सरकारी कर्मियों की संख्या बढ़ाइए, उनका वेतन नहीं

punjabkesari.in Tuesday, Aug 31, 2021 - 04:15 AM (IST)

संविधान निर्माताओं ने कल्याणकारी राज्य की कल्पना की थी। कहने की जरूरत नहीं कि जन-कल्याण का उद्देश्य हासिल करने के लिए सरकारी कर्मियों की नियुक्ति करनी ही होगी। सोच है कि सरकारी कर्मी अपने कार्यों का निष्ठापूर्वक सम्पादन करके देश के आर्थिक विकास में योगदान देंगे और जन कल्याण हासिल करेंगे लेकिन यदि उनको सरकार इतना अधिक वेतन देने लगे कि विकास और जन-कल्याण दोनों ठप्प हो जाएं तो ऐसी स्थिति में सरकारी कर्मियों का कल्याण प्राथमिक और जनकल्याण गौण हो जाता है।

विश्व बैंक ने ‘वैश्विक परिदृश्य में सरकारी वेतन’ नाम से अध्ययन के अनुसार वियतनाम में देश के नागरिक की औसत आय की तुलना में सरकारी कर्मी का औसत वेतन 90 प्रतिशत होता है। यदि वियतनाम के नागरिक की औसत आय 100 रुपए है तो सरकारी कर्मी का औसत वेतन 90 रुपए है। चीन में यदि नागरिक का औसत वेतन 100 रुपए है तो सरकारी कर्मी का औसत वेतन 110 रुपए बैठता है लेकिन भारत में यदि नागरिक का औसत वेतन 100 रुपए है तो सरकारी कर्मी का औसत वेतन 700 रुपए है। 

गौर करने की बात यह है कि वियतनाम और चीन दोनों ही हमसे बहुत अधिक तीव्रता से आर्थिक विकास हासिल कर रहे हैं। इससे संकेत मिलता है कि भारत की आर्थिक विकास की दर के कम होने के पीछे एक कारण यह हो सकता है कि देश की ‘राष्ट्रीय आय’ को सरकारी कर्मियों के ‘वेतन’ में खपाया जा रहा है, फलस्वरूप जन-कल्याण और आॢथक विकास दोनों पीछे होते जा रहे हैं। इसी क्रम में विश्व बैंक ने बताया है कि वैश्विक स्तर पर सरकारी खपत में गिरावट हो रही है, जो 2009 में देशों की कुल आय का 18.0 प्रतिशत थी जो 2014 में घटकर 17.2 प्रतिशत हो गई और 2019 में घटकर 17.1 प्रतिशत रह गई। इसकी तुलना में भारत में सरकारी खपत बढ़ती जा रही है। 

वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2014 में देश की आय में सरकारी खपत का हिस्सा 10.4 प्रतिशत था जो 2020 में बढ़कर 12.6 प्रतिशत हो गया। यहां यह स्पष्ट करना होगा कि वैश्विक स्तर पर सरकारी खपत लगभग 17 प्रतिशत की तुलना में भारत में 12 प्रतिशत है। कारण यह है कि तमाम देशों में सरकारी कर्मियों की नियुक्ति अधिक संख्या में की गई है। जैसे भारत में एक लाख नागरिकों के पीछे 139 सरकारी कर्मी हैं जबकि अमरीका में एक लाख नागरिकों के पीछे 668 सरकारी कर्मी हैं। 

अमरीका में भारत की तुलना में सरकारी कर्मियोंं की संख्या लगभग पांच गुना है। यानी भारत में 12.6 प्रतिशत सरकारी खपत में 139 कर्मी नियुक्त हैं तो अमरीका में 17.1 प्रतिशत सरकारी खपत में 668 कर्मी नियुक्त हैं। अत: हमें इस बात से विचलित नहीं होना चाहिए कि वैश्विक स्तर पर सरकारी खपत ज्यादा है। हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि भारत में कम संख्या में कर्मियों द्वारा अधिक खपत क्यों की जा रही है। और भी चिंताजनक बात यह है कि विश्व श्रम संगठन के अनुसार कोविड संकट के दौरान भारत में सभी कर्मियों के वेतन में 3.6 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि असंगठित श्रमिकों के वेतन में 22.6 प्रतिशत की। यह गंभीर है क्योंकि एक तरफ सरकार की खपत में वृद्धि हो रही है और दूसरी तरफ नागरिक की आय में गिरावट आ रही है। ऐसा नहीं है कि सरकारी कर्मी अपना कार्य नहीं करते, वे कार्य करते हैं। उनमें से कई ईमानदार भी हैं लेकिन कार्य के लिए जिस प्रकार के वेतन उन्हें दिए जा रहे हैं उनका देश पर विपरीत प्रभाव पड़ता दिख रहा है। 

राज्यों की स्थिति और भी खराब है। केरल में सरकार का 70 प्रतिशत बजट सरकारी कर्मियों को वेतन देने में खप जाता है और तमिलनाडु में 71 प्रतिशत। तमिलनाडु में सरकारी स्कूल  के हैडमास्टर को 1,03,000 रुपए प्रति माह वेतन दिया जा रहा है जबकि निजी स्कूल में 15,000 रुपए मात्र ही होगा। इसके बावजूद सरकारी विद्यालयों में छात्रों का रिजल्ट निजी विद्यालयों की तुलना में अधिकतर कमजोर रहता है। अत: यह नहीं कहा जा सकता है कि सरकारी कर्मियों को अधिक वेतन देने से उनकी कार्यकुशलता में सुधार हुआ है। 

सरकारी कर्मचारियों की कार्यकुशलता में सुधार लाने के लिए हर वेतन आयोग द्वारा कुछ संस्तुतियां की जाती हैं, जिन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है और केवल वेतन वृद्धि कि संस्तुतियों को लागू कर दिया जाता है। इस परिस्थिति में सरकार को वर्तमान सरकारी कर्मियों के वेतन में कटौती कर देनी चाहिए जिससे ये वियतनाम और चीन के समान हो जाएं। इस बची हुई रकम से वर्तमान सरकारी कर्मियों की संख्या को बढ़ा दिया जाए। ऐसा करने से दो विसंगतियां दूर हो जाएंगी-पहली यह कि हमारे सरकारी कर्मियों का वेतन दूसरे तीव्र विकास करने वाले देशों के समतुल्य हो जाएगा और दूसरी यह कि सरकार के पास कर्मियों की एक नई फौज तैयार हो जाएगी, जिससे जन-कल्याण और आॢथक विकास के कार्य संपादित हो सकेंगे।-भरत झुनझुनवाला
 


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