‘भारत और चीन: द्विपक्षीय संबंधों में नए आयाम’

punjabkesari.in Thursday, Feb 04, 2021 - 04:30 AM (IST)

यह तथ्य अब किसी से छिपा नहीं है कि गत वर्ष जून में गलवान घाटी में हुआ सैनिक टकराव कोई आकस्मिक घटनाक्रम नहीं बल्कि चीन की सोची-समझी साजिश का परिणााम था। एक यू.एस. कांग्रगेशन पैनल की दिसम्बर 2020 की रिपोर्ट के अनुसार गलवान घाटी की घटना चीन की सोची-समझी योजना थी जिसमें वह संभावित नुक्सान के लिए भी तैयार था। रिपोर्ट के अनुसार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने झड़प से पहले भारतीय सेना को उकसाया था। इस झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए और 50 से अधिक पीपल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिक अपनी ही कुटिल योजना का शिकार हुए। यह प्रासंगिक है कि वर्ष 2012 में चीनी प्रमुख शी जिनपिंग के सत्ता संभालने के पश्चात् दोनों देशों को अपनी सीमा पर पांच बड़े विवादों का सामना करना पड़ा है। टकराव से कुछ सप्ताह पूर्व चीनी रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंगी ने एक वक्तव्य द्वारा बीजिंग को ‘स्थिरता के लिए युद्ध का उपयोग’ करने के लिए प्रोत्साहित किया था। 

चीनी आक्रामकता के कारण : वर्ष 1993 में हुए शांति समझौते और वर्ष 2013 में हस्ताक्षरित सीमा सुरक्षा सहयोग समझौते के अनुसार दोनों ओर की सेनाएं सीमा गतिरोध में बल प्रयोग नहीं करेंगी। जबकि चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी इन द्विपक्षीय समझौतों का उल्लंघन कर रही है। यह समझना आवश्यक है कि क्यों चीन भारत से नाराज है। चीन की सोच न केवल आत्म-केन्द्रित बल्कि अनैतिक रूप से महत्वाकांक्षी भी है। चीन जानता है कि मजबूत और उदीयमान भारत इसकी आर्थिक और राजनीतिक इच्छा के लिए भविष्य में एक बड़ी चुनौती खड़ी करेगा, जो चीन के एक ध्रुवीय विश्व की परिकल्पना के विरूद्ध है। 

चीन का यह रुख न केवल सीमाओं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय मंचों जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इत्यादि में भी देखा जा सकता है। इसलिए, चीनी आक्रामकता उसकी इस असुरक्षा की भावना का परिणाम है कि भारत विश्वस्तरीय उन्नति करेगा जिससे चीन का विश्वशक्ति बनना असंभव हो जाएगा। डोकलाम की घटना, उत्तराखंड में डेल्टा नदी पर नेपाल का अहंकार भरा झूठा दावा या गलवान घटना, ये सभी घटनाएं सीमा विवाद नहीं बल्कि चीन की असुरक्षा की भावना को दर्शाता है। 

गतिरोध :वास्तविक सीमा रेखा पर वर्तमान स्थिति भारतीय सैनिकों के पक्ष में है क्योंकि वे पैंगोंग त्सो झील के दक्षिण में स्थित चोटियों और फिंगर 4 की मुख्य चोटी के शिखर पर तैनात हैं। दौलत बेग ओल्डी सैनिक चौकी क्रियाशील है और गलवान में यथास्थिति कायम है। पूर्वी क्षेत्र में मई 2020 से लद्दाख प्रकरण की शुरूआत के बाद से कोई गतिविधियां नहीं देखी गई हैं। इस प्रकार, पीपल्स लिबरेशन आर्मी की योजना मजबूत भारतीय संकल्प के सामने ढेर हो गई है। 

वर्तमान में चीन : वर्तमान में चीन एक अनोखे संकट का सामना कर रहा है। आंतरिक विभाजन की गति पहले से अधिक तेज है और आंतरिक असंतोष इतना अधिक है कि इससे निपटना मुश्किल है। चीनी नेतृत्व यह जानता है और वह अंतर्राष्ट्रीय तनाव पैदा करके अपने लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहा है। बैल्जियम-चीन अध्ययन की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘चीन अमीर होने से पहले ही बूढ़ा हो जाएगा।’ बोस्टन विश्वविद्यालय के शोधकत्र्ताओं के अनुसार, राज्य समर्थित चीन विकास बैंक और चीन के निर्यात-आयात बैंक द्वारा समग्र उधार वर्ष 2016 में 75 बिलियन अमरीकी डॉलर के मुकाबले वर्ष 2020 में घटकर लगभग 3 बिलियन अमरीकी डालर हो गया जिसका कारण, अपारदॢशता, भ्रष्टाचार, गरीब देशों को अत्यधिक कर्ज देने के कारण कर्ज के जाल में फंसना और चीन के अन्दर प्रतिकूल सामाजिक विकास है। 

यह भी एक कारण है कि कराची-लाहौर-पेशावर के बीच 1872 किलोमीटर रेलवे लाइन के लिए पाकिस्तान को 6.2 बिलियन डॉलर का ऋण देने में चीन की अनिच्छा दर्शा रहा है। लाहौर स्थित एक ङ्क्षथक-टैंक इंस्टीच्यूट ऑफ पॉलिसी रिफॉम्र्स (आई.पी.आर.) ने हालिया रिपोर्ट में दावा किया है, ‘सरकार की सुधारों में विफलता और कमजोर राजकोषीय प्रबंधन के कारण पाकिस्तान चीन के कर्ज के जाल में फंस गया है।’ इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन आज भस्मासुर की तरह है जो अंतत: विश्व वर्चस्व की चाह में अपनी अर्थव्यवस्था को खत्म कर देगा। अलीबाबा के संस्थापक बिजनैस टाइकून जैक मा का रहस्यमय तरीके से गायब होना इसका एक हालिया उदाहरण है।

वर्तमान में भारत : वर्तमान में भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 1 जनवरी 2021 से 2 साल के लिए एक गैर-स्थायी सदस्य के रूप में शामिल हो गया है। 192 में से 184 देशों ने भारत के पक्ष में मतदान किया था। वर्तमान में हमें एक मजबूत, लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है, जो मानवीय दृष्टिकोण के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी में कुशल नेतृत्व प्रदान कर रहा है। हमारे विदेश मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ‘एक बहुलवादी और एक बाजारवादी अर्थव्यवस्था वाले खुले समाज के रूप में, हम व्यवस्थित रूप से दुनिया के साथ हैं।’ कोविड-19 के दौरान हमारे जोश की विश्व स्तर पर प्रशंसा की गई है और इस महामारी में हमने दिखाया है कि हम न केवल एक आत्मनिर्भर देश हैं, बल्कि विश्व स्तर पर मूल्यांकन और अनुकरण के लायक भी हैं। निश्चित रूप से चीन को विश्व स्तर पर नजरअंदाज किया गया है क्योंकि उसने जानबूझकर कोविड-19 के बारे में विश्व को गुमराह किया है और इस कठिन समय में शेष दुनिया को समाधान प्रदान करने से भी पीछे हटा है। 

भारत: क्या करना चाहिए और क्या नहीं : प्रत्येक भारतीय नागरिक को श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में नए भारत को बनाने में योगदान करना चाहिए। यह विडंबना है कि जब चीनी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान भारत में शुरू हुआ, मैंने एक समाचार पढ़ा कि ‘बायकॉट चायना’ टी-शर्ट्स का निर्माण चीन में किया गया था। हमें वास्तव में चीनी उत्पादों का बहिष्कार करने की आवश्यकता है। आज व्यक्तिगत व्यावसायिक हितों से पहले राष्ट्रहितों को रखने की जरूरत है। हमें ‘ब्रांड इंडिया’ पर भरोसा करना होगा और एक उत्पादन राष्ट्र बनना होगा। नवाचार और अनुसंधान इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने की कुंजी है जिस पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी बल दिया गया है। मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत ने एक गौरवशाली भारतीय राष्ट्र की नींव  रखी है और हमें इसे यथार्थ बनाने के लिए सहयोग करना चाहिए।-बंडारू दत्तात्रेय(माननीय राज्यपाल हि.प्र.)


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