‘सांडों के साथ क्रूरता आखिर कब तक’

punjabkesari.in Friday, Mar 05, 2021 - 01:56 AM (IST)

भारत में दुनिया की सबसे बड़ी मवेशी संख्या है। वे देहात में भोजन खाते हुए आराम से टहलते हुए नहीं जा रहे। उन्हें उन किसानों द्वारा पीटा जा रहा है जिनके खेतों में वे खाने आते हैं, शहरी फल विक्रेताआें द्वारा उन पर तेजाब फैंका जा रहा है, उन्हें जहर देकर उन लोगों द्वारा ले जाया जा रहा है जो चमड़े के लिए उनकी खाल उतारते हैं, उन्हें दूध के लिए गंदे छोटे स्टॉल में बांध कर रखा जाता है, उन्हें भीड़भाड़ वाले ट्रकों में ठूंस कर अवैध कत्ल के लिए ले जाया जा रहा है, उन्हें गौशाला नामक जेलों में बंद किया जा रहा है, जहां वे भूखे मरने तक अपने मल में खड़े रहते हैं। वे प्लास्टिक खाते हैं, वे गंदे गटर से पानी पीते हैं, वे गुजरती हुई कारों से टकराते हैं।

2014 के बाद से जब भाजपा सरकार मांस के निर्यात को रोकने की प्रतिज्ञा के साथ आई, तब से भारत गाय के मांस (गोमांस) का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है, यहां तक कि ब्राजील को भी पीछे छोड़ दिया है। हम दोनों अब दुनिया के गाय के मांस उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत देते हैं। और हम दुनिया भर में सबसे बड़े दूध उत्पादक हैं, और ईयू.यू., अमरीका और चीन को पछाड़ रहे हैं। ज्यादातर गाय और भैंस प्राकृतिक रूप से प्रजनन नहीं करतीं। सांडों से वीर्य निकाला और देश भर में भेजा जाता है, जिसका उपयोग व्यावहारिक रूप से प्रारंभ में दूध और बाद में मांस का कारोबार करने वाले सभी लोगों द्वारा किया जाता है। सभी डेयरी गायों के 80 प्रतिशत का कृत्रिम रूप से गर्भाधान कराया जाता है। 

अधिकांश लोग शुक्राणु निष्कर्षण में शामिल अत्यधिक क्रूरताआें से अनजान हैं। अध्ययन में पाया गया कि सांडों को 18 महीनों की उम्र में लिया जाता है और छोटे समूहों में उनकी नाक में रस्सी डाल कर बांधे हुए थोड़े से स्थान वाले बाड़े में रखा जाता है या वर्षों तक छोटे-छोटे स्टालों में अलग-थलग रखा जाता है। वे निराश, और उत्तेजित हो जाते हैं और उनकी नाक में रस्सियों का इस्तेमाल उन्हें नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, जिससे घाव हो जाते हैं और अक्सर मैगट संक्रमण होता है। प्रत्येक सांड सप्ताह में चार दिन, दिन में दो बार वीर्य निष्कर्षण केंद्र में जाता है। 

जो सांड प्राकृतिक रूप से एेसा नहीं कर सकते, वेे इलैक्ट्रो-स्खलन की दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरते हैंं। यह प्रक्रिया मलाशय में एक छड़ के माध्यम से 12-24 वोल्ट की बिजली का झटका देती है। इसे ‘मानव-सहायता प्राप्त वीर्य’ कहा जाता है और इसे 1960 के दशक के अंत में शुरू किया गया था।

कल्पना करें कि एक आदमी को एक बिजली की छड़ उसके गुदा में घुसेड़कर कई वर्षों तक साल में दो बार स्खलित करने के लिए कहा जाए। एक एकल स्खलन 500 से 600 शुक्राणुआें की ‘डोज’ प्रदान करता है, जिसमें ‘प्रत्येक में 20 मिलियन शुक्राण’ होते हैं। यह प्रत्येक सांड के साथ 5-10 वर्षों के लिए होता है और फिर उसे वध के लिए भेजा जाता है। तरल नाइट्रोजन में वीर्य को डीप फ्रीज किया और फिर समूचे भारत में भेजा जाता है। भारतीय पशुपालन विभागों में 60 से अधिक फ्रोजन वीर्य फार्म और लगभग 77,000 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र हैं। 

गुदा में राड या छड़ में रिंग इलैक्ट्रोड होते हैं, जो छड़ के बैरल के चारों आेर होते हैं। ये इलैक्ट्रोड इलैक्ट्रोस्खलन के लिए आवश्यक के अलावा अन्य नसों को उत्तेजित करते हैं। विशेष रूप से, पिछले भाग में मांसपेशियों की नसें प्रभावित होती है जिसके परिणामस्वरूप पैरों, जांघों और पीठ की मांसपेशियों में कड़े संकुचन होते हैं। ये संकुचन कुछ प्रकार की छड़ के साथ काफी गंभीर होते हैं, जिससे कुछ दिनों तक प्रभावित मांसपेशियों में रक्त स्राव होता है तथा सूजन बनती है और ऐंठन सी रहती है। 

जानवरों के प्लाज्मा कोॢटसोल स्तर में शारीरिक आपदा परिवर्तनों पर किए गए अध्ययनों में जानवरों  द्वारा अनुभव किए जा रहे संकट की डिग्री के एक संकेतक के रूप में जांच की गई थी। इलैक्ट्रो-स्खलन के 15 मिनट बाद प्लाज्मा कोॢटसोल का स्तर सांडों में तेजी से बढ़ा और 2-4 घंटों तक चरम पर रहा जो अत्यधिक तनाव को दर्शाता था। (स्रोत : इलैक्ट्रो-स्खलन : एक कल्याणकारी मुद्दा? सॢवलांस खंड 2$2)। नीदरलैंड और डेनमार्क ने इसी क्रूरता के कारण इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है। 

इष्टतम शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सांड की जांच की जानी चाहिए। इष्टतम वीर्य गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उन्हें अच्छा खाना खिलाया जाना चाहिए, व्यायाम कराया जाना चाहिए और खुश रखा जाना चाहिए। किसी भी एक केंद्र में ऐसा नहीं होता है। अधिकांश सांड बीमार हैं, कमजोर हैं और बहुत कम ही बीमारी के लिए उनकी जांच की जाती है। 

दुनिया के सबसे बड़े कृत्रिम गोवंशीय प्रजनन केंद्र होने के बावजूद कृत्रिम गर्भाधान के उपयोग से भारत में अन्य देशों की तुलना में सफलता दर बहुत कम है। सांडों को खराब तरीके से रखा जाता है और भेजा जाने वाला वीर्य अक्सर रोगग्रस्त होता है जिससे गायों में गर्भपात हो जाता है। इसका मानव स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है और तपेदिक के प्रसार को सीधे दूध मवेशियों में ब्रूसेलोसिस से जोड़ा जाता है जो वीर्य के माध्यम से आता है।-मेनका गांधी
 


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