हिमाचल प्रदेश में उपचुनावी द्वंद्व के लिए दोनों राष्ट्रीय दल लामबंद

punjabkesari.in Tuesday, Sep 17, 2019 - 03:38 AM (IST)

हरियाणा सहित कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ हिमाचल प्रदेश में भी संसदीय चुनावों के फलस्वरूप रिक्त हुई विधानसभा की दो सीटों धर्मशाला तथा पच्छाद केचुनाव की तारीखें इस सप्ताह किसी भी समय घोषित किए जाने की पूरी संभावना है। हर बार की तरह इस बार भी यह मुकाबला देश के दो बड़े राजनीतिक दलों के बीच ही होना तय है। भाजपा और कांग्रेस इन दो राष्ट्रीय दलों को छोड़ प्रदेश में किसी तीसरे दल या क्षेत्रीय दल का अस्तित्व लगभग नदारद ही है। भाजपा सत्ताधारी दल है जबकि कांग्रेस 21 सदस्यों के साथ विपक्ष का दायित्व निर्वहन कर रही है। 

हाल ही में प्रदेश में सम्पन्न हुए संसदीय चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया, जिसके फलस्वरूप रिक्त हुई दोनों विधानसभा सीटों पर इससे पूर्व भाजपाई विधायक काबिज थे। निश्चित रूप से उपचुनाव में सत्ताधारी दल का वर्चस्व प्रभावी रहने तथा प्रदेश में भाजपा बहुमत के साथ शासन-प्रशासन सब पर आधिपत्य स्थापना कारण लाभ में रह सकती है। इस परिप्रेक्ष्य  में भाजपा, खासकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए ये दो उपचुनाव नाक का सवाल होंगे। 

राज्य भाजपाध्यक्ष ने हाल ही में एक वक्तव्य में प्रदेश में आचार संहिता के लागू होने के साथ-साथ ही अपनी पार्टी के इन स्थानों के लिए दोनों प्रत्याशियों का अंतिम चयन कर पार्टी संसदीय दल द्वारा नामों की घोषणा का संकेत दिया है। उन्होंने बहरहाल दोनों ही स्थानों पर स्थानीय प्रत्याशी को वरीयता देने का स्पष्ट इशारा कर दिया है। इसका मतलब है कि यह चुनाव स्थानीय और बाहरी मुद्दे को उछाल कर लड़ा जाएगा। पार्टी ने समाचार पत्र बम के उछल रहे विवादास्पद मतभेदों को भी खारिज किया है और लगता है कि भाजपा पूरी तरह सतर्क है और कोई खतरा मोल नहीं लेगी। 

पार्टियों की आंतरिक तनातनी
हालांकि कांग्रेस प्रदेश में भाजपा के तीन गुटों में विभाजित होने तथा अंदरूनी तनातनी और मतभेदों के कारण पराजय की ओर अग्रसर मुद्दे को खूब भुना रही है। उसकी अपनी छवि राष्ट्र व प्रदेश में कम चर्चा में नहीं है। आए दिन प्रदेश में कांग्रेस भी गुटों में बंटने तथा इसके शीर्ष नेताओं में खुलेआम विभाजित और मतभेदों के सार्वजनिक होने और टांग घसीटी में पार्टी के दिग्गज नेताओं के संलिप्त होने के किस्से जगजाहिर हो रहे हैं। कई वरिष्ठ नेता कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल होने तथा कई राष्ट्रीय मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खुलेआम प्रशंसा के कारण चर्चा में हैं। कांग्रेस वैसे दोनों उपचुनाव जीत लेने के दावे कर रही है और उसने भी अपने प्रत्याशियों बारे शीघ्र्र भविष्य में पत्ते साफ कर देने की घोषणा की है।

इन दिनों पार्टी का नेतृत्व सोनिया गांधी ने अपने हाथ संभाल लिया है। निश्चित रूप से परिपक्व तथा वरिष्ठ नेतृत्व का लाभ कांग्रेस को मिलेगा। वैसे अभी तक पार्टी संगठन चुनावी प्रचार और मजबूत नियोजन में भाजपा से काफी पीछे है। आने वाले कुछ दिनों में दोनों ही दल पूरी फार्म में आकर प्रदेश की सियासी फिजाओं में गर्माहट का आभास कराने वाले हैं। कांटे की टक्कर दोनों ही सीटों पर होगी और परिणाम ही बताएंगे कि वास्तव में ऊंट किस करवट बैठता है। 

प्रदेश में पैंशनर्स सरकार से खफा
हिमाचल प्रदेश में सरकारी सेवाओं से सेवानिवृत्त करीब डेढ़ लाख पैंशनर्स हैं, जिनकी मांगों को लेकर पिछले कुछ वर्षों से यह वर्ग सरकार से खफा चल रहा है। हालांकि इनकी मांगें न्यायोचित और सरकार के लिए बड़ी समस्या नहीं हैं। हिमाचल पैंशनर्स वैल्फेयर एसोसिएशन मांग कर रही है कि उनके संगठन के साथ सरकार तत्काल सलाहकार समिति का गठन करके मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बैठक करे ताकिपैंशनरों की न्यायसंगत मांगों का सौहार्दपूर्ण वातावरण में समाधान किया जा सके। यह भी शिकायत है कि कई पैंशनरों के मैडीकल बिल साल से भी अधिक समय से अधर में लटकेआ रहे हैं। कुछ विभागों द्वारा सरकार से उनके निपटारे के लिए स्पैशल फंड की डिमांड की गई है। पैंशनरों की मांग है कि उन्हें 65, 70 व 75 साल पर मिल रही वेतन वृद्धि के 5, 10, 15 प्रतिशत को  मूल वेतन में शामिल करके उनको लाभान्वित किया जाए।-कंवर हरि सिंह
 


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