ईमानदारी और इंसाफ पंजाब से पंख लगाकर उड़ गए

punjabkesari.in Thursday, Dec 01, 2022 - 06:37 AM (IST)

पंजाब भारत का एक सरहदी राज्य है। देश के विभाजन से पहले भी इसकी सीमा अफगानिस्तान से लगती थी और खैबर दर्रे के माध्यम से प्रत्येक हमलावरों का मुकाबला भी सबसे पहले पंजाबियों ने ही किया है। फिर चाहे वह महान सिकंदर हो या फिर अहमदशाह अब्दाली। इस धरती पर वेदों की रचना भी हुई, बौद्ध धर्म का प्रचार भी हुआ तथा श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी बाणी भी रची। पंजाब के इतिहास में पोरस के बाद श्री गुरु नानक देव जी अकेले पंजाब को ही नहीं बल्कि पूरे हिंद को ख्वाब से जगाकर लाए। गुरुओं के आदेश तथा सिर हथेली पर रखने वाले योद्धाओं का 230 वर्षों तक चरित्र निर्माण भी हुआ है। 

महाराजा रणजीत सिंह ने सिख राज की स्थापना कर आदर्श राज का संकल्प पेश किया जहां संत सिपाही, बहादुर, उसूलपरस्त, दयालु तथा चरित्र वाला था। राज खालसा सब भारतीयों का सांझा था जिसने 50 वर्ष अमन-शांति तथा खुशहाली का समय पंजाब को दिया। यहां पर यूरोप तथा अमरीका के लोग नौकरी कर अपने आप को खुशकिस्मत समझते थे। 

अंग्रेजों ने धोखे से इस राज्य पर कब्जा कर संस्कृति को खत्म करने के लिए अपनी कोई कसर नहीं छोड़ी। साम्प्रदायिकता के आधार पर ही नहीं पंजाबियों को बांटने के लिए कलम, पैसा तथा तलवार का भी पूरा इस्तेमाल किया गया। इसके प्रभाव के चलते ही पंजाबी मां बोली से अलग हो गया। खालसा निर्भय, निरवैर तथा बहादुरी का रास्ता छोड़ ईष्र्यालु तथा झगड़े में व्यस्त हो गया। गुरु परम्परा से अलग हो सिख राजे जो अंग्रेजों के राजकुमार बन गए थे, ने अपनी सभ्यता का नाश करना शुरू कर दिया। गुरमुखी तथा पंजाबी के विकास के लिए वे हमेशा ही खामोश रहे। देश के विभाजन के समय खालसा राज की राजधानी तथा श्री गुरु नानक देव जी का जन्मस्थान श्री करतारपुर साहिब सहित बहुत से सिख इतिहास से संबंधित क्षेत्र पाकिस्तान में ही रह गए। 

स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस के पहले किए गए वायदे पूरे न हुए। पंजाबी बोली वाले क्षेत्र आपस में ही बांटे गए। खून का रिश्ता तथा मातृभाषा की सांझ को भूल जगद्गुरु गुरु नानक देव जी के पैरोकार एक-दूसरे के विरुद्ध डट गए। पिछले 75 वर्षों में पंजाब के इतिहास में आंदोलन खड़े करने, एक-दूसरे का विरोध करने तथा सरकार को अपनी शक्ति से पंजाब तथा पंजाबियत को कुचलने का मौका देने के लिए एक लम्बी दास्तान है। 

बदकिस्मती से जो बातचीत से पंजाब के मुद्दे कांग्रेस के पास समाधान तलाशने के लिए गए थे वे अग्रणी शिरोमणि अकाली दल को छोड़ कुर्सी मिलते ही सब पक्के कांग्रेसी बन गए तथा फिर पंजाबियों पर जुल्म करने में अग्रणी बन गए। जो पंथक परम्पराओं का नाश इन्होंने किया वह शायद ही कोई और कर सके। सरकार की शक्ति का अहिंसा या समानता वाली सरकारी ताकत ही मुकाबला कर सकती है। हिंसा सरकार को अपनी शक्ति का इस्तेेमाल करने के लिए आमंत्रित करती है तथा अमन पसंद नागरिकों को आंदोलन से दूर करने का साधन बनती है। 

गुरुद्वारा सुधार लहर 1920 से 1925 तक अहिंसा की शक्ति की मिसाल बनी जिसके समक्ष अंग्रेज सरकार को भी घुटने टेकने पड़े। 1960 के दशक से देश से अलग होने की बात करने वाले ज्यादातर सरकार से मिलकर आंदोलन को बदनाम करने वाले ही थे। पड़ोसी देश तथा विदेशी ताकतें भारत को कमजोर करने के लिए प्रयत्नशील रहीं। पड़ोसी मुल्क ने प्रत्येक युद्ध को हारा है तथा अपने टुकड़े भी करवा चुका है मगर अभी तक शरारत से बाज नहीं आता। 

पंजाबी भाषा का विकास, पंजाब के लिए राजधानी की मांग, भाखड़ा डैम का नियंत्रण, पंजाबी भाषायी क्षेत्र तथा नहरी जल का फैसला पिछले 56 वर्षों से अधर में लटका हुआ है। राजीव-लौंगोवाल समझौता वैसे ही पड़ा है। पर लगता है कि पंजाबियों ने समझौता तोडऩे वालों को माफ कर दिया है। इसी कारण वह तीन बार सरकार बनाने में सफल रहे। यह भी हो सकता है कि आंदोलन के लाभ प्राप्त करने वाले उनसे भी बदत्तर निकले हों। आर्थिक रूप में पंजाब कंगाल होने के किनारे पर है। नए तो क्या लगने थे पुराने उद्योग भी बंद हो रहे हैं। 

किसान आत्महत्याएं कर रहा है तथा पंजाब का नवयुवक देश छोड़ कर भाग रहा है। अब पंजाब केवल गैंगस्टरों तथा नशे के सौदागरों के सुपुर्द हो गया लगता है। आॢथक रूप से एक नंबर पर रहा राज्य नीचे से दूसरे नंबर पर पहुंच गया है। ईमानदारी और इंसाफ पंजाब से पंख लगाकर उड़ गए। गैंगस्टरों ने पंजाब को असुरक्षित बना दिया है।-इकबाल सिंह लालपुरा 
 


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