दोस्त बदले जा सकते हैं पर पड़ोसी नहीं

punjabkesari.in Saturday, Apr 17, 2021 - 04:20 AM (IST)

भारत -पाकिस्तान के संबंध पिछले 74 वर्षों से बड़े अजीबो-गरीब, हैरतअंगेज और विडम्बना पूर्ण रहे हैं। आपसी संबंधों को सुधारने के लिए कभी वार्तालाप, कभी विश्वासघात, कभी जंग और फिर कभी आतंकवाद ने माहौल को ही बिगाड़ कर रख दिया। जबकि विश्व के कई देशों ने अपने सीमा विवाद और अन्य मसलों का समाधान करके शांति और खुशहाली के दरवाजे खोल दिए। परंतु भारत और पाकिस्तान दोस्ताना माहौल बनाने में सफलता हासिल नहीं कर सके। 

इंगलैंड और फ्रांस भी 100 वर्ष यूरोप, अफ्रीका और एशिया में लड़ते रहे। परंतु आज दोनों के बड़े घनिष्ठ संबंध हैं। भारत और पाकिस्तान का बाबा आदम ही निराला है। पाकिस्तान भारत की ही प्राचीन सरजमीं के ही हिस्से पर एक नए देश के रूप में अस्तित्व में आया है। यह सारी साजिश ब्रिटिश हुकूमत की थी। जिन्हें भारत को बांटने का न ही कोई नैतिक और न ही कानूनी अधिकार था। परंतु हमारे आपसी झगड़ों का अंग्रेजों ने नाजायज फायदा उठाया और देश का बंटवारा कर दिया। कुछ दिन पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री हमाद अजहर ने कैबिनेट कमेटी की बैठक में यह फैसला लिया कि पाकिस्तान अपनी टैक्सटाइल इंडस्ट्री और लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत से कपास और चीनी आयात करेगा।

यह फैसला दोनों देशों में मधुर संबंध बनाने के लिए एक बड़ा ही सकारात्मक कदम था। परंतु 24 घंटे के बाद पाकिस्तान की फैडरल कैबिनेट ने यकायक इस फैसले से कदम पीछे खींच लिया और भारत के सामने एक नई शर्त पेश की कि भारत जम्मू-कश्मीर में धारा 370 और 35ए को दोबारा बहाल करे। जबकि इस धारा को हटाने का भारतीय सरकार के पास संवैधानिक और कानूनी अधिकार है। जिसका इस्तेमाल सरकार ने समूचे राष्ट्र के हित में किया है। पाकिस्तानी हुक्मरानों की यह सोच पूरी तरह नकारात्मक और दोस्ताना माहौल पैदा करने में एक बड़ी रूकावट बन कर सामने आई है। 

यू-टर्न को पाकिस्तान अपनी बहुत बड़ी जीत समझ रहा है। परंतु विश्व के देश आंखें मूंद कर बैठे हुए नहीं हैं। ताज्जुब यह है कि पाकिस्तान आज के दौर में भी घिसी-पिटी, जीर्णशीर्ण, लूली-लंगड़ी द्विराष्ट्रीय सिद्धांत को सीने से लगाए हुए है। जिसका आज के विश्व में किसी भी तरह का कोई महत्व नहीं है और न ही पाकिस्तान के लोगों की रोजमर्रा की आवश्यकताओं को पूर्ण करता है। भारत की समय-समय की सरकारों ने पाकिस्तान के साथ सौहार्द पूर्ण संबंध स्थापित करने की मसलसल कोशिश की। परंतु पाकिस्तान हर कदम पर नई उलझन पैदा करता रहा। सर्वप्रथम बंटवारे के बाद पाकिस्तान के प्रशासनिक ढांचे के निर्माण तथा लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत ने 50 करोड़ रुपया दिया और दरियाओं के पानी समझौते के लिए नेहरू लियाकत समझौता किया गया। 

जब कभी भी पाकिस्तान ने कोई मसला उठाया, भारत ने उसी समय अपना पूर्ण सहयोग देकर उसका समाधान करने की पूरी-पूरी कोशिश की। भारत से अलग होते ही पाकिस्तान ने जोर जबर से भारत से जम्मू-कश्मीर हड़पने के लिए कबायलियों और पाक सैनिकों को भेज दिया। जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में उसी तरह हुआ जिस तरह भारत में अन्य 564 स्वतंत्र रियासतों का हुआ था। भारत पर चढ़ाई करना पाकिस्तान द्वारा एक हिमालयी पहाड़ से भी बड़ी गलती थी। जो आज तक भारत और पाकिस्तान में विवाद का विषय बना हुआ है। समूचा जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट अंग है। 1965 में प्रैजीडैंट अयूब खान ने जम्मू-कश्मीर छीनने के लिए चढ़ाई कर दी थी। परंतु वह बुरी तरह परास्त हुआ और ताशकंद में भारत और पाकिस्तान में इस मामले पर समझौता हुआ। 

पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर नए देश के रूप में बनने के लिए भी बुनियादी तौर पर पाकिस्तान के घमंडी हुक्मरान ही जिम्मेदार हैं। जिन्होंने चुनाव में जीत हासिल करने वाली पार्टी के नेता को सत्ता सौंपने की बजाय पूर्वी पाकिस्तान को फौज के हवाले कर दिया। जहां लाखों बेगुनाहों की हत्याएं कर दी गर्ईं और 15 लाख से अधिक महिलाओं से बलात्कार किए गए। जब पूर्वी पाकिस्तान से एक करोड़ से ज्यादा लोग भाग कर भारत में आ गए तो इतने अधिक लोगों को रखना और हर तरह से उनका प्रबंध करना बड़ी मुश्किल का कार्य था। 1971 की जंग भी पहले पाकिस्तान ने शुरू की, जब उन्होंने अपने जंगी जहाजों से भारत के 11 हवाई अड्डों पर बम गिराए। भारत के लिए तब युद्ध के अलावा और कोई चारा नहीं था। जिसका मुनासिब जवाब श्रीमती इंदिरा गांधी ने दिया। 

1980 के दशक में पाकिस्तान ने भारत के पंजाब में हथियार और धन देकर आतंकवाद शुरू करवा दिया। जिसमें 26 हजार भारतीयों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। 1989 में पाकिस्तान द्वारा प्रेषित और पोषित आतंकवादियों की सहायता से कश्मीर से 5 लाख से अधिक कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोडऩा पड़ा और आज तक वह दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। कितनी बड़ी विडम्बना है कि अपने ही देश में लोगों को पलायन करना पड़ा। 1999 में पाकिस्तान ने फिर कारगिल का युद्ध शुरू कर दिया। इन सब ज्यादतियों के बावजूद भारत ने पहले शिमला समझौता, फिर आगरा सम्मेलन, लाहौर सम्मेलन, फिर जंग बंदी समझौता और पुन: दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू करने की पहल कदमी की थी। परंतु इन सब नेकनीयत यत्नों के बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। 

पाकिस्तान ने कम गिनती के लोगों की नाक में दम कर रखा है। 1947 में बंटवारे के समय ङ्क्षहदू और सिखों की आबादी 23 प्रतिशत थी। परंतु अब केवल डेढ़ प्रतिशत रह गई है। जबकि भारत में कम गिनती के लोगों को भी फलने-फूलने का बराबर का अवसर मिला है। भारत और पाकिस्तान दो पड़ोसी देश हैं। एक बड़ा भाई तो दूसरा छोटा। दोस्त बदले जा सकते हैं पर पड़ोसी नहीं। बड़े भाई की उदारता को छोटे को कमजोरी नहीं समझना चाहिए। पाकिस्तान को धर्मांधता को त्याग कर उदारता की नीति अपनाने से ही उसके उज्ज्वल भविष्य का निर्माण हो सकता है और भारत उसकी हर आवश्यकता को बहुत कम कीमत पर पूरा कर सकता है। जबकि विदेशों से उसे भारी-भरकम राशि खर्च करनी पड़ती है।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा
 


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