मानवीय दृष्टिकोण व परीक्षा की घड़ी

punjabkesari.in Sunday, May 09, 2021 - 10:56 AM (IST)

साल मार्च महीने में कोविड-19 की भारत में दस्तक के साथ ही केंद्र सरकार और अन्य सरकारों ने सभी आवश्यक कदम उठाए। आम जन ने भी सरकार का सहयोग किया और सभी दिशा-निर्देशों का दृढ़ता से लम्बे समय तक पालन किया। विश्व के दूसरे देशों के अनुभव से सीखते हुए भारत ने पूरे देश में स्वास्थ्य संसाधनों की कमी के बावजूद इस महामारी से मुकाबला किया और साल के अंत तक हमने कोरोना महामारी से इस लड़ाई में पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया। 

यह दु:ख की बात है कि हमने समाज और व्यक्तिगत स्तर पर ढील दिखाई और कोरोना की दूसरी लहर ने हमारी व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर दिया। इसके कारण आज बहुत से राज्यों और शहरों मेें स्थिति नियंत्रण से बाहर होती दिख रही है। 

पिछले महीनों में सामाजिक स्तर पर हमने गंभीर लापरवाही दिखाई है और कई आत्मघाती काम किए हैं, जिनके कारण कितने ही अमूल्य जीवन असमय काल का ग्रास बन गए। संकट की इस घड़ी में परस्पर सहयोग, धैर्य और समाज के प्रति कत्र्तव्य की भावना से हम महामारी पर पुन: विजय पा सकते हैं। जरूरत है तो एकजुटता, सतर्कता, जागरूकता, समझदारी व सहयोग की। 

यह वह समय है जब केवल हम हर आपात स्थिति के लिए केवल केंद्र सरकार की तरफ नहीं देख सकते। प्रदेश सरकारों का परस्पर सहयोगात्मक रवैया व केंद्र के साथ समन्वय इस समय सबसे बड़ी आवश्यकता है। हमें जीवन और आजीविका दोनों को बचाना है और इसके लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। 

हमें स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करते हुए अपने कोरोना योद्धाओं का मनोबल बढ़ाना है। आज हमें जहां एक ओर पर्याप्त ऑक्सीजन की व्यवस्था करने, बिस्तरों की संख्या बढ़ाने, स्वास्थ्य नैटवर्क को और सुदृढ़ करने, दवाइयों व अधोसंरचना विकास को मजबूत करना है वहीं कोरोना वैक्सीन के टीकाकरण को भी बढ़ावा देना है। 

हमारे देश में सीमित संसाधनों के बाद भी विज्ञान और तकनीक का आधार बहुत मजबूत है। देश की फार्मा इंडस्ट्री को फार्मेसी ऑफ द वल्र्ड कहा जाता है। भारत में बनाई गई कई दवाएं पूरी दुनिया में जाती हैं और लोगों की जान बचाती हैं। कोरोना के खिलाफ बने टीके को हमने उन देशों तक पहुंचाया जहां उस समय इस मदद की अधिक जरूरत थी। यह भारत का मानवीय पहलू है। कोरोना महामारी के इस प्रचंड दौर में स्थिति का फायदा उठाने का समय नहीं है। बल्कि, यह समय मानवता की सोच को स्थापित करने का है। भावनाओं को तब ठेस पहुंचती है और व्यवस्था तब टूटती नजर आती है जब लोग चंद पैसों के लिए इस आपातकाल में कालाबाजारी करते हैं, लूटने का प्रयास करते हैं।

वह चाहे चिकित्सक हो या फिर व्यापारी, देश हित और समाज हित की परख ऐसे में होती है। ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। इन्हें रोकने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को कड़ाई से कदम उठाने चाहिएं। कोरोना महामारी देश के दस से बारह राज्यों में तेजी से बढ़ी  है। यह अन्य राज्यों में इसी गति से न फैले इसको हमें संभालना पड़ेगा। कोविड से पहले भारत की मैडिकल ऑक्सीजन पैदा करने की दैनिक क्षमता 6,500 मीट्रिक टन थी जो बढ़कर अभी 7,200 मीट्रिक टन प्रतिदिन हो गई है।

कोविड से पहले भारत को हर दिन 700 मीट्रिक टन मैडिकल ऑक्सीजन की जरूरत होती थी जबकि आज दैनिक जरूरत बढ़कर करीब 5,000 मीट्रिक टन हो गई है। आवश्यकतानुसार व्यवस्था तेजी से बन रही है, ऐसे में धैर्य से काम लिया जाए तभी स्थितियां नियंत्रित हो सकती हैं। सरकारी स्तर पर भी कोशिशें सराहनीय हैं। ट्रेन, हवाई मार्ग हर तरह से ऑक्सीजन उपलब्ध करवाने के लिए युद्ध स्तर पर कोशिशें की जा रही हैं। 

जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता जा रहा है, ऑक्सीजन की मांग भी बढ़ती जा रही है। भारत में लगभग 500 फैक्ट्रियां हवा से ऑक्सीजन निकालने और इसे शुद्ध करने का काम करती हैं। इसके बाद इसे तरल ऑक्सीजन में बदल कर अस्पतालों को भेजा जाता है। ज्यादातर गैस की सप्लाई टैंकरों से की जाती है। इसी तरह रेमडेसिविर टीका सामान्य तौर पर उपलब्ध था। इसका मूल्य निर्धारित किया गया था। लेकिन, कोविड की दूसरी लहर के साथ ही इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए मुनाफाखोरों और कालाबाजारी करने वालों ने इसे 30 हजार से अधिक के दाम पर बेचना शुरू कर दिया, जो मानवता पर एक कलंक है।  

इस दौर में भी अकेले भारत में, 10 लाख से अधिक युवा स्वयं सेवकों ने कोविड-19 के खतरे से निपटने के लिए सीधी कार्रवाई की है, और महामारी से निपटने में मदद कर रहे हैं, जो हमारी ताकत है। यह गर्व की बात है कि नेहरू युवा केंद्र संगठन (एन.वाई.के.एस.), राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस.),भारत स्काऊट और गाइड के युवा स्वयंसेवक तथा नैशनल कैडेट कॉर्प (एन.सी.सी.) पूरे भारत में कोविड के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे हैं।- बंडारू दत्तात्रेय


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