बिना मूल सिद्धांत और आदर्श के अकाली दल के सौ बरस

punjabkesari.in Thursday, Dec 12, 2019 - 03:55 AM (IST)

शिरोमणि अकाली दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने पार्टी के वरिष्ठ मुखियों पर आधारित एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया है, जिसके संबंध में बताया गया है कि वह सन् 2021 में शिरोमणि अकाली दल के जीवनकाल के ‘सौ साल’ पूरे होने पर शिरोमणि अकाली दल (बादल) की ओर से आयोजित किए जाने वाले विशेष कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार कर, उसे कार्यरूप देगी। शिरोमणि अकाली दल (बादल) की ओर से, अकाली दल की स्थापना के ‘सौ बरस’ पूरे होने पर, जिस प्रकार कार्यक्रम आयोजित किए जाने को लेकर रूपरेखा तैयार की जा रही है, उसे लेकर कई तरह के सवाल उभर कर सामने आ रहे हैं। 

सबसे बड़ा सवाल तो यह पूछा जा रहा है कि क्या मूल शिरोमणि अकाली दल का यही स्वरूप था, जो आज शिरोमणि अकाली दल (बादल) का देखने को मिल रहा है? जिसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे केवल इसका स्वरूप नहीं, अपितु इसके मूल आदर्श और सिद्धांत भी पूरी तरह बदल चुके हैं। अर्थात शिरोमणि अकाली दल (बादल) का मूल अकाली दल के स्वरूप से तो क्या, मूल सिद्धांतों और आदर्शों तक के साथ भी कोई संबंध नहीं रह गया है। 

मूल संविधान : शिरोमणि अकाली दल की स्थापना से संबंधित चले आ रहे इतिहास के अनुसार जब बीसवीं सदी के तीसरे दशक में शिरोमणि अकाली दल की स्थापना की गई, तो उस समय उसका जो संविधान तैयार किया गया, उसके अनुसार एक तो यह निश्चित किया गया कि यह जत्थेबंदी ऐतिहासिक गुरुद्वारों में स्थापित धार्मिक मर्यादाओं, परम्पराओं और मान्यताओं के पालन में, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को सहयोग करेगी और दूसरा इसका गठन पूर्ण रूप में लोकतांत्रिक मान्यताओं के आधार पर ही किया जाएगा। इसे अस्तित्व में लाने के लिए दल के संविधान में, इसका मुख्य उद्देश्य, ‘गुरमति और रहत मर्यादा’ का प्रचार-प्रसार करने के साथ ही, ऐतिहासिक गुरुद्वारों के प्रबंध में सुधार और सेवा-संभाल के लिए प्रयत्न करना, निश्चित किया गया था। 

संगठन : इसके संगठन के गठन की प्रारंभता के लिए, सबसे पहले साधारण सदस्यों की भर्ती की जाती, फिर इस प्रकार बने सदस्यों की ओर से अपने-अपने इलाकों के जत्थों का गठन किया जाता। इलाकों के जत्थों के प्रतिनिधि शहरी जत्थों का गठन करते और शहरी जत्थों के प्रतिनिधि जिला जत्थे गठित करते। इन्हीं जिला जत्थों के प्रतिनिधि प्रांतीय जत्थों के गठन का आधार बनते। इसी प्रकार इलाकाई जत्थों से लेकर केन्द्रीय संगठन तक के अध्यक्ष सहित सभी पदाधिकारियों और कार्यकारिणी के सदस्यों के चुनाव की सारी प्रक्रिया, लोकतांत्रिक मान्यताओं का पालन करते हुए पूरी की जाती। किसी भी स्तर पर नामजदगी नहीं की जाती थी। इस प्रकार बने संगठन का स्वरूप समूचे पंथ को स्वीकार होता। उस समय दल के अध्यक्ष से लेकर इलाकाई जत्थे के जत्थेदार तक, किसी व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं, अपितु समूचे पंथ के प्रति जवाबदेह हुआ करते क्योंकि शिरोमणि अकाली दल का प्रत्येक मुखी पंथ के प्रति जवाबदेह होता, इस कारण वह पंथ के प्रति पूरी तरह समर्पित होता। 

भटकना आरंभ : जब शिरोमणि अकाली दल के मुखियों के दिल में स्वार्थ की भावना ने जोर पकड़ना और सत्ता लालसा ने उनमें अपनी जगह बनानी शुरू की, तो वे शिरोमणि अकाली दल को अपनी निजी जागीर समझने लगे। नतीजा यह हुआ कि धीरे-धीरे शिरोमणि अकाली दल में लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर अमल किया जाना बंद होना शुरू हो गया। इस तरह जब दल पर ही व्यक्ति-विशेष की सत्ता कायम होने लगी, तो फिर शिरोमणि अकाली दल में फूट भी पडऩे लगी। अकाली दलों के नाम के साथ संत फतह सिंह, मास्टर तारा सिंह,संत हरचंद सिंह लौंगोवाल, सुरजीत सिंह बरनाला, सिमरनजीत सिंह  मान और प्रकाश सिंह बादल आदि के नाम जुडऩे लगे। 

नतीजा यह हुआ कि आए दिन एक-एक कर नए-से-नए अकाली दल बनने शुरू हो गए। जिस तरह इन अकाली दलों के नाम के साथ निजी व्यक्तियों के नाम जुडऩे लगे, उससे ये अकाली दल समूचे पंथ के प्रतिनिधि न रह कर, ‘प्राइवेट लि. कम्पनियां’ बनने लगे। जो जिस शिरोमणि अकाली दल का अध्यक्ष अथवा दूसरों में प्राइवेट लि. कम्पनी का चेयरमैन-कम-मैनेजिंग डायरैक्टर होता, वह न केवल अपनी कार्यकारिणी (बोर्ड ऑफ डायरैक्टर्स) का गठन ही आप करता, अपितु ऊपर से नीचे तक की नियुक्तियां  सब आप ही अपनी इच्छा अनुसार करता। आज जितने भी अकाली दल अस्तित्व में हैं, वे सभी ही इसी तरह की प्राइवेट लि. कम्पनियां बने चले आ रहे हैं। 

न मूल स्वरूप रहा और न ही भावना: शिरोमणि अकाली दलों के मुखियों ने धार्मिक मर्यादाओं के पालन और उनकी परम्पराओं की रक्षा करने के लिए, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी आदि धार्मिक संस्थाओं को सहयोग देने के प्रति जिम्मेदारी निभाने के स्थान पर, इन संस्थाओं को राजनीति में स्थापित होने के लिए सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल करने के उद्देश्य से ही, इनकी सत्ता पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए हर प्रकार के जायज-नाजायज हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं। सदस्यों का सहयोग और समर्थन प्राप्त किए रखने के लिए, उनके सामने घुटने टेके जाने लगे। सदस्य इस स्थिति का पूरा-पूरा लाभ उठाने में जुट गए हैं। वे अपना सहयोग और समर्थन देने का पूरा-पूरा मोल वसूल करते हैं। यह मोल वे वफादारी बदलने के लिए भी लेते हैं और वफादार बने रहने के लिए भी वसूलते हैं जिसके चलते उन्हें संस्था में हर तरह की लूट करने की खुली छूट मिल जाती है। 

इस स्थिति के संबंध में जब बुजुर्ग टकसाली अकाली मुखियों से बात की तो उन्होंने तपाक से कहा कि हमने तो शिरोमणि अकाली दल के झंडे तले लगे मोर्चों में शामिल हो कुर्बानियां इस करके नहीं दी थीं कि ये पंथक-जत्थेबंदियां गैर-पंथक शक्तियों के हवाले कर दी जाएं और इस पर वे लोग काबिज हो जाएं जिनके दिल में पंथक सेवा करने, ऐतिहासिक गुरुद्वारों की पवित्रता कायम रखने और धार्मिक मर्यादाओं व परम्पराओं का पालन करने के प्रति मामूली-सी भी भावना न हो। ये केवल अपनी राजनीतिक लालसा को ही पूरा करने के लिए इस जत्थेबंदी के नाम का इस्तेमाल करने लग पड़ेंगे। 

...और अंत में : एक सज्जन ने निजी बातचीत में बहुत ही दुखी हो कहा वह यह कहने से जरा भी संकोच नहीं करते कि आज कोई भी ऐसा अकाली दल अस्तित्व में नहीं, जो पुरातन अकालियों की कुर्बानियों और परम्पराओं का वारिस होने का दावा कर सके। सभी के सभी अकाली दल, निजी दुकानें और प्राइवेट लिमिटेड कम्पनियां बन कर रह गए हैं। उसने आंखों से पानी बहाते हुए कहा कि इन अकाली दलों के नाम की कम्पनियों के दरवाजों पर प्राइवेट मालिकों के नाम के साथ ‘शिरोमणि अकाली दल’ लिखा देख, उन शहीदों की आत्माएं जरूर ही तड़पती होंगी, जिन्होंने शिरोमणि अकाली दल के पंथक संविधान का सम्मान करते हुए, इसके झंडे तले लगाए गए मोर्चों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और कुर्बानियां दी थीं और जिन्हें विश्वास था कि उनकी कुर्बानियों से पंथक शक्ति मजबूत होगी और सिख धर्म व सिखों का मान-सम्मान बढऩे में इसकी विशेष भूमिका होगी, जिन्हें यह विश्वास भी था कि शिरोमणि अकाली दल के संरक्षण में गुरुद्वारों की मर्यादा, परम्परा और पवित्रता कायम रहेगी।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’


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