यदि वोडा-आइडिया हुए असफल तो किसको होगा ‘फायदा’

punjabkesari.in Saturday, Feb 22, 2020 - 04:17 AM (IST)

ऐसे में जबकि भारत में वैश्विक तौर पर एक प्रतिष्ठित कम्पनी वोडाफोन अपने दिन गिन रही है तब यह तर्कहीन सवाल उठता है कि कौन जीता और कौन हारा। यह सवाल उस समय उठा जब सरकार की टैलीकॉम सैक्टर को सबसे ज्यादा जरूरत थी तब यह इसके विपरीत थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी वोडाफोन-आइडिया के निश्चित तौर पर बंद होने के असर की तरफ ध्यान नहीं दिया। अब जबकि पूरा विश्व सबसे बड़ी टैलीकॉम कम्पनी की पराजय की तरफ देख रहा है। टैलीकॉम रैगुलेटरी अथारिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) ने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया। यदि सूत्रों पर भरोसा करें तो किसी समय सबसे अग्रणी रही टैलीकॉम कम्पनी वोडाफोन अब दिवालिया होने की कगार पर है। 

यू.के. के मुख्यालय वाली वोडाफोन तथा कुमार मंगलम बिड़ला की आइडिया ने कहा है कि बुरे दौर के बाद वह और पैसा नहीं लगाएंगे। 340 मिलियन उपभोक्ता वाली कम्पनी के लिए अपने आपको बंद करने का यह एक प्रमुख कारण होगा। इसके ग्राहक किसी सुरक्षित प्लेटफार्म पर अपने नम्बरों को पोॄटग करने के लिए पुनर्विचार करेंगे। इस कलह में उन्हें दो निजी कम्पनियों में से एक को चुनना होगा वह है भारतीय एयरटैल और रिलायंस जियो।  वोडा-आइडिया के उपभोक्ता पहले से ही पोर्टिंग करना शुरू कर चुके हैं। ताकि वे बिना मोबाइल कनैक्शन के न रह जाएं। 

अब एयरटैल (327 मिलियन उपभोक्ता) तथा जियो (369 मिलियन उपभोक्ता) वित्तीय मार झेल रही वोडाफोन-आइडिया से वंचित हुए उपभोक्ताओं को कैसे समायोजित करेंगी। सबको समायोजित करना इन कम्पनियों के लिए मुश्किल होगा। यही सवाल हमें विजेता तथा हारने वाले की बात कहता है। भारती एयरटैल टैलीकॉम कम्पनी के बारे में मार्कीट में बहुत भरोसा है। इसके पास इतने पर्याप्त फंड हैं कि यह सरकार को 35,500 करोड़ ए.जी.आर.-लिक्ड बकाया दे सकें। 

यह भी सच है कि यह वोडा-आइडिया सब्सक्राइबर बेस का अच्छा शेयर हासिल कर लेगी। यह तब तक ही सम्भव होगा जब तक कि इसकी नैटवर्क क्षमता इसको अनुमति देगी। कई बिंदुओं पर यह बात मायने रखती है कि सुनील भारती मित्तल की इस कम्पनी पर बोझ बढ़ जाएगा। यदि एयरटैल, वोडा-आइडिया तथा जियो तीनों कम्पनियों ने मिल कर 45000-50000 करोड़ रुपए वार्षिक निवेश किया होता तब भार दो टैलीकॉम कम्पनियों पर पड़ जाता और यह एक चुनौती है। टावर किराएदारी को लेकर भी एयरटैल तथा जियो पर भार पड़ेगा। 

भारती ग्रुप जिसका कि पहले वोडाफोन के साथ सहयोग था, ने यू.के. मुख्यालय सॢवस प्रोवाइडर के साथ विशेष बंधन बांटा था। अदालतों में ए.जी.आर. झगड़े सहित कई प्रपत्रों में पाए जाने वाले संयुक्त वर्णनों से यह बात स्पष्ट होती है। जब जियो ने टैलीकॉम खेल बिगाड़ा तब भारती तथा वोडा-आइडिया ने मिलकर कई मुद्दों पर एक-दूसरे का साथ दिया। पिछले एक वर्ष में कई मंत्रियों तथा नौकरशाहों से मित्तल ने वोडा-आइडिया तथा बिड़ला को साथ लेकर मुलाकातें कीं। बुधवार को भी उन्होंने वोडा-आइडिया को कारोबार में बने रहने के लिए मदद तथा राहत देने हेतु ऐसा कहा। 

रिलायंस जियो को भी ऐसे ही मुद्दे शेयर करने होंगे मगर इसके पास तकनीक है। वैसे इसने इस घटनाक्रम में देरी से प्रवेश किया। रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए टैलीकॉम इसके अनेकों कारोबारों में से एक है। भारती एयरटैल की तुलना में जियो विरासती नैटवर्क के बोझ तले नहीं है। गहरा आघात झेल रही टैलीकॉम इंडस्ट्री किसी सशक्त खिलाड़ी की गैर-मौजूदगी में आने वाले दिनों में स्पैक्ट्रम नीलामी पर बुरी तरह से प्रभाव डालेगी। इससे सरकार के बहुआयामी प्रोजैक्ट डिजीटल इंडिया पर भी असर पड़ेगा। 

ए.जी.आर. का झगड़ा 2003 में शुरू हुआ था। विजेता तथा हारने की बहस में एक सवाल और उठा है कि क्या वोडा-आइडिया को बचाने के लिए कुछ किया जा सकता है। दबाव झेल रही टैलीकॉम कम्पनियों को कितना फंड मिल सकता है, यह भी देखने वाली बात है। हजारों की तादाद में लोग अपनी नौकरियां खो देंगे। यंत्रों तथा नैटवर्क पर भी इसकी मार पड़ेगी।-निवेदिता मुखर्जी


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