मित्र गलत हो तो उसे बताया जाना चाहिए

punjabkesari.in Sunday, Apr 10, 2022 - 04:55 AM (IST)

यूक्रेन में स्थिति पर लोकसभा में हाल ही में नियम 193 के तहत चर्चा के दौरान समय पर खरे उतरे भारत-रूस संबंधों तथा पूर्वी पाकिस्तान, जो अब बंगलादेश के तौर पर जाना जाता है, की स्वतंत्रता के लिए युद्ध के दौरान दिसम्बर 1971 में पूर्ववर्ती सोवियत संघ द्वारा हमारी की गई मदद को याद करते हुए मैंने कहा था कि यदि मित्र गलत हों तो उन्हें भी इस बारे बताया जाना चाहिए। युद्ध को 40 दिन हो चुके हैं तथा विदेशमंत्री मुस्कुरा रहे थे। ऐसा दिखाई देता है कि रूस के युद्ध के उद्देश्य को गलत परिभाषित किया गया है। 

क्या रूस यूक्रेन को डनीपर नदी पर 2 हिस्सों में बांटना चाहता है? क्या यह वहां सरकार में बदलाव चाहता है? यूक्रेन के गैर-नाजीकरण का क्या मतलब हुआ? क्या यह डोनबास क्षेत्र तथा क्रीमिया के बीच एक जमीनी गलियारा बनाना चाहता है या यह एंग्लो अमरीकी ताकत को परख रहा है? इसने यूक्रेन के नाटो में शामिल होने को बहाना बनाया है। मैंने क्यों रूस की ओर इशारा करते हुए यह कहा कि यदि गलत हों तो मित्रों को बताना चाहिए। इसका एक सामान्य कारण यह है कि यह देश आत्मविनाश के पथ पर अग्रसर है जिसकी आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक बाध्यताएं हैं। 

क्यूबन मिसाइल संकट के बाद अक्तूबर 1962 में सोवियत प्रधानमंत्री तथा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ सोवियत यूनियन (सी.पी.एस.यू.) निकिता ख्रुश्चेव के खिलाफ खंजर बाहर निकल आए थे। अक्तूबर 1964 तक ख्रुश्चेव चले गए थे। यह कहना आसान नहीं कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए भी ऐसा ही भाग्य इंतजार कर रहा है। यद्यपि यूक्रेन के साथ युद्ध इसके सातवें हफ्ते में प्रवेश कर रहा है। रूसी अभिजात वर्ग की ओर से पुतिन को बदलने के लिए षड्यंत्र की फुसफुसाहटें सुनाई दे रही हैं। यह देखते हुए कि इन रिपोट्र्स का स्रोत यूक्रेनी खुफिया सेवा है, स्वाभाविक है कि इस तरह के अनुमानों को अधिक विश्वसनीयता नहीं दी जा सकती। यद्यपि तथ्य यह है कि रूसी कुलीन तंत्र पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते अपने भविष्य को अंधकारमय देख रहा है। 

यूक्रेनी मजबूती से लड़ाई लड़ रहे हैं तथा रूसी सेनाओं को रोक रहे हैं। बूचा, इरपिन, होस्टोमेल, बोरोडियांकांड तथा कीव के उप-नगरों में नागरिकों की जघन्य हत्याएं, यातनाएं तथा दुष्कर्म रूस पर गंभीर ‘युद्ध अपराधों’ के आरोपों का कारण बन रहे हैं। न केवल रूस को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से निलंबित कर दिया गया है बल्कि लगातार जारी युद्ध ने भारत जैसे देशों, जो एक लोकतंत्र देश के तौर पर अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए कड़ा प्रयास कर रहे हैं, रूस के साथ अपने कुछ मूल्यों तथा इसकी ऐतिहासिक सांझेदारी के साथ खड़े होने में कठिनाई पैदा कर दी है। 

हालांकि जिस चीज पर रूस को अवश्य ध्यान केंद्रित करना चाहिए वह यह कि यदि यह इस युद्ध से शर्मनाक हालत में बाहर निकलता है जैसा कि होने वाला है, यह कीव तथा इसके आस-पास के क्षेत्रों से अपनी सेना को  हटाकर अब फिर से डोनबास के पूर्वी क्षेत्रों तथा यूक्रेन के दक्षिणी तट के क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है तो यह चीन के हाथों में खेल रहा है। रूस को चीन के ‘विंगमैन’ बनने के परिणामों के बारे में गंभीरतापूर्वक सोचना होगा। 

सामान्य रूसी, जो पुतिन के युद्ध से सहमत नहीं होंगे, पहले ही दुनिया भर में तिरस्कार का विषय बन रहे हैं। इसके साथ ही बैल्जियम द्वारा नियंत्रित स्विफ्ट ट्रांजैक्शन प्रणाली से रूस के 7 बैंकों को बाहर निकालने तथा पश्चिमी गठबंधन के अन्य देशों द्वारा रूस के साथ व्यापार के लिए वित्तीय व्यवस्था के वैकल्पिक साधन तलाशने के प्रयासों से अंतत: रूस आर्थिक तौर पर अलग-थलग पड़ जाएगा। इसलिए रूस को खुद से बचाने के लिए भारत को एक मित्र के तौर पर, जिसने अभी तक पश्चिम में अपने मित्रों को नाराज करने की कीमत पर कड़ी तटस्थता बनाए रखी है, रूस को मजबूती से यह कहना होगा कि उसे खुद को  उस गड़बड़ी से बाहर निकालना उसके बेहतरीन हित में होगा जो उसने खुद पैदा की है।-मनीष तिवारी 
    


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