बिजली संकट का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग

punjabkesari.in Tuesday, Nov 02, 2021 - 04:02 AM (IST)

बीते दिनों बरसात में कोयले की खदानों में पानी भरने से अपने देश में कोयले का उत्पादन कम हुआ था। बिजली का उत्पादन भी कम हुआ और कई शहरों में पॉवर कट लागू किए गए। फिलहाल बरसात कम होने से यह संकट टल गया है लेकिन यह केवल तात्कालिक राहत है। हमें इस समस्या के मूल कारणों का निवारण करना होगा अन्यथा इस प्रकार की समस्याएं बार-बार आती रहेंगी। 

वर्तमान बिजली संकट के तीन कारणों का पहले निवारण करना जरूरी है। पहला कारण यह बताया जा रहा है कि कोविड संकट के समाप्तप्राय हो जाने के कारण देश में बिजली की मांग बढ़ गई है जिस कारण संकट पैदा हुआ। यह स्वीकार्य नहीं है क्योंकि अप्रैल से सितंबर 2019 की तुलना में अप्रैल से सितम्बर 2021 में कोयले का 11 प्रतिशत अधिक उत्पादन हुआ था। इसी अवधि में देश का जी.डी.पी. लगभग उसी स्तर पर रहा। यानी कोयले का उत्पादन बढ़ा और आर्थिक गतिविधियां पूर्व के स्तर पर रहीं। इसलिए बिजली का संकट घटना चाहिए था न कि बढऩा चाहिए था, जैसा कि हुआ है। 

दूसरा कारण यह है कि कोयले के खनन में बीते कई वर्षों में निवेश कम हुआ है। बिजली उत्पादकों का रुझान सोलर एवं पवन ऊर्जा की तरफ अधिक हो गया है। यह बात सही हो सकती है लेकिन इस कारण बिजली का संकट पैदा नहीं होना चाहिए था। कोयले के खनन में जितने निवेश की कमी हुई है, यदि उतना ही सोलर और पवन ऊर्जा में किया गया तो कोयले से बनी ऊर्जा में जितनी कमी आई होगी, उतनी ही वृद्धि सोलर और पवन ऊर्जा में होनी चाहिए थी। इसलिए कोयले में निवेश की कमी को संकट का कारण नहीं बताया जा सकता। 

हाल में आए बिजली के संकट का मूल कारण ग्लोबल वार्मिंग दिखता है, जिसके कारण एक तरफ बिजली का उत्पादन कम हुआ तो दूसरी ओर बिजली की मांग बढ़ी है। बीते समय में बाढ़ के कारण कोयले का खनन कम हुआ था, जो ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही बढ़ी हैं। ग्लोबल वाॄमग से वर्षा कम समय में अधिक मात्रा में होने के अनुमान हैं जो कि बाढ़ का कारण बनती है। ग्लोबल वार्मिंग का दूसरा प्रभाव यह रहा है कि अमरीका के लुसियाना और टैक्सास राज्यों में कई तूफान आए। इन्हीं राज्यों में तेल का भारी मात्रा में उत्पादन होता है जिससे विश्व अर्थव्यवस्था में तेल की आपूर्ति कम हुई और कोयले का उपयोग बढ़ा। विश्व बाजार में कोयले की मांग बढ़ी, दाम बढ़े और हमारे लिए आयातित कोयला महंगा हो गया, जिस कारण अपने देश में भी संकट पैदा हुआ। 

ग्लोबल वाॄमग का तीसरा प्रभाव चीन में रहा है, जिसके कई क्षेत्रों में सूखा पड़ा है, जिस कारण जल विद्युत का उत्पादन कम हुआ है। कई क्षेत्रों में हवा का वेग कम रहा है जिस कारण पवन ऊर्जा का उत्पादन कम हुआ है। इन तीनों रास्तों से ग्लोबल वाॄमग ने कोयले और बिजली की उपलब्धता कम की है। दूसरी तरफ ग्लोबल वाॄमग के कारण ही ऊर्जा की मांग बढ़ी है। गत वर्ष यूरोप एवं अन्य ठंडे देशों में सर्दी का समय लंबा खिंचा, जिस कारण वहां घरों को गर्म रखने के लिए तेल की खपत बढ़ी। इस असंतुलन के कारण विश्व में तेल और कोयले के दाम बढ़े हैं, जिसका प्रभाव भारत पर भी पड़ा है। 

हम अपनी खपत का 85 प्रतिशत तेल और 10 प्रतिशत कोयला आयात करते हैं। यूं तो 10 प्रतिशत का आंकड़ा कम दिखता है लेकिन आयातित कोयला महंगा हो जाने के कारण उस पर चलने वाले घरेलू बिजली संयंत्रों से बिजली का उत्पादन महंगा पडऩे लगा, जिसे बिजली बोर्डों ने खरीदने से मना कर दिया। कई बिजली संयंत्र बंद हो गए, जिससे जो बिजली उत्पादन में कटौती हुई, उसकी पूर्ति अन्य माध्यमों से नहीं हो सकी क्योंकि साथ में कोयले के घरेलू उत्पादन में भी कटौती हुई। इसलिए अपने देश में यह समस्या पैदा हुई। 

आने वाले समय में ऐसी समस्या पुन: उत्पन्न न हो, इसके लिए हमें 2 कदम उठाने होंगे। पहला यह कि देश में ऊर्जा की खपत कम करनी होगी। हमारे पास कोयले के भंडार केवल 150 वर्षों के लिए उपलब्ध हैं और तेल के लिए हम आयातों पर निर्भर हैं। यदि सरकार बिजली के बढ़े दामों के साथ बिजली की कुशल मोटरें लगाने के लिए सबसिडी दे तो देश में ऊर्जा की खपत कम होगी लेकिन उद्यमी को नुक्सान नहीं होगा और हमारा जी.डी.पी. प्रभावित नहीं होगा। 

दूसरा, सरकार को बिजली के मूल्यों में उसी प्रकार मासिक परिवर्तन करना होगा जिस प्रकार तेल के मूल्यों में दैनिक परिवर्तन किया जा रहा है। वर्तमान व्यवस्था में बिजली बोर्डों को उत्पादकों से ईंधन के मूल्य के अनुसार खरीदनी पड़ती है। जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोयले अथवा तेल के दाम बढ़ जाते हैं तो इन्हें महंगी बिजली खरीदनी पड़ती है लेकिन उपभोक्ताओं को इन्हें उसी पूर्व के मूल्य पर बिजली बेचनी पड़ती है, जिस कारण बिजली बोर्डों के सामने संकट पैदा हो गया है। सुझाई गई नई व्यवस्था में बिजली बोर्ड खरीद के मूल्य के अनुसार उपभोक्ता को महंगी अथवा सस्ती बिजली उपलब्ध करा सकेंगे और ऐसा संकट पुन: उत्पन्न नहीं होगा।-भरत झुनझुनवाला
 


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