दिल्ली के वायसराय वापस जाओ-वापस जाओ

punjabkesari.in Sunday, Mar 28, 2021 - 04:37 AM (IST)

लोकतंत्र लोगों की, लोगों द्वारा और लोगों के लिए सरकार है। ये शब्द अब्राहम लिंकन के हैं। लोकतंत्र की यह परिभाषा सबसे सरल और व्यापक है। सरकार के केन्द्र में लोग होते हैं। प्रतिनिधि लोकतंत्र केवल एक सुविधा की बात होती है जब संख्या बड़ी हो। भारत एक संघीय देश है। दिल्ली भारत की राष्ट्रीय राजधानी है। यह स्वीकार किया जाता है कि दिल्ली की सरकार को अन्य राज्यों की सरकारों से अलग होना चाहिए। फिर भी उस सरकार को लोकतांत्रिक होना चाहिए और लोगों को सरकार के केन्द्र में रखना चाहिए।

संविधान की अंतिम दोभाषिया और मध्यस्थ के रूप में कार्यरत सुप्रीम कोर्ट में स्टेट (एन.सी.टी. दिल्ली) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया : (2018) 8 एस.सी.सी. 501 : में कहा गया है कि, ‘‘संवैधानिक शक्ति की प्रक्रिया का मकसद नागरिकों पर लोकतांत्रिक, सामाजिक और राजनीतिक शक्तियों को सम्मानित करना है, जो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के भीतर रहते हैं उन्हें एक विशेष दर्जा दिया गया है।’’ न्यायालय ने जगन मोहन रैड्डी के अनुमोदन के साथ उद्धृत किया है, जिन्होंने केशवानंद भारती मामले में कहा है कि सरकार का लोकतांत्रिक रूप संविधान का मूल हिस्सा है।

संवैधानिक शक्ति
दिल्ली सरकार की शक्तियां तथा कार्य अंतत: संसद की घटक शक्ति की प्रक्रिया है। 1991 में भारत के संविधान में संशोधन किया गया था और आर्टिकल 239-ए.ए., ‘‘दिल्ली के संबंध में विशेष प्रावधान प्रदान करने के लिए डाला गया था।’’ खेद तथा कारणों के विवरण ने यह स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली को एक केन्द्र शासित प्रदेश बना रहना चाहिए और इसे एक विधानसभा और मंत्रियों की एक परिषद प्रदान करना चाहिए जो आम आदमी की ङ्क्षचता के मामलों को निपटाने के लिए उपयुक्त शक्तियों के साथ ऐसी विधानसभा को जिम्मेदार ठहराए।

आर्टिकल 239-ए.ए. ने उन शब्दों तथा वाक्यांशों का इस्तेमाल किया जिन्होंने हर लोकतांत्रिक देश में एक अर्थ हासिल कर लिया था। इनमें प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष चुनाव थे। विधानसभा के पास कानून बनाने की शक्ति होगी जो राज्य सूची या समवर्ती सूची में शामिल किसी भी मामले के संबंध में हो सकती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां पर मंत्रिपरिषद होगा, इसका प्रमुख मुख्यमंत्री होगा जो अपने कार्यों की कवायद में उपराज्यपाल की सहायता और उसे सलाह देगा। उस आर्टिकल में निहित प्रावधानों को प्रभाव देने के लिए आर्टिकल 239-ए.ए. के तहत ‘गवर्नमैंट ऑफ द नैशनल टैरीटरी एक्ट 1991’ बनाया। पिछले 20 वर्षों में ऐसे उदाहरण थे जब उपराज्यपाल ने मंत्रिपरिषद को लुभाने की कोशिश की। मगर ऐसे प्रयासों को कड़े कदमों के तहत गिरा दिया गया।

2014 के बाद रवैया बदल गया। दिल्ली में भाजपा सरकार एक गैर-भाजपा सरकार को बर्दाश्त नहीं कर सकी। विशेषकर प्रधानमंत्री दिल्ली में राजनीतिक स्थान को बांटने के लिए एक मुख्यमंत्री को बर्दाश्त नहीं कर सकते। इसलिए लम्बे समय से दफन विवाद को फिर से जीवित करने के लिए एक दृढ़ प्रयास किया गया था जो वास्तव में दिल्ली सरकार में वास्तविक शक्ति है। 4 जुलाई 2018 को स्टेट (एन.सी.टी. दिल्ली) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में प्रयास को सुप्रीम कोर्ट ने विफल कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की कि आर्टिकल 239-ए.ए. (4) में नियोजित सहायता और सलाह का अर्थ यह माना जाता है कि  दिल्ली के एन.सी.टी. के उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह तथा सहायता से बंधे हुए हैं। मोदी काफी अहंकारी व्यक्ति हैं (जैसा कि मुझे संदेह है सभी प्रधानमंत्री हैं) और गलत लक्ष्यों का पीछा नहीं छोड़ते। उन्होंने अपना समय बर्बाद किया और हल्ला बोलने का वह समय चुना जब देश का ध्यान 4 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश के महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों पर टिका हुआ है।

मोदी आर्टिकल 239-ए.ए. को छू नहीं सके क्योंकि राजग के पास संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत नहीं है। इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम 1991 में संशोधन करने का कम विकल्प चुना। सुप्रीम कोर्ट ने खेद और कारणों का विवरण देते हुए कहा कि संशोधन बिल को व्याख्या के लिए प्रभाव देने हेतु आगे लाया गया था। सच्चाई यह है कि बिल सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था को रद्द करने का बेढंगा प्रयास था।

साफ तौर पर असंवैधानिक विधेयक कानून को यह कहते हुए संशोधित करता है कि अभिव्यक्ति सरकार का अर्थ उपराज्यपाल होगा। इस तरह इस परिभाषा के द्वारा दुम कुत्ता है तथा कुत्ता दुम है। विधेयक यह भी प्रदान करता है कि सरकार की शक्तियों का प्रयोग करने से पहले किसी भी कार्रवाई करने हेतु उपराज्यपाल की राय ऐसे सभी मामलों में प्राप्त की जाएगी जिन्हें निर्दिष्ट किया जा सकता है। मोदी सरकार ने दिल्ली में अपना वायसराय बिठा दिया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तथा उनके मंत्रियों को वायसराय को लाने और ले जाने के लिए पैदल यात्री बना दिया है।

केजरीवाल को उसी समय जान लेना चाहिए था कि ऐसा समय निकट आ रहा है जब जम्मू कश्मीर में एक संवैधानिक तख्ता पलट के अंतर्गत घाटी को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया। फिर भी केजरीवाल ने राष्ट्रवाद के नाम पर लोकतंत्र पर हमले का समर्थन किया था। आज उनके लिए प्रतिशोध व अपमान का दिन है। कुछ भी हो मेरी सहानुभूति उनके साथ है यदि वे मोदी सरकार के साथ लडऩा चाहते हैं। भारत में लोकतंत्र दिन ब दिन घट रहा है।

विश्व ने उस तथ्य का संज्ञान लिया है कि भारत आंशिक तौर पर स्वतंत्र है। भाजपा का लक्ष्य ‘वन पार्टी रूल’ का है। वह अपना विस्तार करना चाहती है और संसद को एक रबड़ स्टाम्प बनाना चाहती है। इसके साथ भाजपा आज्ञाकारी कार्पोरेट, एक आधिकारिक प्रायोजित मीडिया और एक आज्ञाकारी न्यायपालिका देखना चाहती है। वह ऐसे झुके हुए लोगों को पसंद करती है जो भौतिक तरक्की के साथ खुश रहना चाहते हैं। ऐसा भारत चीन से अलग नहीं होगा। ‘साइमन गो बैक’ की तरह दिल्ली में ‘वायसराय गो बैक’ होना चाहिए।-पी. चिदम्बरम


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