सरकार ने ‘अफरा-तफरी’ में ले लिए कुछ फैसले

punjabkesari.in Sunday, Feb 23, 2020 - 04:55 AM (IST)

भारत विश्व में तीव्रगति से बढ़ रही अर्थव्यवस्था का राष्ट्र रहा है। विश्व के अर्थशास्त्रियों का यह मानना था कि  वह दिन दूर नहीं जब भारत चीन के मुकाबले में बड़ी सुदृढ़ता के साथ खड़ा हो जाएगा परंतु पिछले 6 वर्षों से भारत की अर्थव्यवस्था धीमी गति के साथ चल रही है। निवेशक निवेश करने से कतरा रहे हैं और बेकारी बड़ा भयानक रूप धारण करके खड़ी हो चुकी है। 21वीं शताब्दी की शुरूआत में भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था ने राष्ट्र को एक नई शक्ल देने में नया कीॢतमान स्थापित किया था। 2006 से 2016 तक अर्थव्यवस्था में हैरतअंगेज वृद्धि से 27 करोड़ भारतीयों को गरीबी रेखा से बाहर आने का सौभाग्य हासिल हुआ परंतु अभी भी इतने ही लोग गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी बसर कर रहे हैं। 

सरकार द्वारा अफरा-तफरी तथा बिना गम्भीरता से लिए गए फैसले
इसमें कोई शक नहीं कि बिजली के मामले में 2007 में केवल 70 प्रतिशत लोगों को बिजली उपलब्ध थी और 2017 तक 93 प्रतिशत लोग  बिजली का इस्तेमाल कर रहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा चलाए गए  स्वच्छ भारत योजना को भी सफलता हासिल करने का श्रेय हासिल हुआ क्योंकि अर्थव्यवस्था अति समृद्धशाली हो चुकी थी। परंतु सरकार की कुछ अफरा-तफरी और बिना गम्भीरता से विचार किए फैसले लेने से विकास दर बड़ी तीव्रगति से नीचे की तरफ गई जिसने बेकारी को जन्म दिया। भारत में हर वर्ष एक करोड़ दो लाख नौजवानों को काम की आवश्यकता है जोकि वर्तमान स्थिति के मुताबिक मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन लगता है। यह एक हकीकत है कि अमरीका और चीन  में ट्रेड तनाव की वजह से राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई हैं जिससे निवेशक और उपभोक्ता गहरी सोच में पड़ गए हैं। इस समय बेरोजगारी की दर 7.1 प्रतिशत हो चुकी है। 

देश के कपड़ा उद्योग की नोटबंदी और जी.एस.टी. लागू होने के बाद यह उद्योग भारी संकट के दौर से गुजर रहा है क्योंकि सूरत, भिवंडी, अहमदाबाद, महाराष्ट्र के कुछ हिस्से तथा दक्षिण भारत में कपड़ा तैयार करने वाले मिल मालिकों को अपने कई यूनिट बंद करने पड़े हैं, जिसके परिणामस्वरूप 4 करोड़ के करीब लोग बेरोजगार हो गए हैं। यद्यपि टैक्सटाइल में मंदी के कई कारण बताए जाते हैं, जिनमें वैश्विक मंदी, देश में उत्पादन लागत का बढऩा, महंगी लेबर और बंगलादेश में सस्ती लागत से तैयार होने वाले माल का मुकाबला भारतीय टैक्सटाइल उद्योग करने में असमर्थ नजर आ रहा है। इन सभी कारणों का यदि गम्भीरता से अध्ययन किया जाए तो स्पष्टत: नजर आता है कि न तो देश में लेबर की कमी है और न ही देश का कपड़ा उद्योग बंगाल के उद्योग के सामने असमर्थ है।

इसका मुख्य कारण यह है कि सरकार को अपनी टैक्सटाइल संबंधी नीतियों में भारी परिवर्तन लाना होगा ताकि यह उद्योग अपने पांव पर पुन: खड़ा हो सके और करोड़ों बेकार मजदूरों को काम मिल सके। यद्यपि सरकार ने यह विश्वास दिलाया है  कि 2024-25 तक वह 300 अरब डॉलर का कपड़ा निर्यात करेगी और टैक्सटाइल में नई तकनीक को ही बढ़ावा देगी ताकि इसकी लागत में कमी आए। दूसरा क्षेत्र रियल एस्टेट का है जिसमें करोड़ों मजदूरों को काम मुहैया होता है, यह असंगठित क्षेत्र है जो पिछले कई वर्षों से बिना किसी रुकावट के फलता-फूलता रहा है। लोगों को काम मुहैया करने और मकानों की समस्याओं का समाधान करने में इस क्षेत्र ने सबसे अधिक प्रशंसनीय कार्य किया हैै, परंतु 2016 में नोटबंदी के कारण इसकी स्थिति सबसे अधिक खराब हो गई। जी.एस.टी. और रेरा जैसे कानूनों ने इसकी कठिनाइयों में अत्यधिक इजाफा किया जिसके कारण निर्माण का कार्य बुरी तरह प्रभावित हुआ। मजदूर भी बेकार हो गए और खरीदारों के लिए भी ङ्क्षचता का विषय बन गया। यद्यपि सरकार ने यह वादा किया है कि इस क्षेत्र को पुन: स्थिर करने के लिए 25 हजार करोड़ रुपए की सहायता करेगी, परंतु अभी तक यह केवल एक भरोसा है। 

कारों और ट्रकों के खरीदारों में आई भारी कमी 
यह क्षेत्र तब तक पूरा कारआमद साबित नहीं होगा, जब तक सरकार इसे अमलीजामा नहीं पहनाएगी। आटो उद्योग पिछले 20 वर्षों से लगातार तीव्र गति के साथ बढ़ता जा रहा था और विश्व के कई अन्य देशों के मुकाबले भारत में इसकी स्थिति बड़ी मजबूत थी। एक तरफ लाखों मजदूरों को काम मिलता था, दूसरी तरफ सरकार की आमदन का भी बहुत बड़ा जरिया बना हुआ था। परंतु 2019 में यह क्षेत्र सबसे खराब स्थिति में रहा। एक तरफ कारों और ट्रकों के खरीदारों में भारी कमी आई, दूसरी तरफ सरकार की आमदन भी तीव्र गति से कम हो गई। इस क्षेत्र में संकट आने के कारण अढ़ाई लाख से अधिक लोग बेकार हो चुके हैं परंतु अभी तक सरकार ने आटोमोबाइल क्षेत्र को पुन: मजबूत करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

हकीकत यह है कि सरकार की नीतियों के कारण उपभोक्ताओं की खरीद शक्ति अति कमजोर होती जा रही है जिसके कारण कारखाने बंद हो रहे हैं और बेकारी फैल रही है। रिजर्व बैंक के एक सर्वे के अनुसार भारतीय उपभोक्ताओं का विश्वास निचले स्तर पर पहुंच गया है और वे अपने संरक्षित धन को खर्च करने से कतरा रहे हैं। घरेलू बचत का जी.डी.पी. का हिस्सा 23 प्रतिशत से 17 प्रतिशत हो गया है और दूसरी तरफ ब्याज बढ़ता जा रहा है। सरकार के आलोचकों का यह कहना है कि दिल्ली सरकार ने अर्थव्यवस्था को पुन: अपने पांव पर खड़ा करने के लिए न तो ठोस और न ही सकारात्मक कदम उठाए हैं और न ही इस समस्या के समाधान के लिए इसमें कोई गम्भीरता नजर आ रही हैै। 

हकीकत यह है कि सरकार की नीतियों के कारण उपभोक्ताओं की खरीद शक्ति अति कमजोर होती जा रही है जिसके कारण कारखाने बंद हो रहे हैं और बेकारी फैल रही है। रिजर्व बैंक के एक सर्वे के अनुसार भारतीय उपभोक्ताओं का विश्वास निचले स्तर पर पहुंच गया है और वे अपने संरक्षित धन को खर्च करने से कतरा रहे हैं। घरेलू बचत का जी.डी.पी. का हिस्सा 23 प्रतिशत से 17 प्रतिशत हो गया है और दूसरी तरफ ब्याज बढ़ता जा रहा है। सरकार के आलोचकों का यह कहना है कि दिल्ली सरकार ने अर्थव्यवस्था को पुन: अपने पांव पर खड़ा करने के लिए न तो ठोस और न ही सकारात्मक कदम उठाए हैं और न ही इस समस्या के समाधान के लिए इसमें कोई गम्भीरता नजर आ रही हैै।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा
            


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