नागरिकों पर कोई अपने व्यक्तिगत विचार कैसे थोप सकता है

punjabkesari.in Wednesday, Nov 03, 2021 - 03:25 AM (IST)

एक व्यक्ति का भोजन दूसरे व्यक्ति के लिए विष हो सकता है और इस बात का प्रमाण बढ़ती असहिष्णुता के बारे में चल रही बहस है। लव-जिहाद से लेकर पाकिस्तान के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन और भारत की बहुलवादी और समावेशी संस्कृति आदि के बारे में विज्ञापन में यह देखने को मिल रहा है। इस पर राष्ट्रव्यापी बहस छिड़ी हुई है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी का विचार है कि राष्ट्रीय हित के समक्ष व्यक्तिगत विचारधारा को रखना गलत है। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव पर तालिबानी मानसिकता कहते हुए निशाना साधा क्योंकि उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में सरदार पटेल और जिन्ना की तुलना की थी। मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भारत के खुलेपन, संतुलन और सहिष्णुता को तब ताक पर रख दिया जब उन्होंने एक उपभोक्ता वस्तु कंपनी को अपना करवाचौथ विज्ञापन वापस लेने के लिए मजबूर किया, जिसमें प्रगतिशील विवाह को दर्शाया गया था और इस विज्ञापन में एक समङ्क्षलगी दंपत्ति था। इसी तरह एक प्रसिद्ध डिजाइनर के अश्लील मंगल सूत्र डिजाइन की भी आलोचना की गई। 

भोपाल में एक वैब-सीरीज की शूटिंग के दौरान एक फिल्म निर्माता पर हमला किया गया। एक वस्त्र ब्रांड पर आरोप लगाया गया कि वह अपने त्यौहारी कलैक्शन को जश्न-ए-रिवाज का नाम देकर दीवाली को बदनाम कर रहा है। एक आभूषण ब्रांड को अपने विज्ञापन को वापस लेने के लिए बाध्य किया गया जिसमें उनकी हिन्दू बहू के लिए मुस्लिम ससुराल में गोद भराई की रस्म दर्शाई जा रही थी। आशानुरूप भाजपा के कुछ सांसदों और बजरंग दल तथा युवा मोर्चा के कार्यकत्र्ताओं ने इन्हें हिन्दू संस्कृति का अपमान बताया तथा हिन्दू त्यौहारों का अहिन्दूकरण कहा। इसके अलावा अनावश्यक रूप से धर्मनिरपेक्षता और मुस्लिम विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए सोशल मीडिया पर ट्रोङ्क्षलग की गई और यह दावा किया गया कि यह उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करता है। 

अत: प्रश्न उठता है कि क्या भारत राजनीतिक असहिष्णुता के युग की ओर बढ़ रहा है और हिन्दुत्व मूल्यों को लोगों पर थोपा जा रहा है? क्या राजनेता सार्वजनिक जीवन में विचारों के टकराव से डरते हैं? इसलिए पिछले कुछ वर्षों में यह भावना देखने को मिली है कि उदारवादी चर्चाओं के लिए स्थान सिमटता जा रहा है और इस संबंध में हिंसा की घटनाएं, लिंचिंग और प्रतिबंध की बातें की जा रही हैं। वर्ष 2015 में 12 फिल्म निर्माताओं और 41 उपन्यासकारों, नाटककारों तथा कवियों ने राष्ट्रीय और साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिए थे और उन्होंने इसका कारण बढ़ती असहिष्णुता और एक सुप्रसिद्ध तर्कवादी की हत्या पर मौन रहना बताया था। 

भारत के बहुलवादी समाज में कभी भी पहले इस तरह का अहसास नहीं हुआ कि हमारा देश धार्मिक धु्रवीकरण के खतरनाक मार्ग पर आगे बढ़ रहा है, जैसा कि अब देखने को मिल रहा है। हिन्दू वर्चस्ववाद और पश्चिमी सांस्कृतिक प्रभाव को तथाकथित रूप से समाप्त करने की भावना बढ़ रही है जिसमें नेताओं द्वारा खड़ी की गई असहिष्णु शक्तियां तर्कवादियों और उदारवादियों को उनकी जगह दिखाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 

पिछले वर्ष के सर्वेक्षण के अनुसार 54 प्रतिशत युवाओं का मानना है कि युवा लोगों में असहिष्णुता बढ़ी है किंतु 32 प्रतिशत युवा इससे असहमत थे। सामाजिक विद्वेष इंडैक्स के बारे में प्यू की रिपोर्ट में 198 देशों में भारत को 10 में से 8.7 अंक मिले हैं और वह सीरिया, नाइजीरिया और इराक की श्रेणी में है। उच्चतम न्यायालय ने भी समाज में बढ़ती धर्मांधता पर चिंता व्यक्त की है जिसके परिणामस्वरूप विरोधी मत के बारे में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार गंभीर खतरे में पड़ गया है।  न्यायालय ने एक व्यंग्यात्मक फिल्म के प्रदर्शन की अनुमति न देने पर ममता सरकार पर 20 लाख रुपए का जुर्माना लगाया। 

राजनेता आम आदमी की भावनाओं का दोहन करते हैं और वह कार्य करने का प्रयास करते हैं जिससे उनके वोट बैंक में उनकी लोकप्रियता बढ़े तथा सरकार नजरंदाज कर इसे बढ़ावा देती है। हालांकि यह एक तरह से सांस्कृतिक आतंकवाद और असहिष्णुता है। विरोधाभास देखिए, हिन्दू धर्म विश्व में सबसे सहिष्णु धर्म है फिर भी कुछ नेता और कट्टरवादी तत्व अपनी कट्टरवादी सामाजिक परंपराओं, सांप्रदायिक घृणा, सहिष्णुता को स्वीकार न करना या उनकी तथा उनके धर्म के विपरीत राय और विश्वास का सम्मान करने के बारे में पुरातनपंथी विचारों को बढ़ावा देते हैं और इस संबंध में किसी भी तरह की आलोचना को हिन्दू विरोधी बताते हैं। 

कोई मंत्री नागरिकों या राज्य पर अपने व्यक्तिगत विचार कैसे थोप सकता है? कोई व्यक्ति आधिकारिक नामक संकरी पटरी पर जीवन नहीं जी सकता, जहां पर प्रत्येक मजाक, व्यंग्य, उपहास या अवज्ञा को एक बड़ा पाप समझा जाता है। सच यह है कि हमने राजनीतिक और आॢथक स्वतत्रंता प्राप्त की है किंतु हम अभी भी समाज के ऐसे तत्वों के बंधक बने हुए हैं। हमें स्वयं-भू गाॢजयन नहीं चाहिए जो हमें यह बताए कि हम क्या देख सकते हैं, क्या पढ़ सकते हैं, क्या पहन सकते हैं, क्या खा और पी सकते हैं। ‘नमो’ को अपने पार्टी नेताओं और विशेषकर भाजपा शासित राज्यों में मंत्रियों को कहना होगा कि वे उस प्रत्येक बात के बारे में संवेदनशील न हों जिन्हें वे सामाजिक मानदंडों के विरुद्ध मानते हैं और ऐसी प्रत्येक बात को हिन्दू विरोधी और राष्ट्र विरोधी न मानें। 

भारत अपने सांस्कृतिक मूल्यों और सांस्कृतिक सहिष्णुता की पुरातन परंपरा के लिए जाना जाता है। भारत ऐसे नेताओं के बिना भी काम चला सकता है जो राजनीति में विकृति पैदा करते हैं और इस विकृति के माध्यम से लोकतंत्र और खुशहाली को नष्ट करते हैं। हमारे नेताओं को समझना होगा कि राष्ट्र की शक्ति इस बात में निहित है कि उसके नागरिक किस तरह से अपने विचारों को स्वतंत्रतापूर्वक व्यक्त करते हैं। सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं है।-पूनम आई. कौशिश


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