उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा सरकार को देश को घेरे संवेदनशील मुद्दों पर सही सोच अपनाने की नसीहत

punjabkesari.in Tuesday, Dec 31, 2019 - 12:37 AM (IST)

नेशनल डेस्कः  केंद्रीय भाजपा सरकार के नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.आर.सी.) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.) को लेकर देश में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। 12 दिसम्बर को नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) अस्तित्व में आने के बाद असम और मेघालय से शुरू हुए देशव्यापी हिंसक प्रदर्शनों से अरबों रुपए की सम्पत्ति नष्ट होने के अलावा 2 दर्जन से अधिक लोग मारे गए। हालांकि  व्यापक जन आक्रोश को देखते हुए पहले गृह मंत्री अमित शाह ने इस बारे क्रिसमस के बाद पुर्निविचार करने का संकेत दिया था परंतु बाद में कह दिया कि नागरिकता कानून तो लागू होकर ही रहेगा। इसके विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 दिसम्बर को कहा कि देश में एन.आर.सी. लागू करने के बारे में कैबिनेट में या संसद में 2014 से अब तक कोई चर्चा नहीं हुई है। 

गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उक्त बयान एक-दूसरे के विपरीत हैं परंतु 24 दिसम्बर को अमित शाह ने प्रधानमंत्री के कथन की पुष्टिï करते हुए कह दिया कि एन.आर.सी. को देशभर में लागू करने को लेकर कहीं कोई चर्चा नहीं हुई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम ने भी भाजपा पर एन.पी.आर. को एन.आर.सी. से जोडऩे की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए दावा किया है कि मोदी सरकार द्वारा स्वीकृत एन.पी.आर. कांग्रेस द्वारा 2010 में किए गए डाटा संग्रह से भिन्न है। इसी बीच उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने 29 दिसम्बर को नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.आर.सी.) को लेकर हो रहे प्रदर्शनों के संदर्भ में कहा कि :

‘‘सी.ए.ए. हो या एन.पी.आर. इन पर देश के लोगों को संवैधानिक संस्थाओं, सभाओं और मीडिया में विचारपूर्ण सार्थक तथा सकारात्मक चर्चा में भाग लेना चाहिए और जल्दबाजी में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए कि यह कब आया, क्यों आया और इसका क्या असर हो रहा है और क्या इसमें सुधार की आवश्यकता है और अगर है तो क्या सुझाव हैं?’’

उन्होंने केंद्र सरकार को नसीहत देते हुए कहा,‘‘इस पर चर्चा करने से हमारा सिस्टम मजबूत होगा और लोगों की समझ बढ़ेगी। नीतियों की आलोचना की जा सकती है परंतु व्यक्तिगत हमले नहीं करने चाहिएं। सुशासन प्रदान करने के लिए पारर्दिता जवाबदेही और जन केंद्रित नीतियां आवश्यक हैं।’’ ‘‘असंतोष व्यक्त कर रहे लोगों की आशंकाएं दूर करनी चाहिएं क्योंकि लोकतंत्र में सहमति और असहमति बुनियादी सिद्धांत हैं। चाहे हम किसी चीज को पसंद करते हों या नहीं दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए और उसी हिसाब से कार्रवाई होनी चाहिए।’’‘‘प्रदर्शन के दौरान हिंसा की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। जैसे कि महात्मा गांधी ने विकट चुनौतियों के समय भी हिंसा की सभी किस्मों से परहेज किया था।’’ उन्होंने संसद तथा विधानसभाओं की गरिमा बनाए रखने तथा उनमें चर्चाओं का स्तर बढ़ाने पर भी जोर दिया। 

इससे पूर्व 28 दिसम्बर को भी उपराष्ट्रपति ने कहा कि ‘‘वर्तमान हालात में देश के ज्वलंत मुद्दों को विचार-विमर्श के माध्यम से सुलझाने की आवश्यकता है। जाति-धर्म को हावी होने देने की बजाय हमें संवैधानिक तरीके से समस्याएं सुलझाने की आदत डालनी चाहिए।’’ उपराष्ट्रपति द्वारा केंद्र सरकार को ‘नसीहत’ के बाद अब अटकलें शुरू हो गई हैं कि क्या नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पर जनमत संग्रह के लिए विभिन्न मंचों पर नए सिरे से मंथन किया जाएगा और क्या सरकार विभिन्न समूहों के बीच विचार-विमर्श से बनी राय को मानेगी? जो भी हो, उक्त घटनाक्रम को देखते हुए लगता है कि सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. को लेकर कई राज्यों के नेताओं के विरोध तथा कई ओर से हो रहे हमलों के बीच अब केंद्र सरकार इस बारे अपनी रणनीति बदलेगी। सभी पक्षों की संतुष्टि के अनुसार जितनी जल्दी ऐसा किया जाएगा उतना ही अच्छा होगा क्योंकि इससे देश में व्याप्त आक्रोश एवं अशांति को दूर करके लोकतांत्रिक परम्पराओं को मजबूत करने और सद्भाव बढ़ाने में सहायता मिलेगी।—विजय कुमार 


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