‘सरकार समझे कि किसान देश के दुश्मन नहीं’

punjabkesari.in Friday, Feb 26, 2021 - 03:05 AM (IST)

केंद्र सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों के बीच 11 दौर की वार्ता कोई भी सफलता हासिल करने में विफल रही है। प्रधानमंत्री के कहे अनुसार कि ‘सरकार केवल एक कॉल दूर है’ के बावजूद कोई भी घटनाक्रम नहीं हुआ है लेकिन किसानों तक पहुंच बनाने में सरकार कोई कदम नहीं उठा रही। किसान नेताओं का कहना है कि गतिरोध जारी है क्योंकि उन्हें कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पर भरोसा नहीं है और यह भी नहीं पता कि प्रधानमंत्री तक कैसे पहुंचा जाए? लगभग 3 महीने हो गए हैं, 3 विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में लाखों किसान और उनके समर्थक दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं। अस्थायी आश्रयों के नीचे उन्होंने कड़ाके की ठंड को सहन किया है और एक रिपोर्ट के अनुसार 250 से अधिक किसानों की 30 नवम्बर को शुरू हुए प्रदर्शनों के बाद से मौत हो चुकी है। 

किसानों के कानूनों को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) की गारंटी देने पर अड़े रहने और सरकार द्वारा मांग को ठुकराने  मगर यह आश्वासन देने कि एम.एस.पी. जारी रहेगी, यह आंदोलन विस्फोटक स्थिति की ओर अग्रसर है, जिसके दीर्घकालिक परिणाम संभावित हैं। 

जाहिर है कि ठंड और सरकारी मशीनरी की ताकत को सहन करने वालों, जिनकी लम्बे समय तक पानी और बिजली की आपूर्ति के साथ वाई-फाई को भी काटे रखा गया, के अपने पूरे जीवन में झेली कठिनाइयों को भूलने की संभावना नहीं है। दोनों पक्ष अपने द्वारा ली गई चरम स्थिति को छोड़ें और मामले को और लम्बा न खींचें। हम सभी ने गणतंत्र दिवस पर लाल किले में दुर्भाग्यपूर्ण और ङ्क्षनदनीय कार्रवाई को देखा। इस कार्रवाई के पीछे आखिर कौन है? इसके लिए हो रहे दावों और उनके खिलाफ चल रही बातें बहस का विषय हैं लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि जिस ङ्क्षबदूू को रेखांकित करने की आवश्यकता है वह यह कि लम्बे समय तक आंदोलन का निहित स्वाॢथयों द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है। कुछ लोग अपना धैर्य भी खो सकते हैं। 

मोदी सरकार शायद इस बात से डरती है कि उसके द्वारा आगे बढऩे से ‘कठोर सरकार’ की छवि खराब हो सकती है। आखिरकार सरकार ने अयोध्या विवाद, जम्मू-कश्मीर, सी.ए.ए. तथा नोटबंदी जैसी कार्रवाइयों तथा जी.एस.टी. जैसे लम्बित मामलों पर जल्दबाजी में कठोर फैसले लिए हैं। हालांकि सरकार को यह समझना चाहिए कि किसान देश के दुश्मन नहीं हैं और उनसे परिवार के सदस्यों की तरह व्यवहार किया जाना चाहिए। इसके अलावा इन किसानों का महत्व और उनका योगदान कृषि और रक्षा दोनों क्षेत्रों में उनकी आबादी की तुलना में बहुत अधिक है। सरकार को इस क्षेत्र के किसानों विशेषकर सिखों की संस्कृति, उनके इतिहास और लोकाचार की अवहेलना नहीं करनी चाहिए। उन्हें अत्यधिक उदार तथा बलिदान देने के लिए जाना जाता है। 

किसानों को भी आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है और यह देखना चाहिए कि क्या लाखों यूं ही स्थितियां झेलते रहें या गतिरोध को समाप्त करने के लिए कुछ मध्य मार्ग अपनाया जाए। किसानों की आम सहमति तक पहुंचने में एक समस्या स्पष्ट नेतृत्व का अभाव है। दो दर्जन से अधिक संगठनों और लगभग 40 नेताओं के वार्ता में शामिल होने के साथ, किसी भी समझौते पर पहुंचना निश्चित रूप से मुश्किल लग रहा था। इस प्रकार जब नेताओं का एक वर्ग कानूनों के निलंबन के लिए केंद्र की पेशकश पर सहमत था तो दूसरों ने उनका पैर नीचे रख दिया। 

इससे पहले कि स्थिति और बिगड़े और कुछ शरारती तत्व इसमें कूदने का प्रयास करें, दोनों पक्षों के लिए महत्वपूर्ण है कि एक रास्ता तलाशा  जाए। यहां तक कि सरकार के मुख्य संकट मोचक अमित शाह भी इस मुद्दे को हल करने में विफल रहे हैं। सरकार के पास एक ब्रह्मास्त्र खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सीधी पहल है। मोदी को अपनी कूटनीति दिखानी होगी। किसान नेताओं को भी एक सौहार्दपूर्ण तरीके से सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए साथ चलना चाहिए और इसे प्रतिष्ठा का मामला नहीं बनाना चाहिए। लम्बे समय से जारी गतिरोध देश को दीर्घकालिक नुक्सान पहुंचा रहा है। बिना किसी और देरी के मुद्दे को हल करना हम सभी के हित में है।-विपिन पब्बी    
 


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