पूर्वजों के प्रति वास्तविक कृतज्ञता अपने बड़ों के साथ अधिक समय बिताने में

punjabkesari.in Wednesday, Oct 06, 2021 - 04:31 AM (IST)

हमारे जीवन में जिन्होंने इतना बड़ा योगदान दिया, उन दिवंगत पीढिय़ों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए पितृ पक्ष एक विशेष समर्पित समय है। आज हमारे पास जो कुछ भी है उसके लिए हम उनके ऋणी हैं। इस ग्रह पर पहले रहने वाली सैंकड़ों-हजारों पीढिय़ों ने हमें खुशी से जीने के लिए कुछ न कुछ दिया है। हम जो भाषा बोलते हैं, हमारा भोजन, हमारे कपड़े, हमारी इमारतें-लगभग सब कुछ जो आज हमारे पास है, वह हमसे पहले की पीढिय़ों से मिला है। हालांकि, हमने अपने पूर्वजों और उनकी महान विरासतों की अनदेखी की है पर याद रहे कि उनके संघर्ष और बलिदान के बिना हम आज उन सुविधाओं और विशेषाधिकारों के साथ अस्तित्व में नहीं होते, जो मनुष्य के रूप में हमारे पास हैं। इसलिए उन्हें हल्के में लेने की बजाय, आज वह समय है जब हम उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें। 

पूर्वजों को श्रद्धांजलि की महान परम्परा उतनी ही पुरानी है जितनी कि मानव सभ्यता। यह दुनिया भर में किसी न किसी रूप में प्रचलित है। चीन, मिस्र, यूनान और रोमन वासियों के अपने पूर्वजों का आभार व्यक्त करने के अपने तौर-तरीके और साधन हैं। नवम्बर का पूरा महीना ईसाई अपनी दिवंगत आत्माओं को समर्पित करते हैं। ‘शब-ए-बरात’ के जरिए मुसलमान अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं। बौद्धों और पारसियों में अपने पूर्वजों के सम्मान में समारोह होते हैं। पारसियों की भोर की प्रार्थना ‘होश-बाम’ पुराने समय के ईरानी नायकों को समर्पित है। 

पितृ पक्ष के समय भारत में खरीफ फसलों की पैदावार शुरू हो जाती है। खरीफ की पहली उपज पिंड के रूप में पूर्वजों को सम्मान और कृतज्ञता के तौर पर इसलिए अर्पित की जाती है कि इसके बाद लोग नवरात्रि, विजयदशमी और दीवाली जैसे अन्य त्यौहारों के उत्सव में शामिल हो जाएं। उत्सव हमें याद दिलाता है कि हम अपने मूल्यों और लोकाचार में कितनी दृढ़ता से निहित हैं, जिनसे समझौता नहीं किया जाना चाहिए। अपने पूर्वजों के प्रति वास्तविक कृतज्ञता अपने बड़ों के साथ अधिक समय बिताने में होगी। जब हम अपने बूढ़े माता-पिता और दादा-दादी के साथ बैठते हैं तो वे अपने बचपन, स्कूली जीवन, कॉलेज के दिनों और अपने विवाहित जीवन की स्मृतियों को याद करते हैं। वे ज्ञान का खजाना हैं, जिनसे हम व्यावहारिक लाभ उठा सकते हैं। बड़ों की सलाह इसलिए नहीं सुनें कि वे हमेशा सही होते हैं, बल्कि बड़ों को अपने जीवन में कई बार गलती करने का अनुभव होता है जो आने वाली पीढिय़ां न दोहराएं और यही उनके लिए एक सबक है। यही सबक वे अपनी अगली पीढिय़ों से सांझा करते हैं। 

विडंबना है कि महानगरीय संस्कृति में एकल परिवार प्रणाली स्थापित होने से संयुक्त परिवार तेजी से गायब हो रहे हैं। पिछले 5 दशक में हुए इस बदलाव के कई ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से संयुक्त परिवार व्यवस्था छिन्न-भिन्न हुई है। भौतिक समृद्धि के लिए हुए इस बदलाव की खातिर न केवल पूरे परिवार की व्यवस्था बदली है बल्कि बुजुर्गों की जीवन शैली पर इसका बहुत अधिक नकारात्मक असर पड़ा है। परिवारों में अलगाववाद की वजह से पनपे एकल परिवारों ने बुजुर्गों को अकेलेपन की ओर धकेल दिया है। संयुक्त परिवारों में बुजुर्ग आंशिक या पूरी तरह से अपनी अगली पीढ़ी पर आश्रित थे। 

शिक्षा, नौकरी, करियर में वृद्धि, शादी, सुविधाओं और बेहतर जीवन शैली के लिए बेटों और बेटियों के अपने मूल जन्मस्थानों से महानगरों और विदेशों में प्रवास की वजह से संयुक्त परिवारों का विघटन हुआ है।  ऐसे में युवा पीढ़ी को महानगरों या विदेश में बसने, घर से बाहर निकल नए माहौल में खुद को ढालने और जीवन के नए तौर-तरीकों को अपनाने में कोई कठिनाई नहीं हुई, जबकि परिवार के बड़े सदस्य ऐसे में अकेले रह जाते हैं, जब वे जीवन के अंतिम पड़ाव में होते हैं। इस परिवर्तन से बुजुर्गों को अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले बच्चों के भविष्य के लिए उन्होंने आॢथक, स्वास्थ्य संबंधी और सामाजिक त्याग और समझौते किए। 

सामाजिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप बुजुर्ग अकेलेपन और बीमारी से जूझ रहे हैं। यह जीवन के पारंपरिक तरीकों से हट कर युवा पीढ़ी की आधुनिक जीवन शैली का परिणाम है, जिसके लिए कई समझौते होते हैं। इन्हीं के परिणामस्वरूप पूरे विश्व में वृद्धाश्रम संस्कृति उजागर हुई, पर यह संस्कृति हमारे पूर्वजों और हमारी महान सांस्कृतिक विरासत का अपमान है। 

कृतज्ञता को ऐसे जीवंत रखें : पितृ पक्ष की बेला में अपने पूर्वर्जों के प्रति कृतज्ञता को जीवंत रखने के लिए एक गरीब लड़की की उच्च शिक्षा का खर्च उठाएं। अगर यह संभव नहीं है तो कम से कम पूर्वजों की याद में एक पौधा जरूर लगाएं। विलियम शेक्सपियर के नाटक ‘द टेम्पेस्ट’ में जंगलों में रहने वाले आदिवासी कबीलों के लोग जंगली पेड़ों के तने में कैद पूर्वजों की पूजा करते हैं। पेड़-पौधे दिवंगत आत्मा की स्मृतियों को जीवित रखने का श्रेष्ठ माध्यम हैं। यह कृत्य आने वाले दशकों तक प्रकृति की सुंदरता में हमारे प्रियजनों के लिए हमारे स्नेह की सुगंध को जीवित रखेगा!(लेखिका आध्यात्मिक विचारक एंव ‘अमृतम’ की संस्थापक हैं।)-संगीता मित्तल
  


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