यूक्रेन संघर्ष का वैश्विक परमाणु अप्रसार व्यवस्था पर प्रभाव

punjabkesari.in Sunday, Apr 24, 2022 - 05:43 AM (IST)

जब 26 दिसम्बर 1991 को पूर्ववर्ती सोवियत संघ का विघटन हुआ, यूक्रेन विश्व में तीसरा सबसे बड़ा परमाणु शक्ति सम्पन्न देश था। इसके पास विश्व में तीसरा सबसे बड़ा परमाणु शस्त्रागार था। 1994 में अमरीका, ब्रिटेन द्वारा पोषित बुडापेस्ट मैमोरेंडम की शर्तों के मुताबिक यूक्रेन को इसके परमाणु शस्त्रागार से रहित कर दिया गया जिसके बदले में इसे सुरक्षा प्रदान करने की गारंटी दी गई। मगर दुर्भाग्य से जब ऐसा करने की जरूरत पड़ी ये राजनीतिक वायदे हवा हो गए। 

शीतकाल के बाद जब अमरीका की ताकत अपने चरम पर थी, यूक्रेनिक क्षेत्र में अभी भी 1800 परमाणु हथियार तैनात थे, जो अमरीका तथा अन्य पश्चिमी राजधानियों में परमाणु अप्रसार समुदाय के के लिए एक अभिशाप थे। वे चाहते थे कि इन हथियारों को यूक्रेनियन धरती से पूरी तरह से हटा दिया जाए तथा समाप्त करने की बजाय कुछ हैरानीजनक कारणों से रूस को वापस सौंप दिया जाए। अब कुख्यात बुडापेस्ट मैमोरेंडम में कहा गया है कि यूक्रेन ‘एक निश्चित अवधि के भीतर अपने क्षेत्र से सभी परमाणु हथियारों को खत्म करने के लिए’ खुद को प्रतिबद्ध करेगा। बदले में अमरीका, ब्रिटेन और रूस ने यूक्रेन को कई तरह के आश्वासनों को पूरा करने का बीड़ा उठाया। 

इनमें से सबसे महत्वपूर्ण था ‘यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता या राजनीतिक स्वतंत्रता के खिलाफ बल के खतरे या उपयोग से बचने के लिए अपने दायित्व की पुष्टि करना।’ उन्होंने यूक्रेन के खिलाफ ‘आर्थिक जबरदस्ती से बचना’ और देश के खिलाफ ‘आक्रामकता के कार्य’ की स्थिति में ‘यूक्रेन को सहायता प्रदान करने के लिए तत्काल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की कार्रवाई की मांग’ करने का भी वचन दिया। 

इन स्पष्ट सुरक्षा आश्वासनों के आधार पर यूक्रेन ने सौदा पूरा किया और 1996 तक रूस को अपना पूरा परमाणु शस्त्रागार पहुंचा दिया। हालांकि बदले में रूस ने 2014 में और अब 2022 में यूक्रेन पर हमला करके बुडापेस्ट ज्ञापन को मृत पत्र में परिवर्तित कर दिया। यूक्रेन की सुरक्षा के गारंटरों ने इस आक्रमण को रोकने के लिए बहुत कम प्रयास किया। क्या यूक्रेन अपने परमाणु शस्त्रागार को बरकरार रख सकता था? वास्तव में यूक्रेन को 1992 में एक न्यूनतम विश्वसनीय निवारक रास्ता तैयार करने के गंभीर प्रयास करने से कोई रोक नहीं सकता था, इस तथ्य को देखते हुए कि एक दिन रूसी सोवियत आधिपत्य को फिर से बनाने के सपने को जीवित करने की कोशिश करेंगे। 

दूसरी पीढ़ी की परमाणु शक्तियों के साथ-साथ उन राष्ट्रों पर यूक्रेनी संघर्ष के निहितार्थ क्या होंगे, जो परमाणु हथियार हासिल करने से दूर हैं। संदेश भयावह और स्पष्ट दोनों है-वे वेस्टफेलियन संस्थाएं, जो अपने परमाणु शस्त्रागार को छोडऩे की बड़ी गलती करती हैं, ऐसा अपने जोखिम पर करतीे हैं। 2011 में लीबिया के पतन के बाद उत्तर कोरिया ने ठीक यही सबक लिया था। यहां तक कि पश्चिम के साथ दशकों की बातचीत के बावजूद ईरान अभी भी परमाणु विकल्प छोडऩे के मूड में नहीं है। 

अपनी बुडापेस्ट गारंटियों को लागू करने में अमरीका की अक्षमता उन संबद्ध राजधानियों में भी गूंजेगी जो अपनी सुरक्षा के लिए अमरीका के सैन्य आश्वासनों पर निर्भर हैं। अब इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि यदि जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया या यूरोप के कई अन्य राष्ट्र खुद अपने परमाणु निवारक का अनुसरण करते हैं। 

अतीत में दक्षिण अफ्रीका ने अपना परमाणु हथियार विकसित किया था और उसके पास परमाणु हथियारों का एक साफ-सुथरा भंडार था, लेकिन उसने स्वेच्छा से अपने शस्त्रागार से छुटकारा पा लिया क्योंकि उसने रंगभेद को समाप्त करने के लिए नियति के साथ प्रयास किया था। 1960 से 1980 के दशक तक ब्राजील और अर्जेंटीना ने अपने स्वयं के परमाणु हथियार बनाने के लिए प्रयास किया, लेकिन दोनों ने अंतत: अपने कार्यक्रमों को प्रतिबंधित कर दिया। लीबिया ने 2000 के दशक की शुरूआत में सामूहिक विनाश के हथियार प्राप्त करने के अपने प्रयासों को समाप्त कर दिया और अंतत: गद्दाफी शासन ने अपने जीवन के साथ इसकी कीमत चुकाई। 

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के परिणाम जो भी हों, इसने उन सभी देशों को एक स्पष्ट संदेश दिया है, जिन्होंने अपनी परमाणु आकांक्षाओं को पीछे छोड़ दिया था, कि यदि आप अपने परमाणु कार्यक्रमों को छोड़ देते हैं और अपनी सुरक्षा को कमजोर समझौतों और पारंपरिक प्रतिरोध के लिए बंधक बना लेते हैं और अपने भविष्य को दांव पर लगा देते हैं। जीवन की यह अपरिहार्य ठंडी वास्तविकता आने वाले महीनों में संपूर्ण परमाणु अप्रसार संरचना को फिर से व्यवस्थित कर देगी।-मनीष तिवारी
 


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