गरीबों को भोजन उपलब्ध कराते ‘फूड ए.टी.एम्स’

punjabkesari.in Wednesday, Oct 30, 2019 - 02:10 AM (IST)

2 वर्ष पूर्व चेन्नई के एक फुटपाथ पर दिखाई देने के बाद से सामुदायिक फ्रिज ने भिखारियों से लेकर आटो वालों, फड़ी वालों तथा घरेलू नौकरों जैसे सैंकड़ों भूखों के पेट भरे हैं। 

2017 में पहले उदाहरण के बाद इस विचार को कोलकाता में नया जीवन मिला और फिर इसे तेजी से बेंगलूर में अपनाया गया और भुवनेश्वर में शुरूआत के बाद इसे इस वर्ष के शुरू में उत्तर भारत के नगर गुरुग्राम में स्थापित किया गया। अब कई शहरों में सामुदायिक फ्रिज नजर आने लगे हैं। कुछ एन.जी.ओज ने इस विचार को थामा तथा रैजीडैंट वैल्फेयर एसोसिएशन्स को अपना सांझीदार बनाया। बेंगलूर में आज 15 से अधिक सार्वजनिक फ्रिज हैं तथा और लगाने की योजना है। इस महीने के शुरू में दक्षिण-पश्चिमी रेलवे ने भी क्रांतिवीर सांगोली रायाना स्टेशन (बेंगलूर सिटी रेलवे स्टेशन) पर एक सार्वजनिक फ्रिज लगाया। 

सड़क किनारे या फुटपाथ पर
फूड ए.टी.एम्स के नाम से भी जाने जाते सार्वजनिक फ्रिज सड़क के किनारे या किसी फुटपाथ पर लगाए जाते हैं, जहां किसी भी जरूरतमंद के लिए अतिरिक्त अथवा बचा हुआ भोजन रखा जाता है। आसिफ अहमद ने पार्क सर्कस सी.आई.टी. रोड तथा ई.एम. बाईपास पर 2017 में अपने रैस्टोरैंट्स के नजदीक कोलकाता के पहले ए.टी.एम्स लगाए। अपने मित्रों प्रकाश नाहटा, राहुल अग्रवाल तथा निर्मल बजाज के साथ उन्होंने मोलाली के नजदीक रामलीला मैदान के पास एक क्लब तथा पार्क सर्कस मैदान के नजदीक महादेवी बिरला स्कूल के भीतर दो और फूड ए.टी.एम्स लगाए हैं। 

चारों ए.टी.एम्स रोज 100 से अधिक लोगों का पेट भरते हैं तथा त्यौहारों तथा शादियों के मौसम में यह संख्या और भी बढ़ जाती है। अहमद, जो अपने रेस्तरां में लोगों को बचा हुआ भोजन पैक करके ए.टी.एम. को दान करने की सलाह देते हैं, ने बताया कि इससे न केवल भोजन बेकार फैंकने में कमी आती है बल्कि भूखों को भी मदद मिलती है। उनके रेस्तरांओं के साथ लगे दोनों ए.टी.एम्स में रखे जाने वाले खाद्य पदार्थों में बिरयानी तथा तंदूरी रोटी सबसे सामान्य वस्तुएं हैं। 

फूड ए.टी.एम. की लागत
अहमद तथा उसके मित्रों को ऐसा एक ए.टी.एम. लगाने में 70,000 से 80,000 रुपए की लागत आती है, जिसके बाद प्रत्येक माह उसके संचालन (रखरखाव, बिजली आदि) पर लगभग 10,000 रुपए का खर्च आता है। देश का सबसे पहला ज्ञात सामुदायिक फ्रिज चेन्नई में अगस्त, 2017 के एक रविवार को बसंत नगर टैनिस क्लब के नजदीक एक फुटपाथ पर लगाया गया था। उस पर एक स्टिकर लगाया गया था, जिस पर तमिल में लिखे शब्दों का अर्थ था ‘आप परोसने के बाद खाएं।’ यह किसी का नहीं लेकिन सबके लिए था। यह विचार चेन्नई की ऑर्थोडोंटिस्ट डा. ईसा फातिमा जास्मीन का था। 

हर जरूरतमंद के लिए
पब्लिक फ्रिज नामक एक एन.जी.ओ. की स्थापना करने वाली जास्मीन ने बताया कि यह अमीरों अथवा गरीबों के लिए नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए है जो जरूरतमंद है। उस रविवार एक आटोरिक्शा ड्राइवर फ्रिज में बिस्कुट के तीन पैकेट रखने के लिए रुका, एक परिवार ने एक शैल्फ पर तरबूज रख दिया। कुछ दिन बाद पानी की दो बोतलें ले जा रहे राहगीर ने रुक कर, फ्रिज पर लोगों को दान करने या लेने के लिए प्रेरित करने वाला संदेश पढ़ा तथा अपनी बोतलों में से एक वहां छोड़ दी। साधारण मगर दूरगामी सेवा को अब विभिन्न स्कूलों में प्रोमोट किया जा रहा है और बच्चे भोजन को बचाने और सार्वजनिक फ्रिजों के लिए डोनेट करना सीख रहे हैं। बेंगलूर में पहला सार्वजनिक फ्रिज 2018 में बी.टी.एम. लेआऊट में लगाया गया और प्रारम्भ में इसने लगभग 100 लोगों को भोजन उपलब्ध करवाया। 

जास्मीन ने बताया कि आज यह फ्रिज प्रतिदिन लगभग 700 लोगों का पेट भरता है। बहुत से बेघर तथा भूखे लोग आकर फ्रिज से भोजन के पैकेट ले जाते हैं। रोटरी बेंगलूर ब्रिगेड्स ने अब लगभग 8 सार्वजनिक फ्रिज लगवाए हैं। इंदिरा नगर में एक रेस्तरां के मैनेजर निलेश बांसोडे ने बताया कि लोग अब उन्हें भोजन पैक करने के लिए कहते हैं ताकि उसे फ्रिज में रख सकें। एक अन्य क्षेत्र में सामुदायिक फ्रिज लगाने के लिए वहां के निवासियों ने लगभग एक लाख रुपए इकट्ठे किए। इस वर्ष सितम्बर में देहरादून में निवासियों का एक समूह सामुदायिक फ्रिज लगाने के लिए आगे आया। 

अधिकतर फ्रिज सफलतापूर्वक चल रहे हैं, सिवाय भुवनेश्वर में लगे एक फ्रिज के, जो लगभग 6 महीनों बाद अब इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। ऐसी योजना का समर्थन करने वालों का कहना है कि समुदायों के लिए जिम्मेदारी लेना आवश्यक है ताकि कोई न कोई फ्रिज के संचालन तथा उसमें रखी वस्तुओं की देखरेख के लिए हमेशा उपलब्ध हो। भारत के महानगरों में फैल रहा सामुदायिक फ्रिजों का नैटवर्क ब्रिटेन, कनाडा तथा सिंगापुर में ऐसे ही विचार की कदमताल में है।


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