गांधीवादी सपना लगभग चकनाचूर हो गया

punjabkesari.in Saturday, Oct 01, 2022 - 05:20 AM (IST)

2 अक्तूबर आने को है और हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती  मनाने के लिए उमड़ पड़ते हैं। भारत में स्वतंत्रता संग्राम से परे एक नए युग का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया। नई दिल्ली में राजघाट समाधि में अहिंसा का दूत भारतीय समाज में हो रही उथल-पुथल का एक मूक गवाह है। 2 अक्तूबर को गरीब हो या अमीर दोनों को ही गांधी अपनी ओर आकॢषत करते हैं। हम याद कर सकते हैं कि किस तरह उन्होंने सामाजिक अन्याय विशेषकर हरिजनों पर अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। सीमित अवधि में आज भी यह बात लोगों के दिलों में बैठी हुई है।

भारतीय नेता उन्हें शांत होकर नमन करते हैं। सादे जीवन और उच्च सोच के गांधीवादी मूल्यों का पतन हो रहा है। प्रदर्शन, सत्ता और धन के लिए चूहा दौड़ लगी हुई है। शहरी भारत के साथ-साथ ग्रामीण भारत के कुछ हिस्सों में झूठे मूल्यों में वृद्धि देखी जा सकती है। एक फाइव स्टार कल्चर  शहरीकृत भारतीयों का प्रतिष्ठित सपना बन गया है। हो सकता है इसने कोई स्पष्ट जादू न किया हो लेकिन यह धीरे-धीरे और चुपचाप पारम्परिक आधार को मिटा रहा है। यहां तक कि मध्यम वर्ग के घर भी इसकी चपेट में हैं।

आजकल यह प्रवृत्ति बन चुकी है कि ‘अधिक लो और अधिक पकड़ो’। इस मानसिकता ने बाहुबलियों के नए वर्ग को सीढ़ी पर चढऩे के लिए प्रोत्साहित किया है। ऐसा लगता है कि सफलता ने उन्हें नए नायकों के रूप में बदल दिया है। इस बदलते सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य में गांधीवादी वस्तुत: एक लुप्त प्राय: प्रजाति बन गई है। कम से कम राजनीति के क्षेत्र में तो ऐसा ही है। कोई आश्चर्य नहीं है कि इन दिनों राजनीति में मुख्य समस्या मूल्य प्रणाली में संवेदनशील बहाव और क्षरण है।

भारतीय राजनीति में संकट वास्तव में अलग-अलग समय पर और विभिन्न स्तरों पर सामने आए हैं जो राजनीतिक धर्म के खराब होने का एक स्पष्ट संकेत है। भारत पर शासन करने वालों ने नैतिकता के अपने सुविधाजनक ब्रांड को विकसित कर लिया है। इस संदर्भ में मुझे स्वामी विवेकानंद का अवलोकन याद आता है जिन्होंने एक बार कहा था, ‘‘मुझे एक ऐसे धर्म से संबंधित होने पर गर्व है जिसने दुनिया में सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों को सिखाया है। हम न केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास करते हैं बल्कि हम सभी धर्मों को सत्य मानते हैं।’’

दरअसल, सम्राट अशोक से लेकर बाद के राजाओं तक धार्मिक सहिष्णुता हमेशा से हमारी प्राचीन सभ्यता का हिस्सा रही है। गांधी जी ने धर्म और स्वराज का दायरा बढ़ाया था। ‘यंग इंडिया’ में उन्होंने लिखा, ‘‘सभ्यता का सार यह है कि हम अपने सभी मामलों, फिर चाहे वह सार्वजनिक हो या निजी जीवन, में नैतिकता को स्थायी स्थान देते हैं।’’ हालांकि अब स्थिति नाटकीय रूप से न केवल नेतृत्व की गुणवत्ता के कारण बदल गई है। बल्कि समाज के सभी स्तरों पर बढ़ती अपेक्षाओं के लिए सही प्रतिक्रिया विकसित करने में हमारे सिस्टम की विफलता के कारण भी हैं।

यदि पीछे मुड़ कर देखें तो जब महात्मा गांधी ने राम राज्य के बारे में बात की, तो उन्होंने लोगों के सामने धर्म पर आधारित एक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करने की आशा व्यक्त की। राजनीतिक धर्म काफी दृश्य और अदृश्य गतिशीलता के साथ एक जीवंत अवधारणा है। हमारे राजनेताओं को इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। मुझे संदेह है कि क्या उनकी हड़पने की मानसिकता कभी बदलेगी? गांधीवादी सपना आजकल लगभग चकनाचूर हो गया है। इस संदर्भ में उन क्षेत्रों में झांकना पर्याप्त नहीं है जिन पर महात्मा गांधी की छाप है।

उनका जन्म स्थान पोरबंदर ठगों और बदमाशों का एक अड्डा माना जाता था। सूर्यास्त के बाद वहां कुछ भी सुरक्षित नहीं लग रहा था। आज हम इस व्यवस्था को दार्शनिक रूप से ले सकते हैं। कनाडा के अर्थशास्त्र के प्रोफैसर के.जे. चाल्र्स ने एक बार यह विचार व्यक्त किया कि यदि देश गांधी जी की दृष्टि को गंभीरता से लेता है और उसे बुद्धिमानी से लागू करता है और इसे अपनाता है तो यह न केवल जनता के जीवन स्तर में प्रभावशाली ढंग से सुधार लाता है। यह आर्थिक और सामाजिक विकास का एक नया और न्याय संगत पैट्रर्न है।

भारतीयों का एक वर्ग भी ऐसा ही सोच रहा होगा लेकिन कठिन विकल्पों में जाने के लिए आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में भारतीय नेताओं ने हमेशा पश्चिम के साथ तालमेल बिठाने के लिए शार्टकट की तलाश की है। ऐसा नहीं है कि गांधी जी की महानता को पहचाना नहीं गया हो लेकिन हाल ही में यह सभ्यता का प्रतीक बन गया है जिसकी चर्चा उच्च वर्ग के ड्राइंगरूम के वातानुकूलित आराम में होती है। आधुनिक संचार तकनीक ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संदेश को दूर-दूर तक फैलाया है।

नई पीढ़ी के एक वर्ग के लिए हॉलीवुड निर्देशक रिचर्ड एटनबरो का ‘गांधी’ दूसरी दुनिया के व्यक्ति की तरह दिखता है। लोगों को यह अविश्वसनीय लगता है कि 21वीं सदी में ङ्क्षहसा, विनाश, हत्या, बलात्कार, पीड़ा और दर्द के घिनौने व्यवसाय के बीच ऐसा व्यक्ति मौजूद हो सकता है। ऐसा लगता है कि गांधीवादी परम्परा टूट गई है और नए मुद्दे सामने आ रहे हैं जिनका आज के नेताओं के पास कोई जवाब नहीं है।राम राज्य का सपना लगभग खट्टा हो चुका है।

हालांकि एक बार दूरदर्शन पर इसे रंगीन पंख मिल गए थे जिसे लाखों लोगों ने देखा था जोकि  गरीब और भूखे भारतीयों द्वारा नहीं देखा गया। बेशक राम राज्य भारतीयों के दिलों में जिंदा है। महात्मा गांधी ने स्वतंत्र भारत के शासकों को इसका सख्ती से पालन करने का आदेश दिया था। हालांकि शासकों के अपने विचार थे। आज के शासक केवल वोट पाने के सपने देखते हैं। गरीबी के लिए कोई सपना नहीं देखता।-हरि जयसिंह


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