में है। यह स्थिति उस समय से भी खराब है जब 30 साल पहले बाबरी विध्वंस हुआ था और उदारीकरण से पहले का संकट चल रहा था। और इस बार हमारे पास ऐसा सक्षम नेतृत्व नहीं है जो हमें इस स्थिति से निकाल ले जाए।-आकार पटेल                


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