आलोचनाओं को भी हंस कर स्वीकारना हिंदुत्व

punjabkesari.in Thursday, Nov 18, 2021 - 04:37 AM (IST)

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने हिंदुत्व की तुलना बोको हराम व आई.एस.आई.एस. जैसे खूंखार आतंकवादी संगठनों से की है। इसके बाद जो विवाद खड़े होने थे वे हुए हैं। हिंदुत्व क्या है? हिंदू दर्शन क्या है? क्या सलमान खुर्शीद को नहीं मालूम? उन्होंने यह तुलना क्यों की? लेकिन सवाल केवल सलमान खुर्शीद से ही नहीं उन लोगों से भी है जो हिंदुत्व के मुद्दे पर आक्रामक रवैया अपनाते हैं, आलोचना जिन्हें बर्दाश्त नहीं होती। 

हिंदुत्व क्या एक लीक पर चलने वाला वह दर्शन या धर्म है, जिसमें ङ्क्षहसा है, आतंकवाद है? आखिर क्या है हिन्दुत्व? महर्षि वेदव्यास से जब धर्म के बारे में यही सवाल किया गया था कि आपने पुराणों की रचना की है, गीता की रचना की, श्रीमद्भागवत की रचना की, इससे निश्चित मार्ग का तो पता ही नहीं चलता कि धर्म क्या है और लोग किस रास्ते पर चलें यह तो बताया ही नहीं कि आखिर किस मार्ग का अनुसरण करें, तब वेदव्यास ने धर्म का सार बता दिया था जो पद्मपुराण में उद्धृत है। 

उनके अनुसार, अपनी आत्मा को जो दुखदायी लगे, वैसा आचरण दूसरों के साथ मत करिए। यही धर्म का सार है। यहां पर किसी पूजा पद्धति की बात नहीं की गई है। यह आचरण की बात है। हिन्दुत्व की आतंकवादी संगठनों से तुलना करने वालों को नहीं मालूम कि हिंदू कोई ऐसा समूह नहीं है जिसे एक निश्चित रास्ते पर हांका जा सके। ङ्क्षहदुत्व विभिन्न पूजा पद्धतियों का नाम है, यहां पर आस्तिकता का भी स्थान है और नास्तिकता का भी। नास्तिक व्यक्ति उतना ही कट्टर हिंदू हो सकता है जितना आस्तिक। चार्वाक ने ईश्वर के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा करते हुए जो कहा उसका अर्थ है- ‘जब तक जियो सुख से जियो कर्ज लेकर घी पियो शरीर भस्म हो जाने के बाद वापस नहीं आता’। उन चार्वाक  की गर्दन नहीं काटी गई बल्कि ऋषि का दर्जा दिया गया। 

हिंदू समाज को निश्चित नियमों में नहीं बांधा गया। तमाम पूजा पद्धतियां और विविध परम्पराएं इस धर्म की आत्मा रही हैं। इसमें विरोध का भी स्थान है। यह विडंबना ही है कि यहां पर बलि प्रथा का भी चलन है और उसी बलि प्रथा की खिल्ली भी उड़ाई गई है। आदि गुरु शंकराचार्य अद्वैतवाद यानी र्ईश्वर एक है के प्रणेता हैं लेकिन वह भगवान शंकर से लेकर श्री कृष्ण की वंदना करते हैं। वह निर्गुण और सगुण को मानने वाले दोनों के ही पूजनीय हैं। 

गोस्वामी तुलसीदास सगुण रूप के सबसे बड़े उपासक हैं लेकिन वह लिखते हैं कि ‘पद बिन चलै सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥’ यानी ईश्वर बिना पैर के ही चलता है, बिना कान के ही सुनता है, बिना हाथ के ही नाना प्रकार के काम करता है, बिना मुंह (जिह्वा) के ही सारे (छहों) रसों का आनंद लेता है और बिना वाणी के बहुत योग्य वक्ता है। निर्गुण की इससे प्रबल व्याख्या और क्या की जा सकती है। यहां तो सारे पंथ ही स्वीकार हैं। 

हिंदुत्व उत्सव का नाम है। वह सनातनी है लेकिन सिंधु के किनारे बसा था इसलिए हिंदू हो गया और उसी से हिंदुत्व पैदा हो गया। क्या कोई बता सकता है कि ङ्क्षहदुत्व का निश्चित मार्ग क्या है? शायद कोई नहीं बता पाएगा। वह धन स्वरूपा लक्ष्मी की पूजा भी करता है और मोह माया त्यागने की बात भी करता है। क्योंकि वह जानता है कि जीवन व्यापक है इसको संकीर्ण धारणाओं के नहीं चलाया जा सकता, इसीलिए परस्पर विरोधी होने के बावजूद टकराव की बात नहीं करता। 

एक ही छत के नीचे रह कर भी कोई भगवान राम की पूजा करता है कोई श्री कृष्ण का भक्त है। कोई सुबह से ही हर-हर महादेव के नारे लगाने लगता है कोई देवी का आह्वान करता है। उनमें कोई ऐसा भी है जो पूजा-पाठ में लगे सभी लोगों को ढोंगी बता देता है लेकिन एक-दूसरे के कटाक्ष पर सभी मुस्कुराते हैं। इनमें गला काट युद्ध नहीं होता। एक-दूसरे की आलोचनाओं में भी मुस्कुरा देते हैं। 

इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले कुछ वर्षों में कट्टरवाद पनपा है लेकिन हिंदुत्व की किसी आतंकवादी संगठन से तुलना करना और जोड़ देना अनुचित होगा। यह कट्टरवाद किसी के गला काटने की बात नहीं करता। जब तक यह विविधता पर भरोसा करता रहेगा तब तक सनातन या हिंदू धर्म तमाम झंझावातों को झेलता भी रहेगा और आलोचनाओं से विचलित भी नहीं होगा। 

हिंदुत्व के नाम पर टकराव की बात करने वाले क्या भक्ति काल को भूल जाते हैं? तब सबसे बड़ा संकट तो हिंदुओं पर ही आया था लेकिन संतों ने किसी से टकराव की बात नहीं की। यहां पर ङ्क्षहसा का कोई स्थान नहीं था। ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई’ का नारा और ज्यादा जोर से लगाया गया। ‘सिया राम मैं सब जग जानी’ यानी पूरे संसार को अपने इष्ट देव के रूप में देखने वाले टकराव की बात कैसे कर सकते हैं। 

जो टकराव की बात कर रहे हैं उन्हें न धर्म की जानकारी है न हिंदुत्व के बारे में कुछ पता है। भारतीय समाज उत्सवी रहा है। यहां निराशा का कोई स्थान नहीं है। यह मृत्यु के बाद भी जीवन की खोज करता है।  इस उत्सव को बनाए रखिए। जो ङ्क्षहदुत्व में बोको हराम और आई.एस.आई.एस. जैसी नृशंसता देख रहे हैं, उन्हें भी हिंदुत्व के बारे में नहीं मालूम और जो हिंदुत्व को आक्रामकता के रास्ते में ले जाना चाहते हैं, वे भी नासमझ हैं। आलोचनाओं को भी हिंदू हंस कर स्वीकार करते रहे हैं और यही कारण है कि तमाम झंझावात भी इन्हें मिटा नहीं सके।-बृजेश शुक्ल


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