आंकड़े प्रतिशत में न होने से टीकाकरण अभियान पर असर

punjabkesari.in Saturday, Oct 09, 2021 - 05:12 AM (IST)

किसी देश का केवल जी.डी.पी. का आयतन बताने से उसके नागरिकों की आर्थिक स्थिति का पता नहीं चलता जब तक प्रति-व्यक्ति आय न बताई जाए और साथ ही आॢथक असमानता का सूचकांक यह न बताए कि गरीब-अमीर की खाई कितनी कम या ज्यादा है। भारत जी.डी.पी. में दुनिया में छठे स्थान पर है लेकिन प्रति-व्यक्ति आय (नोमिनल) में आई.एम.एफ. के अनुसार 145वें स्थान पर और परचेजिंग पॉवर पैरिटी (पी.पी.पी.) के पैमाने पर महंगाई के कारण 122वें स्थान पर है। देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश (यू.पी.) 20 लाख करोड़ रुपए के जी.डी.पी. आयतन के साथ दूसरे स्थान पर लेकिन प्रति-व्यक्ति आय में 28 वें स्थान पर है। 

सरकारें इसमें असत्य या अर्ध-सत्य का सहारा लेती हैं जब देश के प्रधानमंत्री भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने और पांचवें स्थान पर पहुंचाने को सरकार की एकमात्र मंशा बताते हैं। भारत का जी.डी.पी. बढ़ रहा है पर अम्बानी/अडानी की आय बढ़ा कर। होरी और जुम्मन पहले से बुरी हालत में हैं। जिसका खुलासा सरकार के ही 77वीं एन.एस.एस.ओ. चक्र पर आधारित कृषि व पशुपालन पर स्थिति विश्लेषण रिपोर्ट सांख्यिकी मंत्रालय ने किया है। 

किसान की आय दोगुनी करने का वायदा 2017 के राज्य चुनाव के पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बरेली की जनसभा में किया था लेकिन इन चार वर्षों में किसानों की आय 8931 रुपए (बकौल नाबार्ड) से बढ़ कर मात्र 10218 रुपए  हुई। इसमें महंगाई को अगर घटा दिया जाए तो वास्तविक आय 8100 रुपए हो गई है यानी घट गई है। लेकिन अब केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के अधिकारी गाल बजाते हुए कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री ने नोमिनल आय दोगुनी करने की बात कही थी। अगर वे पी.एम. द्वारा नियुक्त दलवाई समिति की रिपोर्ट के पहले अध्याय का तीसरा ङ्क्षबदू पढ़ते तो उसमें साफ लिखा है ‘वास्तविक आय’। उसी तरह कोरोना चूंकि एक संक्रामक बीमारी है और टीकाकरण ही अब तक का ज्ञात एकमात्र निदान है लिहाजा केवल यह बताने से कि भारत में कितने लोगों को पहला या दूसरा टीका लगा, हम आश्वस्त नहीं हो सकते कि बीमारी के प्रसार के खतरे की स्थिति क्या है। 

संक्रामकता आबादी में होती है लिहाजा कितने प्रतिशत लोग बाकी कितने प्रतिशत को संक्रमित कर सकते हैं, यह इससे तय होगा कि टीकाकरण का प्रतिशत क्या है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 24 घंटे पहले देशवासियों को ताकीद की है कि कोरोना की दूसरी लहर खत्म नहीं हुई है और अगले 3 माह भारी पड़ सकते हैं अगर टीकाकरण में सुस्ती या सामाजिक नियमों के पालन में ढिलाई हुई। उदाहरण के लिए संख्या के हिसाब से यू.पी. सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है कि उसने देश में सबसे ज्यादा टीके लगाए हैं लेकिन प्रतिशत के पैमाने पर यह देश में सबसे नीचे है। विगत अगस्त माह का उदाहरण लें। 

आई.सी.एम.आर. के अनुसार इस राज्य में प्रतिदिन औसत 7.06 लाख टीके लगे जबकि एमपी में 4.6 लाख, महाराष्ट्र में 4.33 लाख, गुजरात में 4.17 लाख, राजस्थान में 3.78 और बिहार में 3.75 लाख। जाहिर है एम.पी. के मुकाबले यू.पी. की आबादी तीन गुणा (लगभग 24 करोड़) है लिहाजा टीकाकरण भी उसी अनुपात में होना चाहिए। ऐसे में अगर यू.पी. ताजा आंकड़ों के अनुसार ‘देश में टीकाकरण में अव्वल’ इस आधार पर कहता है कि कुल 11.21 करोड़ लोगों को कम से कम एक टीका लगा है तो आबादी के प्रतिशत के अनुसार यह आधे से कम है जबकि एम.पी. या अन्य सभी राज्यों में यह प्रतिशत काफी बेहतर है। 

एम.पी. में 6.46 करोड़, गुजरात में 6.28 करोड़, महाराष्ट्र में 8.51 करोड़, बिहार में 5.92 करोड़ लोगों को कम से कम एक टीका लग चुका है जो बेहतर प्रतिशत कहा जा सकता है। केवल आंकड़ों के आधार पर अपने को सबसे आगे बताने का नतीजा यह होगा कि स्वास्थ्यकर्मी सुस्त होने लगेंगे और आम जनता भी आश्वस्त होकर सामाजिक नियमों के ही नहीं टीकाकरण के प्रति भी उदासीन हो जाएगी। उधर देश का सबसे बड़ा यह राज्य राष्ट्रीय औसत से भी पीछे चल रहा है। 

राज्य की सरकार ही नहीं केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी अपनी पीठ थपथपाने के लिए प्रतिशत का आंकड़ा भी कई बार वयस्कों की आबादी के अनुपात के रूप में दे रहा है। लेकिन चूंकि यह संक्रामक बीमारी बच्चों को भी प्रभावित करने लगी है इसलिए टीकाकरण का प्रतिशत इसके आधार पर दिया जाना चाहिए। हाल में इस पैमाने पर नीचे रहने के बाद सरकारों ने प्रतिशत में आंकड़े देना बंद कर दिया है। चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश की सरकार लगातार अपने को देश में अव्वल बता रही है जबकि प्रतिशत के आधार पर यह देश में सबसे नीचे है।-एन.के. सिंह 
 


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