संवादहीनता के कारण रिश्तों में बढ़ रहीं दूरियां

punjabkesari.in Tuesday, Jul 12, 2022 - 05:00 AM (IST)

संवाद किसी भी रिश्ते की पहली और जरूरी आवश्यकता होती है, जिसमें सुनना, उपलब्धता, समझ, आपसी सम्मान और भावना शामिल हैं। संक्षेप में कहें तो संवाद करने का अर्थ है यह जानना कि कैसे देना है और कैसे प्राप्त करना है! सबसे व्यावहारिक तरीके से परिभाषित, यह विचारों, सूचनाओं को प्रसारित करने की प्राकृतिक प्रक्रिया है और एक निश्चित समय में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति की भावनाओं को अभिव्यक्त करने का माध्यम है। लेकिन आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी और बढ़ती टैक्नोलॉजी की आपाधापी में बच्चे और माता-पिता के बीच संवाद का स्तर कम होता जा रहा है। कई बार संवाद होता भी है तो वह व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से। ऐसे में पेरैंट्स और बच्चों के बीच फासले बढ़ जाते हैं। 

चाणक्य नीति कहती है कि संतान को लेकर हर माता-पिता को गंभीर और जागरूक रहना चाहिए। इसके साथ ही बच्चों को अच्छे संस्कार देने का प्रयास करना चाहिए। अब जरा सोचिए कि जब माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद की कड़ी ही कमजोर पड़ती जाएगी, तो बच्चे संस्कार कहां से सीख पाएंगे? ऐसे में जब बच्चे माता-पिता की उपेक्षा का शिकार बनते हैं, तो वे एक ऐसी दुनिया की तरफ बढ़ जाते हैं, जो निकट भविष्य में ङ्क्षचता का कारण बन सकता है। बच्चा अपने माता-पिता के बर्ताव व रहन-सहन से प्रभावित होता है। 

कहते हैं कि बच्चे का पहला स्कूल उसका घर ही होता है। जब बच्चा घर में ही उपेक्षित होने लगता है तो वह न सिर्फ परिवार से दूर होने लगता है, बल्कि अकेलेपन की दलदल में धंसता जाता है। बच्चे की अपनी एक अलग दुनिया बननी शुरू हो जाती है। अब अगर एक बच्ची या बच्चा सिर्फ अपने हमउम्र लोगों के साथ ही जीवन जीने लगे, तो हम समझ सकते हैं कि वे कैसी बातें करेंगे, कैसा जीवन जिएंगे! 

ऐसी परिस्थितियों में बच्चे अपने माता-पिता से दूर होने लगते हैं और चिड़चिड़े बन जाते हैं। उनके बीच का भरोसा खत्म होने लगता है और बच्चे अपने माता-पिता से कहीं ज्यादा अपने करीबी दोस्तों पर भरोसा करने लग जाते हैं। इतना ही नहीं, परिवार में कम होता आपसी संवाद अपनों के बीच सम्मान में भी कमी पैदा करता है। माता-पिता को यह भी पता नहीं चलता कि उनके बच्चे क्या कर रहे हैं और किस रास्ते पर हैं। उसके बाद एक ऐसा समय भी आता है, जब बच्चे गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं और जब तक अभिभावकों को अपने बच्चों की आदतों और व्यवहार के बारे में पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसे में परिवार के बीच एक स्वस्थ व खुशहाल संवाद होना बेहद जरूरी है, खासकर माता-पिता और बच्चों के बीच। 

चीन में एक मशहूर कहावत है कि जितनी सावधानी से छोटी मछली के व्यंजन पकाए जाते हैैं,उतनी ही नजाकत से संभालना पड़ता है परिवार को। चीन और जापान में इस कहावत को गम्भीरता से लिया जाता है। हमारे देश में परिस्थितियां इसके उलट हैं, जिनमें पिछले 2 दशकों में काफी बदलाव आया है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो पिछले दशक में बाल अपराधों में 62 फीसदी वृद्धि हुई, जिनमें 16 से 18 वर्ष के बच्चे शामिल थे। संवादहीनता और संस्कारविहीन शिक्षा का परिणाम है कि आज बच्चे अपराध जैसी प्रवृत्तियों में शामिल हो रहे हैं। 

आज अभिभावकों के पास अपने बच्चों को देने के लिए संसाधन तो हैं, पर समय नहीं। इस तकनीकी युग में छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन तो है, जिससे तमाम जानकारी तक उनकी पहुंच आसान हो गई है, लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों से दूरी बढ़ रही है। आज बच्चे अपने माता-पिता से कुछ पूछने की बजाय गूगल पर सर्च करना पसंद करते हैं। उन्हें लगता है कि वहां उनके सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे। वे सोशल साइट्स की जानकारी को ही सही मानने की भूल कर जाते हैं।  जीवन की जो शिक्षा दादा-दादी, नाना-नानी या परिवार के अन्य सदस्यों से मिलती थी, वह परम्परा अब खत्म हो रही है। परिवार बिखर रहे हैं। इसका असर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। रिश्तों के प्रति प्रेम खत्म हो रहा है। रिश्तों को जिंदा रखने के लिए आपस में चर्चा बेहद जरूरी है। 

मैडीकल साइंस की मानें तो परिवार के सदस्यों के बीच संवाद की कमी के कारण मानसिक अवसाद बढ़ रहा है। खासकर बच्चों में इसका असर साफ देखा जा सकता है। वर्तमान दौर में शूगर, हाई ब्लड प्रैशर, हार्ट जैसी समस्याओं की जड़ संवाद की कमी ही है। संवादहीनता की कमी के चलते न केवल मानसिक रोग बल्कि शारीरिक रोग भी बढ़ रहे हैं। आज समाज में हर रिश्ते में तनाव साफ देखा जा सकता है। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास दो पल बैठकर बात करने का समय नहीं है। सब अपने मोबाइल फोन में व्यस्त हो गए हैं। भावनात्मक जुड़ाव खत्म हो गया है। संवादहीनता से वैचारिक मतभेद बढ़ते हैं। जिन बच्चों का अपने माता-पिता से संवाद नहीं होगा वहां जैनरेशन गैप का भी खतरा बढ़ जाएगा। ऐसे में एक सुखी परिवार के लिए निरंतर संवाद होना जरूरी है।-सोनम लववंशी 
 


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