तालिबानी खतरे के खिलाफ भारत पहले से मजबूत स्थिति में

punjabkesari.in Thursday, Aug 19, 2021 - 05:06 AM (IST)

जब अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से अपने देश के सैनिकों की वापसी की घोषणा की तो योजना सितम्बर तक अपने सुरक्षाबलों तथा कूटनीतिक कर्मचारियों को धीरे-धीरे हटाने की थी। तालिबान का तेजी से आगे बढऩा, जिसे स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त था, में न केवल अमरीका को हैरान कर दिया बल्कि इसके सहयोगी भारत को भी।

अमरीका तथा भारत दोनों को अपने नागरिकों को तालिबान की नाक के ठीक नीचे से निकालना पड़ा जिन्होंने बड़ी तेजी से काबुल पर कब्जा कर लिया। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस सारी प्रक्रिया में दोनों देशों को बहुत बड़ा झटका लगा है। दोनों देशों द्वारा वित्त, आधारभूत निर्माणों तथा रक्षा प्रशिक्षण के रूप में अफगानिस्तान को उपलब्ध करवाया गया बड़ा समर्थन असफल साबित हुआ क्योंकि अफगानिस्तानी सुरक्षाबलों ने दब्बूपना दिखाते हुए तालिबान के आगे आत्मसमर्पण कर दिया तथा राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ कर भाग गए। 

अफगानिस्तान ऐतिहासिक तौर पर विश्व का युद्ध मैदान बना रहा। शुरूआती घुसपैठियों के बाद यह रूसी तथा ब्रिटिश साम्राज्य के लिए युद्ध का मैदान बना रहा। आधुनिक काल में, 1979 में रूसी घुसपैठ ने देश को उथल-पुथल में धकेल दिया। रूस ने एक दशक बाद वहां से निकलने का निर्णय किया और तालिबान के विकास के लिए देश को एक उर्वरक मैदान के तौर पर छोड़ दिया। अमरीकी, जिन्होंने यह निष्कर्ष निकाला था कि 2001 में उसकी जमीन पर 9/11 के हमले की योजना ओसामा बिन लादेन ने तालिबानी शासन के अंतर्गत अफगानिस्तान से बनाई थी और उसने आतंकवाद खत्म करने के प्रयास में देश पर अधिकार कर लिया। यद्यपि अमरीकियों ने पाकिस्तान में शरण लिए बैठे ओसामा बिन लादेन को मार गिराया, उन्होंने वर्तमान राष्ट्रपति द्वारा सुरक्षाबलों की वापसी की घोषणा तक अफगानिस्तान को नहीं छोड़ा था। 

भारत, जो अमरीका के साथ बहुत सक्रियतापूर्वक अफगान सरकार का समर्थन कर रहा था, के तालिबानियों द्वारा देश पर कब्जा किए जाने के बाद सर्वाधिक नकारात्मक रूप से प्रभावित देश बनने की आशंका है। पाकिस्तानी सेना तथा आई.एस.आई. ने पहले ही अपना ध्यान तालिबान के समर्थन तथा अफगान सुरक्षा बलों को उलझाए रखने पर केन्द्रित कर लिया था। अपने सहयोगी तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर पूर्ण नियंत्रण के बाद अब यह अपने सभी स्रोतों को भारत के साथ लगती सीमा की ओर मोड़ सकता है। तालिबान ने भी भारत के लिए अपनी घृणा सार्वजनिक कर दी है और इसके द्वारा मैत्री का हाथ बढ़ाने की संभावना नहीं है। हाल ही में इसके एक नेता ने दावा किया था कि काबुल पर कब्जा करने के बाद इसका अगला लक्ष्य श्रीनगर है। 

आई.एस.आई. तथा पाकिस्तानी सेना के साथ तालिबान सक्रियतापूर्वक कश्मीर घाटी में मुसीबतें भड़काने के प्रयास करता रहा है। कुछ हद तक इसके अफगानिस्तान में उलझने तथा कुछ हद तक भारतीय सरकार के आक्रामक रवैये के कारण वे खुद को रोके रखे थे। अब अफगानिस्तान के  उनके कब्जे में आने तथा कहीं अन्य से कोई खतरा न होने के कारण उनके अपना ध्यान कश्मीर पर स्थानांतरित करने की आशंका है। यद्यपि क्षेत्र में स्थिति दो दशक पूर्व की स्थिति से काफी भिन्न है जब तालिबान तथा पाकिस्तान समॢथत अन्य गुटों ने घाटी में गंभीर स्थिति पैदा कर दी थी। भारत सरकार तब कड़े प्रतिशोधात्मक कदम उठाने से बचती रही। 

वर्तमान भाजपानीत सरकार ने रणनीति में बदलाव किया है और अब मजबूती से पलटवार करने की इच्छुक है। सीमाओं पर करीबी नजर रखने के अतिरिक्त अनुच्छेद 370 को रद्द करने के उपरांत लम्बे समय तक चले प्रतिबंधों तथा 2 वर्ष पूर्व जम्मू-कश्मीर के दर्जे को बदलने के बाद क्षेत्र में आतंकवादी घटनाओं में तेजी से कमी आई है। बालाकोट एयर स्ट्राइक तथा मजबूत सुरक्षात्मक जमीनी कार्रवाई ने भी ये संकेत भेजे हैं कि देश अब आतंकवादियों को बढ़त नहीं बनाने देगा। अभी भी खतरा समाप्त नहीं हुआ और बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या तालिबान अफगानिस्तान पर ही केन्द्रित होना चाहेंगे या क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना पसंद करेंगे। ड्रोन्स के इस्तेमाल, अधिक परिष्कृत हथियारों तथा निगरानी उपकरणों जैसी नई तकनीकों के साथ भारत को अब मजबूती से खड़े रहना होगा। इसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कश्मीरी जनसंख्या का बड़ा वर्ग अलग-थलग न पड़ जाए।-विपिन पब्बी
 


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