वस्तुत: भारत तथा पाकिस्तान के बीच कोई वास्तविक अंतर नहीं

punjabkesari.in Monday, Jun 06, 2022 - 04:28 AM (IST)

कई वर्षों तक मेरा प्रारंभिक लेखन पाकिस्तान में समाचार पत्रों के लिए था। मैं कई बार वहां गया हूं, वहां के विश्वविद्यालयों तथा कई बार साहित्य उत्सवों में बोला हूं और इस स्थान बारे अच्छी तरह से जानता हूं और गत तीन दशकों में इसके बारे में काफी अध्ययन किया है। जिस चीज ने मुझे चौंकाया वह यह कि जहां भारत निरंतर धर्मनिरपेक्षता से दूर तथा हिंदुत्व किस्म के राष्ट्र की ओर बढ़ रहा है, पाकिस्तान दूसरी दिशा में जाने का प्रयास कर रहा है अर्थात धर्म से दूर। 

1947 में पाकिस्तान ने संवैधानिक तौर पर एक धार्मिक राष्ट्र बनना चाहा। जिन्ना के उत्तराधिकारी लियाकत अली खान के अनुसार कानून तथा सरकार में धर्म का एकीकरण देश में एक सकारात्मक स्पंदन पैदा करेगा। जापानियों पर एटम बम गिराने के केवल कुछ वर्षों बाद बोलते हुए लियाकत ने कहा कि मानवता का भौतिक तथा वैज्ञानिक विकास व्यक्तिगत मानव के विकास से आगे है। इसका परिणाम यह हुआ कि वह व्यक्ति ऐसी खोजें करने में सक्षम था जो विश्व तथा समाज को नष्ट कर सकती थीं। ऐसा केवल इसलिए हुआ क्योंकि उस व्यक्ति ने अपने आध्यात्मिक पक्ष को नजरअंदाज करना चुना तथा यदि वह परमात्मा में अधिक विश्वास बनाए रखता तो उसकी समस्याएं बाहर नहीं आतीं। 

लियाकत महसूस करते थे कि धर्म ने विज्ञान के खतरों को संयमित किया है तथा मुसलमान के तौर पर पाकिस्तानियों को इस्लाम के आदर्शों को अपनाना तथा विश्व के लिए योगदान देना चाहिए। राष्ट्र द्वारा मुसलमानों के इस्लाम के अनुसार अपना जीवन जीने में सक्षम बनाने से गैर-मुसलमानों का कोई लेना-देना नहीं था इसलिए उन्होंने जो कहा उससे उन्हें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए थी। यही वह चीज थी जिसका इरादा मुस्लिम लीग द्वारा किया गया था लेकिन जो हुआ वह भिन्न था। ध्यान मुसलमानों से गैर-मुसलमानों पर स्थानांतरित हो गया। पाकिस्तान ने संवैधानिक तौर पर अल्पसंख्यकों को राष्ट्रपति (1960 के दशक में) अथवा प्रधानमंत्री (1970 के दशक से) बनने से रोका। 

इस बीच पाकिस्तान के मुसलमानों से संबंधित कानून समय के साथ कमजोर हो गए। रमजान में रोजे जरूरी करने का कानून, जो अनावश्यक था क्योंकि उपमहाद्वीप के अधिकांश मुसलमान रोजे रखते ही हैं, का रेस्तरांओं तथा मल्टीप्लैक्स के मुसलमान मालिकों द्वारा शिकायत के बाद विरोध होने लगा। पाकिस्तान के सुन्नियों के बैंक खातों से 2.5 प्रतिशत धन निकालने के साथ जकात का कानून लागू करना इसलिए असफल हो गया क्योंकि ऐसा होने से ठीक पहले लोगों ने अपना धन निकाल लिया। शिया, जिनके पदानुक्रमिक धर्मगुरु हैं, जिन्हें वे सीधे धन देते हैं, ने पहले आपत्ति जताई और उन्हें इससे छूट दी गई। 

पाकिस्तान तथा भारत के पीनल कोड एक समान हैं तथा पाकिस्तानी  302, 420 तथा 144 की संख्याओं से जानकार हैं, जैसे कि हम। यहां उन्होंने कानून बदलने का प्रयास किया। प्रारंभिक इस्लाम के समय में कोई जेलें नहीं होती थीं। अपराधों के लिए दंड आमतौर पर हिरासत की बजाय शारीरिक होता था। 1980 के दशक में पाकिस्तान ने चोरी के लिए दंड के तौर पर हाथ काटने की सजा लागू की और इसे अंजाम देने के लिए खूंखार डाक्टरों को प्रशिक्षित किया। मगर पाकिस्तान के जज, जो भारत की तरह सामान्य कानूनों में प्रशिक्षित थे, ऐसी सजाएं देने से हिचकिचाते थे तथा इसीलिए कानून बिना इस्तेमाल किए ही रहे। पाकिस्तान ने वेश्यावृत्ति के लिए पत्थर मारने की सजा लागू की मगर किसी को भी पत्थरों से नहीं मारा गया। 

1980 के दशक में ही थोड़े समय के लिए शराब पीने के आरोपियों को कोड़े लगाने की सजा भी समाप्त हो गई। 2009 में पाकिस्तान की संघीय शरियत अदालत ने शराब पीने के दंड को समाप्त कर दिया क्योंकि जजों का कहना था कि यह एक गंभीर अपराध नहीं है। राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ  के अंतर्गत पाकिस्तान बलात्कार के लिए दंड की ओर लौटा- शरिया से पीनल कोड की ओर वापसी। एक शरियत अदालत द्वारा बैंकिंग प्रणाली में ब्याज पर प्रतिबंध की मांग, जो अर्थव्यवस्था को समाप्त कर देता, को आने वाली सभी सरकारों ने नजरअंदाज कर दिया। 

पाकिस्तान का इस्लामीकरण करने का अंतिम बड़ा प्रयास नवाज शरीफ के अंतर्गत लगभग 2 दशक से पहले किया गया, तथाकथित 15वां संशोधन, जो सीनेट में पराजित हो गया। पाकिस्तान अपर्याप्त रूप से इस्लामिक बना रहा तथा ईरान की तरह कोई पदानुक्रमिक धर्म गुरुओं के न होने से कभी भी धर्मशासित नहीं बन सका। सऊदी अरब के विपरीत यहां कभी भी नैतिक पुलिस नहीं रही क्योंकि पाकिस्तानी सांस्कृतिक रूप से दक्षिण एशियाई हैं जिनकी स्थानीय रिवायतें हैं। 

जहां पाकिस्तान ने धर्मनिरपेक्ष बनने का प्रयास किया, भारत दूसरे रास्ते चल पड़ा। एक चीज जिसका भारत दावा कर सकता है। वह यह कि इसने मुसलमानों को उच्च पद ग्रहण करने से नहीं रोका। भारत के मुसलमान राष्ट्रपति रहे हैं लेकिन पाकिस्तान के विपरीत भारत के राष्ट्रपति नाममात्र के शासक हैं जिनके पास कोई वास्तविक अधिकार नहीं। यदि उनके पास संसद को बर्खास्त करने की शक्ति होती, जैसे कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति के पास है, तो यह देखना दिलचस्प होता कि भारत में कितने मुसलमानों को पदोन्नत किया जाता। 

1947 के बाद से पहली बार अब भारत में कई मुसलमान मुख्यमंत्री, 15 राज्यों के मंत्रिमंडल में एक भी मुसलमान मंत्री नहीं है तथा 10 राज्यों में केवल एक मुसलमान मंत्री है जिसे आमतौर पर अल्पसंख्यक मामले सौंपे गए हैं। सत्ताधारी पार्टी के 303 लोकसभा सांसदों में से कोई भी मुसलमान नहीं है। यहां तक कि पूर्ववर्ती लोकसभा के इसके 282 सदस्यों में भी कोई मुसलमान नहीं था। जब मुख्तार अब्बास नकवी, जिन्हें राज्यसभा की सीट नहीं दी गई, एक मंत्री के तौर पर अपना पद गंवा देंगे तो पहली बार भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल में कोई भी मुसलमान नहीं होगा। 

कानूनों के मामले में निश्चित तौर पर भारत धीरे-धीरे बहुलवाद से दूर होता गया है। 2015 से शुरू होकर भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों ने बीफ पास रखने का अपराधीकरण किया है जिसके परिणामस्वरूप बहुत सी बीफ लिंचिंग हुई है। 

2019 में भारतीय संसद ने एक ही बैठक में ट्रिपल तलाक कहना अपराध बना दिया जिसके लिए मुस्लिम पुरुषों को दंड दिया जाता है (सुप्रीमकोर्ट ने पहले ही ट्रिपल तलाक को गैर-कानूनी घोषित कर दिया)। 2018 के बाद भाजपा शासित 7 राज्यों ने अंतरधार्मिक विवाह को अपराध बना दिया जिसके अंतर्गत  धर्म परिवर्तन की इजाजत नहीं है। हालांकि हिंदू धर्म में धर्म परिवर्तन, जिसे ‘पूर्वजों का धर्म’ के तौर पर परिभाषित किया जाता है, की छूट है तथा इसे उत्तराखंड तथा मध्यप्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में धर्म परिवर्तन नहीं माना जाता। भारत में अभी तक किसी को भी बलात धर्म परिवर्तन के लिए सजा नहीं दी गई इसलिए इन कानूनों की जरूरत नहीं है लेकिन इनका उद्देश्य केवल प्रताडि़त करना है। 

2019 में गुजरात में एक कानून को कड़ा किया जो मुस्लिम बस्तियों को ङ्क्षहदुओं से सम्पत्ति खरीदने अथवा लीज पर लेने से रोकता है। दरअसल विदेशी गुजरात में सम्पत्तियां खरीद तथा किराए पर ले सकते हैं जबकि गुजराती मुसलमान नहीं। वस्तुत: भारत तथा पाकिस्तान के बीच कोई वास्तविक अंतर नहीं है क्योंकि वे दो पक्षों से एक-दूसरे की ओर बढ़ रहे हैं। एक ने साम्प्रदायिक सिरे से शुरूआत की लेकिन धर्मनिरपेक्षता की ओर बढ़ा। दूसरा, धर्म निरपेक्षता से शुरू हुआ और साम्प्रदायिकता में फिसल गया।-आकार पटेल


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