बढ़ती आबादी सिर्फ चुनौती नहीं, ताकत भी है

punjabkesari.in Thursday, Jul 14, 2022 - 04:58 AM (IST)

विश्व आबादी दिवस पर संयुक्त राष्ट्र ने जो रिपोर्ट पेश की है, वह भारत के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट कहती है कि अगले साल तक भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। फिलहाल सबसे बड़ी आबादी वाले देश चीन में 142.6 करोड़ लोग हैं, जबकि भारत 141.7 करोड़ की जनसंख्या के साथ दूसरे पायदान पर खड़ा है। अगर संयुक्त राष्ट्र का पूर्वानुमान सही निकला तो अगले साल भारत 142.9 करोड़ की आबादी के साथ पहले पायदान पर खड़ा होगा। 

यह पहला पायदान भारत जैसे देश के लिए बड़ी चुनौती के रूप में दिखता है, क्योंकि हम बड़ी आबादी को देश की सबसे बड़ी समस्या के तौर पर चिन्हित करते आए हैं कि जितनी ज्यादा आबादी, उतनी ज्यादा संसाधनों में हिस्सेदारी। आखिर खाद्य सुरक्षा,शिक्षा की गारंटी, सेहत संबंधी जरूरतों का इंतजाम और रोजगार के अवसर के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नागरिक सुविधाओं का विकास, ये तमाम जिम्मेदारियां सरकार के कंधों पर ही रहेंगी। तदनुसार आवश्यक बजट के लिए राजस्व बढ़ाने की चुनौती से भी सरकार को ही दो-चार होना होगा।

चलिए, अब जरा बड़ी आबादी को एक अलग नजरिए से देखने -समझने की कोशिश करते हैं। बड़ी आबादी का मतलब बड़ा मानव संसाधन समूह, यानी बड़ी श्रमशक्ति। इस गणित को और बेहतर समझने के लिए सबसे बड़ी आबादी वाले देश चीन की जनसंख्या और उसके प्रबंधन के साथ उसकी तरक्की के समीकरण पर गौर करते हैं। एकल संतान (सिंगल चाइल्ड) की सख्त नीति के लंबे दौर के बावजूद चीन आज सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। लेकिन इस नीति के चलते पिछले करीब 2 दशकों में चीन की जनसंख्या वृद्धि दर में उल्लेखनीय गिरावट आई। 

पिछले साल मई में चीन ने अपनी ताजा जनगणना रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि 1982 में हुई जनगणना में चीन की जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 प्रतिशत दर्ज हुई थी जो सर्वाधिक थी। पिछले एक दशक ‘यानी वर्ष 2011 से 2021 के बीच’ उसकी आबादी औसतन 0.53 प्रतिशत की दर से बढ़ी, जो पिछले कई दशकों में सबसे कम थी। इसे जनसांख्यिकी विशेषज्ञों ने आसन्न संकट के तौर पर रेखांकित किया। 

माना गया कि आने वाले दशक में अगर जनसंख्या वृद्धि दर और कम हुई तो वहां कामगारों का संकट गहरा सकता है। इसके उलट चिकित्सा क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास की वजह से जहां मृत्यु दर में कमी आई है, लोगों की औसत आयु या यूं कहें कि जीवनकाल बढ़ा है। इस घट-बढ़ ने अनुत्पादक बुजुर्गों के कुनबे का खासा विस्तार किया है। 

ऐसे में यदि जनसंख्या वृद्धि की दर और कम होती है तो जाहिर तौर पर देश की श्रमशक्ति में और गिरावट आएगी। इस संकट की आहट को गम्भीरता से लेते हुए वहां सरकार ने अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहन देने वाली योजनाएं शुरू कर दी हैं। अधिक बच्चे पैदा करने वालों को अतिरिक्त अवकाश, बेबी बोनस, एकमुश्त धनराशि, टैक्स में छूट और कई अन्य विशेष योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है। निजी क्षेत्र की कई कम्पनियों ने भी अपने कर्मचारियों के लिए ऐसी कई योजनाएं शुरू की हैं, जो उन्हें अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित करती हैं। 

यह समस्या उन पश्चिमी देशों में 2 दशक से भी ज्यादा पुरानी है, जहां बेहतर रहन-सहन के बीच चिकित्सा सुविधाओं में उल्लेखनीय विस्तार के साथ-साथ जनसंख्या वृद्धि को लेकर ज्यादा संवेदनशीलता दिखाई-अपनाई गई। इस समस्या को नाम दिया गया ‘एजिंग पॉपुलेशन’। उन देशों में काम कर सकने वाले युवाओं की आबादी लगातार घटती चली गई, जिसने अभूतपूर्व श्रम संकट पैदा कर दिया। पश्चिम में स्पेन, रोमानिया, डेनमार्क और कनाडा से लेकर आस्ट्रेलिया जैसे बड़े देश श्रम संकट की जद में हैं तो पूरब में जापान जैसा छोटा किन्तु औद्योगिक विकास की दृष्टि से क्रांतिकारी राष्ट्र भी इसकी चपेट में है। 

कयास है कि 2030 तक दुनिया का हर छठा आदमी 65 साल की उम्र पार कर चुका होगा और 2050 आते-आते शायद हर तीसरा। अध्ययन में यह संकेत भी मिला है कि 2050 तक चीन की श्रमशक्ति में 20 तो जापान में 40 फीसदी तक कमी आएगी। अभी 3 साल पहले जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने स्वीकार किया था कि जन्म-दर में भारी गिरावट के कारण वहां श्रम संकट लगातार गहरा रहा है और इससे उबरने के लिए जापान की सरकार अन्य जरूरी उपाय करने के साथ-साथ दूसरे देशों से 4 लाख विदेशी कामगार लाना चाहती है। 

इन परिस्थितियों के बीच हमारे लिए यह जानना कितना सुखद है कि अपने देश में ऐसे उम्रदराज बुजुर्गों की तादाद हमारी कुल आबादी का मात्र 6 प्रतिशत है। जाहिर है, आबादी का बड़ा हिस्सा युवा है और बड़ी श्रमशक्ति का प्रतीक। यह भी तय मानिए कि जनसंख्या बढऩे के साथ यह प्रतिशत और नीचे आएगा और इसके उलट हमारी युवाशक्ति में इजाफा होगा। फिर चिंता क्यों? हम देश में बढ़ती बेरोजगारी से भयभीत हैं, जबकि बढ़ती बेरोजगारी की वजह आबादी नहीं बल्कि रोजगार का सापेक्ष सृजन न होना है। 

अगर हम अपनी युवाशक्ति को कुशल श्रमशक्ति में बदल दें तो रोजगार के लिए आधी दुनिया के दरवाजे खुले मिल सकते हैं, खासकर सेवा क्षेत्र में। आस्ट्रेलिया स्थित ग्लोबल बिजनैस एडवाइजर ग्रुप ‘सीएक्ससी’ ने कम से कम 5 ऐसे उद्योग बताए हैं, जहां आने वाले वर्षों में वैश्विक स्तर पर कामगारों की सबसे ज्यादा जरूरत पडऩे वाली है। ये हैं विमान परिचालन, चिकित्सा, खानपान, निर्माण और यातायात। जरा सोचिए, ये वही सेवा क्षेत्र हैं, जिनमें हम भारतीयों की दक्षता रही है। 

अब अगर इन नई संभावनाओं को ध्यान में रखकर सरकार नई रोजगार नीति बनाए तो बढ़ती आबादी की समस्या को अवसर में बदलने में शायद ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। कौशल विकास योजना को संगठित तौर पर थोड़ा व्यापक आधार दिया जाए और अंतर्राष्ट्रीय श्रम प्रबंधन में अपनी सशक्त भूमिका सुनिश्चित की जाए तो यह बेरोजगारी के वध का अभूतपूर्व सुयोग भी हो सकता है।-अनिल भास्कर
 


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