घोषणा पत्रों में मुफ्त उपहारों, खोखले वायदों पर लगे अंकुश

punjabkesari.in Saturday, Jan 29, 2022 - 07:24 AM (IST)

चुनावों से पहले अक्सर राजनीतिक पार्टियां जनता को लुभाने के लिए योजनाओं और वायदों की पेशकश करती हैं। कभी सोना बांटने की बात होती है तो कहीं मुफ्त बिजली। सभी वायदे अधिकतर सार्वजनिक निधि को ध्यान में रख कर किए जाते हैं। इसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी। इसी याचिका के आधार पर सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। 

इस याचिका द्वारा सर्वोच्च न्यायालय से केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी करके निर्देश देने की मांग की गई कि राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन मु त का वायदा करने या वितरित करने की अनुमति न दें और राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करें या पार्टियों के चुनाव चिन्ह को जब्त करें। यह एक गंभीर मुद्दा है जिसे इस देश के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लाया गया। 

ऐसा कोई दिशा-निर्देश या तंत्र नहीं रहा है जो राजनीतिक दलों द्वारा तर्कहीन मुफ्त के वितरण पर मनमाने वायदों को रोक सके। राजनीतिक दल मुफ्त के माध्यम से एक मतदाता को अपने पक्ष में वोट देने के लिए प्रेरित करने की कोशिश करते हैं, बिना यह सोचे कि राज्य की संचित निधि से पैसा केवल राज्य द्वारा बनाए गए कानूनों के निष्पादन के लिए किसी अन्य ‘सार्वजनिक उद्देश्य’ के लिए विनियोजित किया जा सकता है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने कहा कि यह नि:संदेह एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन ‘हम जानना चाहते हैं कि इसे कैसे नियंत्रित किया जाए। यह एक गंभीर मुद्दा है, इसमें कोई शक नहीं। मु त के उपहारों वाला बजट नियमित बजट से आगे जा रहा है, और कभी-कभी जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देखा गया है कि यह कुछ पाॢटयों आदि के लिए समान अवसर नहीं है। एक सीमित दायरे में, हम क्या कर सकते हैं, हमने चुनाव आयोग को दिशा-निर्देश बनाने के लिए निर्देश दिया था। 

इससे पहले 2013 में भी एस.सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य, (2013), 9 एस.सी.सी. 659, में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इसी मुद्दे को लाया गया था। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को इस कार्य को इसके अत्यंत महत्व के कारण जल्द से जल्द निपटाने का निर्देश दिया और निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान कानून के तहत घोषणापत्र में वादों को भ्रष्ट व्यवहार घोषित नहीं किया जा सकता है। 

राजनीतिक दल जिस तर्कहीन मुफ्त वितरण का वादा कर रहे हैं, वह सार्वजनिक धन से है, भारत के सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे वायदों को विनियमित करने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देना चाहिए। अमरीका के 17 राज्यों का संविधान स्पष्ट रूप से सरकार द्वारा निजी उपहार देने पर रोक लगाता है। अमरीका में कहीं और भी, यह माना जाता है कि सार्वजनिक धन का उपयोग निजी लोगों को उपहार देने के लिए नहीं किया जा सकता है। 

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय को चुनाव आयोग को कुछ समिति या प्राधिकरण बनाने का निर्देश देना चाहिए जो राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने घोषणा पत्र में किए वायदों को विनियमित कर सके क्योंकि भारत का संविधान रंगीन टैलीविजन, स्मार्ट फोन, मिक्सर ग्राइंडर, लैपटॉप तथा स्कूटर जैसे सामानों के मु त वितरण की अनुमति नहीं देता है। चूंकि यह उपभोक्ता के इस्तेमाल की वस्तुएं हैं और इससे केवल उन्हीं लोगों को लाभ पहुंचता है जिन्हें वितरित किए जाते हैं। यह वितरण भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 के उल्लंघन की ओर ले जाता है। 

कोविड-19 के बाद यह अनिवार्य है कि राजनीतिक घोषणा पत्र चुनाव आयोग की जांच के दायरे में आने चाहिएं क्योंकि महामारी ने हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है और ज्यादातर मामलों में ऐसे अवैध वायदे मतदाताओं को वोट देने के लिए प्रेरित करने के लिए किए जाते हैं। ये वायदे समाज की भलाई के लिए नहीं हैं। ऐसा कोई भी अधिनियम नहीं है, जो चुनाव घोषणा पत्र की सामग्री को सीधे नियंत्रित करता हो। संसद द्वारा अलग से कानून पारित किया जाना चाहिए जिसके माध्यम से चुनाव आयोग घोषणा पत्र में किए गए वायदों पर अंकुश लगा सके।-वरुण चुघ 


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